पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१०९

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में कोई ४६ अॅकोर अँाई-सया स्त्री॰ [ म० अङ, हि० अक (प्रक, फिना, अकना) + अंकुर -सज्ञा पुं० [सं० अङ्कर ] अकुर । अँखुआ । उ०- -अदभुत राम प्राई (प्रत्य॰)] १ कृत । मदाजा । अटकल । तखमीना । २ नाम के अक । घर्म अँकुर के पावन है दल मुक्ति-बघू ताटक ।। फगन में से जमीदार मीर कापरकार ने हिस्सो का ठहराव । --सूर०, १।६० ।। नृत्य नि। जाना। अँकुरना@---क्रि० अ० [सं० श्रद्धरण ] अकुरित होना। अकुर को क्रि० प्र०—करना । —होना । उत्पन्न होना या निकलना । किं मी वस्तु को अरभिक उत्पत्ति | ३ अ कने वा पारिश्रमिक या मज दूरी । या उत्पन्न होना । चैकाना--वि० म० [म० अफन ] [ सस’--कोई प्रेकव] १ अँकुराना --क्रि० स० [स० अरण] पानी में भिगोकर चने आदि अदाज कराना। फतवन । २ परीक्षा कराना । परखाना । को करपत होने में प्रवत्त करना । अकुर उत्पन्न करना। ३ शून्त्र निर्धारित करना। उ०—-मैन अग्रिह करने लगा, | अँकुराना'G--क्रि० अ० दे० 'अँकुरना' । लगी पूछने दाम । चला ग्रंथाने के लिये वह लोभी वेनम |--- अँकुराना--त्रि० अ० [सं० शाकुल] अकुल होना। व्याकुल होना । झरना, प० ७४ । ४ चिह्न छापा आदि लगवाना । । उ०—माइ वापे देय हलु नेपुर गढ इ । नेपुर भेगवडते जिव अंगाव--संक्षा १० [स० अङ+ हिं० श्राव (प्रत्य०) [ क्रि०--शेंकाना] अंकुई ।---विद्यापति, पृ० २०३ ।। मूतने वा प्रकिने का काम । कुताई। अदाज वा तखमोना करने, अँकुरी--सवा स्त्री० [ स० अङ्कर+ई (हि०) ] १ भिगोकर अकुरित का काम।। क्रि० प्र० --होना । विए गए चने, मूग, गेहूं आदि की घुघनी ! २ वश में एकमात्र अॅकावना G--क्रि० स० दे० 'अॅकवाना', अॅना ' । उ०--यह प्रेम बची हुई सतान ।। | वजार ३ अतर सो पर नैन दलाल अॅव बने हैं। --ॐ कुर०, अँकुवार--सच्चा स्त्री० [सं० अद्र, हि० अँखा । अार (प्रत्य! ] अकुर । पृ० २५ ।। अँखु । उ०--प्रेम विना नही उपज हिप, प्रेम वीज अंकुवार-- रसखान० पृ० १।। अविया७ +---सूयः नः [ हि० अाँख, अँखिया ] अाँख । नेत्र। उ०-- अथिया के नहर से दीदे को प नी वर ऐसे लगे गम की बाग-। अँकुस--सज्ञा पुं० दे० 'अकुश' । वान् ।-दक्विन०, ५० २३७ ।। अँकुसी--सज्ञा स्त्री० [सं० अङ्ग श, हिं० अकुस + ई (प्रत्य०) ] १ टेढी अँकुडा--सक्षा पुं० | स० र ] १ ले हे का भृका हुआ टेढा टा। करके झुन ई हुई लोहे की र्क ल जिसमे कोई चीज लटकाई या २ नो? ना । ही टेढा छड जिससे चुडि६ार लग भट्ठे, से। फैसाई जाय । हुक । व दिया । २ पीतल वा लोहे का एक गन्ना हुघा काँच निया में हैं । ३ टेढ़ी झुके हुई कल वा लबा छड जिसके। एक सिर घमावदार होता है। इससे ठठेरे पटिया जिसमें तागे अँटकाकर पटवा व पटहार काम करते भट्ली की राख निकालते हैं। ३ लोहे का टेढ़ी छड जिसको है। ४ लोहे का ए व टेढा काँटा जो लय ही आदि तोलनेवाले विवाह के छेद में डालकर व हर से अगरी या सिटविनी खोलते बई। राजू की डॉर्ड, के बीचोबीच लगा रहता है । ५. कुलावा । है । यह कुजी का काम देता है । ४ वह छोटी लव डी जो फल पायजा । ६ लोहे का एक गोल पच्चट जो किवाड की चूल में तोडने की लगीं के सिरे पर बँधी रहती है । ५ ले हे का एक ठोका रहता है । ७ लोहे का एक छड जिसका एक सिरा चिपटा बित्ता नवा सूजा जिसको सिर झुका होता है। इसमें नारियल होता है और दूसरा टेट। और झुका हुआ । चिपटे सिरे को के म तर की गर) निकालते हैं । कटे मे किंव। ये पल्ले में जE देते है और भू के हिस्से को अॅकूर--सज्ञा पुं० [ स० अङ्ग र ] १ अक । भाग्य । ३०--3था जोग साह के मोटो में डाल देते हैं। इस पर पल्ला घूमता है अर्थात् सव मिलत है जो विधि लिख्यो अँकर। खल गुर भोग गवारनी नुलता र यद होता है । ८ रेशमी कपडा बुननेवाल का रानी पान व पूर ।--स० सप्तके, पृ० ३११।२ अकुर | पंखुवा। मत में प्रकार का पाठ या एक अजार जिसके सिरे पर । ३०–जु वकिय भो न तुच्छ गर । उठे मन मच्छ घनके एक छेद होता है । इन छेद में एक खूटी गडी रहती है , अंकूर |--पृ० ०, २१॥२२॥ जिसमे दसप मन से वैध, हुई रम्सी लपेटी रहती है । ९. गाय अॅकोडा-सज्ञा पुं॰ [ स० अद्र या प्रा० अकुडग ] १ एक प्रकार का वैन में पेट मा दर्द या मरो जिसे एचा भी कहते हैं। | लोहे का काँटा जो पाल की रसी खींचने में काम आता है। १० यूटो । नागदत ।-(को०)।। २ एक प्रकार मा लगइ । वही कैटिया । कोढ़ा। कुडी--सपा नी० [हिं० फुटा का अल्पार्थक प्रयोग ] [ वि० अँकुडी । अंकोर'@-सज्ञा पुं० [सं० अङ्कमाल या अड़पालि, हि० ऑकवार ! दार] १ छोटा पॅकुडा । टेढ़। केटिया। हुक । २ लोहे का एक १ अक । गोद । छ त । उ०-- खेलत रहौं करहु मैं वाहिर छह जिसज़ा सिरा गृह झा रहता है और जिससे लोहार लोग चिते रहूति सब मारी और । वालि लेति भीतर घर अपने मठ ग माग पोते हैं । ३ हुल की वह लड। जिसमें फाल मुख चूमति भरि ति अंकोर ।--सूर० ( शब्द ) । २ दे० नगाया जाता है । ४ एक के पहिए के जोडों पर लगी हुई ‘प्रेस वार' । ३ भेट । नजर । उपहार। उ०—-सूरदास प्रभु के माहे २) पल या जगी । जो मिलन को, कुच श्रीफल म करत अँकर (--सूर (शब्द) । शहीदर...-३० | F० मैं पुदी+फा० दार] १ जिसमें अँकुटी व ३ घूस । रिणवत। उ०---(क) लीन्ह अंकोर हाथ जैहि जीउ गटिया 'गी ।। । जिगम पटाने में लिये हुक लेगा ही। हुस दीन्ह तेहि हाथ ----जायसी ग्र०, पृ० २८७ । (ख) विथुरित दार । ३, एर प्रसार मा पसादा जिसे गद्दारी भी पहते हैं । सिरह वरूथ, कुचित विचे सुमन जुथ मनि जुत झिसु फर्नि