पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/११०

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बैंकोर ४६ अँगनाई अनीक, ममि ममीप आई। जन मभीत ६ अंको, से जुग अँग--सा पु० [१० प्रज्ञ ] १. शरीर। देहू। अयप । अग । उ--- । रुचिर मोर, फुदन छवि निरबि चार सोचत अधिक। -- पाले में ग न समात, वन को भाग घरि रह्यो ।-नद० ग्र०, तुलस ग०, पृ० ४०५। पृ० ३३३ । २ पटवा । तरफ । उ०-अपने अंग हैं जान है अँकोर--सफा पुं० [सं० पावल; हि० फोर अथवा फोर (देश ० ) 1 | जोवन-नृपति प्रवीन 1 ---विहारी र०, दो० २। , पौराक या कलेवी जो खेत में काम करनेवाली के पा1 भेजा अॅगऊ---सपा पुं० दे० 'अँगोंगा'। जाता है। छाक । कोर | दुपहरिया । जल पनि । अँगऊ--सद्मा पु० [सं० अग्रिम | दे० 'अंगोंगा' । अँकोरी--सझी स्त्री० [सं० अपालि प्रा० अफवालि, प्रयवा स० अँगड़ाई-- सच्चा स्त्री० [हिं० अँगडाना + ई ( प्रत्य० )] [ त्रि० - श्रोलिका] १ गोद। अक । ३ आलिंगन । अॅकबार । कोली । डोना ] अालम से जम्हाई के साय अगो को फैन्नाना, मरोटमा उ०--- गोवत हैंसत रिझावत हिलिमिलि पुनि मुनि भरत या तानना । देह के बद या जोड है भारीपन यो हटाने में कोरी ---मातेदु ग्र०, भा० २, पृ० ४६७ । लिये अवययो को पसारना या नानना । शरीर के लगातार एक अँकर--सन्न पु० [सं० अपालि या प्रोलिका, प्रा० अफवालि ] स्थिति में रहने के कारण जोहो या बद के भर जाने पर प्रालि गन् । अॅकवार । ३०---मुख चूमत ललचाई कबहूँ मुनि क्व अवयवों को फैलाना । गाने की प्रिया या भाव । देह भरत अंकोर |--भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ५९६ ।। टूटन' ।। न टूटना । उ०--जलधि लहरियों को अँगहाई अँकौल -सी पुं० दे० 'अकोल' । वार चाई 4/ती नोने 1-कामायनी, पृ० २३ ।। अँखडी+----संज्ञा स्त्री॰ [ स० अक्षि, प्रा० अविख, अवख, डि० और प० । विशेप---मोर उठने पर या ज्वर आने के कुछ पहले यह प्राय प्रख + डी (प्रत्य०), अथवा हि० अाँख +डी ( प्रत्य॰)] १. प्रान हैं। श्रख । नेत्र । उ०--मेरी इन दुखिया पंखडियो के मामने |-- क्रि० प्र०-- अाना ।—लेना। उ०---खुदा के वास्ते तन र म ले लहर, पृ० ७२ 1 २ चितवन। उ०--तुझ अँवड़ियों के देखे | तू अँगाई । कि वेद वद चुत वे हिजाब चटोंगा ( फं० )। प्रलम खराब होगा |--कविता को०, मा० ४, पृ० ८ । महा०-- अँगडाई तोडना = (१) ग्रालय में बैठे रहना । गुरू अँखमीचनीg --स- स्त्री० [हिं० शौख -4 मोचनी ] दे॰ 'अ'६• वाम न मरना । ( २ ) किसी से पधे पर हाथ २ र पने मिचौली' । शरीर का भार उगपर देना । अँवमूदन(Q -- सज्ञा पुं० दे० 'खमृदनो' । अँगडाना--कि० अ० [ म० अङ्क 4-अट ] शरीर के बद या जोड़ो श्रृंखमूदनो---मेरा पुं० [हिं० ख + मुंदनी ] अखि मीचनी । प्रfg में भारीपन को हटाने के लिये अगर को पसारना या तामना । मिचौली ।। प्रारीर के लगातार एक स्थिति में रहने के कारण जोडी या अँखाना---० अ० दे० 'अनरखाना' । बदो के भर जाने पर अवयवों को फैज़ाना या तानना । देह अॅखि –सच्चा स्त्री० दे० 'अवि'। उ०--जिम सुकिया दुति वचन, दूत तेना। गुम्ती से या शकावट में ऐंठनी वः ऐडान ।। | तरिय अँखि अग्गी ]--१० रा०, ६१।१०११।। अँगधातु]--सपा पु० [ स० अङ्गघातु] प्रस्वेद । पसीना । उ०—मुकुट अँखिया’----सा स्त्री० [सं० अक्षि, प्रा० अखि, हिं० अखि, अँखिया, उतारि घट्यो लै मदिर पीछति है अंगधातु ।--सूर० १ ०।११। प० अख ] १. अछि । नत्र । उ०—खिया निरखि यम् मुब भली । --रार ०, १०।२४०१ ।। अँगन--सी पुं० [२० अङ्गण, श्रङ्गन] प्रांगन । चोक । ३०--- विशेष--दुलार या स्नेहयुक्त अभिव्यक्ति के प्रेस में प्राय इरा रूप डहहहे बदन निधि निरा भूले । फचन जलज श्रृंगत जन फूले ।। का प्रयोग होता है। --नद० प्र०, पृ० ३०२ ।। | ३ लोहे की एवः ठप्प। या य मल जिससे वेतन पर हथौडी से अँगनई-मपी जी० दे० 'अँगनाई। इe---ौर अब तो मरने ठोक ठोकेर नक्काशी घनाते हैं। | मारते सेक्रेटरियट की प्रेगनई में दाखिल हो उठे थे ।---नई अँखियारा--वि० [हिं० अखिया -- रा (प्रत्य०)] यवाला ( अघा पी०, पृ० ८ । ।। का विलोम )। । अँगनवाँ*---सवा ९० [हिं० मॅगन - ( प्रत्य० } } ६० 'धेगन'। अँखुश्रा-सा पुं० [सं० अरक] १. वीज से फूटकर निकली हुई टेढी अ उ०----प्रेत त हुन् प्रेगनद नवं गैग माथी हो ।----धरम० | नोक जिसमें से पहली पत्तियों निकलती है। अकुर । उ०-- गव्दा०, पृ० ६४ ।। खोल खेत में वि वही ग्रंखु पलाता मिट्टी मुह में डाल अँगना -मसा पुं० [स० प्रण, अन्नन ] अगिन । चीक । उ०--पर फूल अगों में समाज्ञा । ---- ० च० | २ वीज से पहले पहल | अँगना गरि धाय मो घर सर चिन जोरे हाय !--भात निकली हुई मुलायम बँधी पत्ती । डाभ। कल्ला । पनपा। ग्र०, मा० २, पृ० ३८४ ।। कोपल । फुनगी । फि० प्र०—ाना । ---उगना। -जमना। निफतना ।-- अगना(५-सा ही [म० ना ] न्नैः । ना। --इन फूटना। --फेर ना। --फोडना । --ताना। ---लेना। गुड नञि सनन पो आँगना अँगना मा !-विरारी २०, ग्रेवुझाना--क्रि० प्र० [हिं० सँखा से नाम०] १ अर फटना दो० ३७६ । यो फेरना । उगन। जरना । प्ररित होना । २. उभटना। आँगनाई।--- ची० [ न० प्रश्न, हि प्रगन, अॅड. * उठाना । | ( प्रा० ) ] गन । जिर 1 अँगना । ३०--"नि न दाद ।। इचिर मॅगनाई।---मानः ७१९७६ ।