पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/११२

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अंगाना । अँगुरियाना अँगाना--क्रि० स० [सं० अंङ्ग] अगीकार करना । स्वीकार करना । अँगिराना--दे० 'अँगहाना' । उ०-लागि गरे अँगात जंमत हैं, उ०----मनहूँ एक को रंग एक निज अग में गाए ।--रत्नाकर, श्रास गति भरे गिरि जारी है ।--भिखारी ऋ०, भा० १, भा० १, पृ० १८२ । पृ० ४२।। अंगार(५ ---मचा पु० दे० 'अगार' | उ.-.-'नन अँगार सिन्ह पर मृतक अँगीठ५--सज्ञा पुं० [सं० अग्निष्ठ, पा०, प्रा० अग्गिठ] दे० घूम रह्यो छाइ |---मानस, ६१५२ ।। (अँगीठा' । उ०--यो मन को विममिल करूं दीठ करू अदीठ। अंगाराम प ० (म० अङ्गारक, प्रा० अगाय] अा का जलता जो सिर राखें अपना पर सिर जलौ अंगीठ |--कवीर टूकडा । अगर । ३०--नेम चढ बरपे पुिल अँारा |-- मानस, ६।५१ । अँगीठा----सच्चा पु० [सं० अग्नि = आग+स्था = ठहरनी >अग्निस्था, विशेप-.-'अगारा' माव्द के मुहावरो का प्रायः 'अँगारा' मान्द के अग्निष्ठा, प्रा० अग्गिठ्टा अथवा स० अग्निष्ठिका, प्रा० | साथ भी प्रयोग होता है । अग्रिट्रिया ] घडी अंगीठी । घडा अति दान । वडी बोरसी । अँगारी---सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्गारिको प्रा० अगालिय, इगाली ] १ अग रखने का वरतन । ईख के सिर पर की हरी पत्ती जि में काटकर पशुओं का खिलाते अँगीठिq--सञ्ज्ञा स्त्री० दे० 'अँगीठी' । उ०--सुदर एक अचमा हुवा हैं । २ गडाँसे कटे हुए ईख के छटे छोटे टुकडे जो पत्थर के पानी महैिं जरे मॅगीठि ।--सुदर ग्र॰, भा॰ २, पृ० ५२१ । कोह में पेरने के लिये तैयार विए जाते हैं गडेर) । गेही । हीना बी० म० अग्निष्ठिका प्रा० प्रविधि ३ चिनगारी । अग्निकण । ३०-- खुले घाव पै ताके भानो परी का छोटा वरतन । अतिदान । उ०—-धरी अंगीठी स्वच्छ अँगारी --बुद्ध च०, पृ० १५१ । दे॰ 'अगरी' ! घूम दिने गवत अपने रग ।-भारतंदू ग्र०, भाग २, पृ० अँगाली--वि० [स० अग्रणी, प्रा० अगाणी, हिं० अगाड़ी, अगरी] ८३९ । अागे । प्रथम । उ०—-मुअज्जम इसम अंगाली ६मेशा |--- विशेष--यह मिट्टी और लोहे की गोल, चौबूटी अठपहली आदि दक्खिन०, पृ० ११८ । कई प्रकारों की बनती है। अँगिया-सा स्वी० [ स० अड्किा , प्रा० अगि ] स्त्रियों का एक मुहा०---अॅगठीं होना = अँगीठी के समान तृप्त होना । उ०-- पहिनावा जिससे केवल स्तन ढके रहते है, पेट और पीठ खुली । सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिन जरि वरि भई अँगीठी |-- रहती है । इसमें चार वद होते हैं जो पीछे बाँधे जाते हैं । छोटा सूर०, १०1३६७२ । । कपडा । चोली । कुचुकी । कचिली । ३०-अगिया नील, अँग -सच्ची पुं० दे० 'अग"। उ०—-सैल सँभायौ लला में पूरी माँडनी 'राती, निरखत नैन चुराई ।----सूर ०,१०।१०५३ । । धरि पै अवना अँगू री न सँभायो ।—देव ग्र०, पृ० ११ । यौo ---अँगिया का कठा या अँगिया की कठी= दे० 'अँगिया का अँगछा --सज्ञा पुं० दे० 'अंगोछ।१' । उ०-.-'नब वा माली ने घाट' | अँगिया की कटोरी या मुलकट = अँगिया का वह भाग याकौ अँगूछा तो फेरि दियाँ ---दो सौ दावन ०, मा० १, जो स्तनो के ऊपर पढता है। अंगिया को खवास या खसी = | पृ० २२६ । वह सीवन जी कटारिया को प्रस्तान से मिलाता है। आगमा अँगछाना--क्रि० स० [सं० अगुछा से नाम 1 दे० 'अंगोछना' उ०--- का घाट = अंगिया का गला या गरेवान, गले के नीचे का मनन सुनीर अहवाय अँगुछाय दया, नवनि वसन प्रन सोधी खुला हिस्सा । अॅगिया की चिडियो = दोनो कटारियो के बीच ले लगाइये --भक्तमाल (प्रि०), छ० ३।। की सीवन । अँगिया कर ठर्रा = वह वटा हुआ घागा जौ अँगिया के नीचे की गोट में लगाया जाता है । अंगिया की डो= अँगुठा--सज्ञा पु० दे० अँगूठा । उ०—कर पग गहि अँगुठा मुख कठे और पुट्ठे में शोभा के लिये टॉकी जानेवाली डोरी। मेलत ।—सूर०, १०॥६४ ।। मॅगिया की वोवार= दे० 'अँगिया का पान' । अँगिया को मुहा०--अंगठा चटाना = दे० 'अंगूठा चटना' । उ॰---अँगूठा चटाय दफादार के रे साँवलिया !--प्रेमघन० मा० २, पछा = अँगिया की पीठ की अोर के टुकड़े। अगिमा पृ० ३४० । का पान = अँगिया की कटोरी का छोटा दृकहा। अँगिया । । अँगुठी--मज्ञा स्त्री० [स० अङ्ग.ष्ठिका, प्रा० अँगुठ्टी १ कांसे की ढालका पुट्टा = अगिया की आस्तीन की चौड़ी रोट। अरिया के बंद =पीठ की ओर का ठर जिससे मॅगिया कसी कर बनाया हुआ एक गहना जो पैर के अँगूठे में अनवट के जाती है। मेंशिया का बंगला = कटोरी की व ली या फकि जो स्थान पर पहना जाता है। इसका व्यवहार नीच जाति की जोहो पर गोखरू टाँकने से बन जाता है। दो कलियाँ होने पर स्तियो मे है। २ दे० 'अंगूठी' । बँगली और इस बारह होने पर खरबूजा करते हैं । गिया के अँगरि(५–पझा स्त्री० दे० 'अगुरी' । उ०-~-कानन कुल चलत गरि बीज = अंगिया का वह भाग जो दोना बगल छिपाता है। दल ललित कोलन में कछ झलकै।नद० १०.५, , अँगिया की लहर = कटोरियों पर तिकोनी कटी हुई सज्जा। अंगुरिया-सच्चा स्त्री० [सं० अङ्गरिका, प्रा० अगुरिया ] छोटी मॅगिया-सा स्त्री० [हिं० अघिया ] झीने कपडे से मढी हुई चलनी । उँगली । उ०—-गहे अँगुरिया ललन की नँदै चलने सिखान। अंगिरनाG+--क्रि० स० [ सं• अङ्गीकरण ? ) स्वीकार करना । --सूर०, १०।१२२ ।। उ०-ॐ मॅगिरिश तो न होइम उदास ।--विद्यापति, अँगुरियाना--क्रि० स० [हिं० अँगुरी से नमि० ] हैरान करना। १० १।। तंग करना । परेशान करना ( बोल० )।