पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१०८

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अस्य अंकसंदीया 1। । || अंस्य--वि० [ स० अस्य ] विभाज्य । । अँकरा--सच्चा पुं० [सं० अङ,र] [ सौ० अँकरी] १ एक खेर या अस्य-वि० [सं०] कधी मवेधी [को० ]। कुघान्य । अंह---सक्षा पुं० [सं० ग्रहस् ] १ पाप । दुष्कर्म । अपराध । २ दुःख। विशेष—यह 'रवी की फसलों में गेहूं के पौधों के बीच जमता है। चिता । कष्ट । व्याकुलता। ३ विघ्न । बाधा ।। इसे फाटकर वैलो को खिलाते हैं और इसका साग 'मी खाते अति--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ दोन । त्याग। परित्याग । ३ हैं। इसका दाना या बीज काला, चिपटा, छोटी मूंग के | रोग । ४ कष्ट । दु ख [को० ] । बराबर होता है और प्राय गेहूं के साथ मिल जाता है। इसे अहती-सच्चा स्त्री॰ [ सै० ] दे० 'अहुति [को०]। गरीव लोग खाते भी हैं । खेसारी इसी का एक रूपातर है। महद -वि० [ हि० अन + अ० हद ] जिसकी हमें न हो । असीम ।। २ ककड । अनत । अनहद । उ०——नाद अनाहद अद, सुने अनाहद कौन। अँकरास--सच्चा १० दे० 'अकरास' । -इद्वा०, पृ० १२१ ।। अहस्पति--सज्ञा पुं॰ [ • ] क्षय भास [को०] । अँकरी--सप्त स्त्री० [ अँकरा का अपार्थक प्रयोग ] छोटा मॅकरो या अहिति---सहा स्त्री० [सं० ] दान [को० ]। | कवडी । अहिती--सा स्त्री० [सं० ] दे॰ 'अहिति' [को० ] । | यौ०--अकरी+पथरी = क कडी । अँकटी । अहि-सच्चा पुं० [सं० 1१ पाँव । पैर । ३ वक्ष की जड़ या मुल अकरोरी--संडा सी० [ देश ! कस डी । सिटकी । ककड या खपडे | [को॰] । | का बहुत छोटा टुक् डा । अँकरवरी। अहिप--संज्ञा पुं० [सं० ] पादप । पेड [ को०]। अँकरौरी --सा स्त्री० दे० 'अकरौरी' । उ०---अकरौरी सम गनौं अहिशिर-सी पुं० [ सं० ] ‘अह्विस्कद' [को० ]। पहारा, लेखौ समु” हिये महँ नारा --चित्रा०, पृ० २१५ । अहिस्कध--सज्ञा पुं॰ [ मृ० ] गुल्फ । घुट्ठी टखना [को॰] । अँकवरी+--सझा स्त्री० दे० 'अँकरोरी' । अँकखरी–मच्चा भी० [हिं०] ककड या पत्थर का महीन टुकडा या अँकवाई--मष्ट स्त्री० [हिं० --कना 4 वाई (प्रत्य०) ] १ मॅकैवाने चूरा । अॅकटी । अँकरी । अँकरोरी । | की क्रिया या स्थिति । २ अौकने का पारिश्रमिक या मजदूरी । अँकटा-सा पुं० [ स० फर्फर, प्रा० कषफर या म० अंकुर, हिं० । अँकाई ( बोल० ) ।। अफुर>कडे अथवा स ० अफ +फाण्ड, प्रा० अफ+ अड अँकवाना--क्रि० स० [हिं० अंकना फी प्रेरणार्यफ ] १ मूल्य निर्धारित = अकड, या देश ]१ ककड़े को छोटा टुकड। । २ ककड़ पत्थर करना। २ कुत्वाना । अदाज कराना। ३ परीक्षा कराना। अादि का महीन टुकडा या चूरा जो अनाज में से चुनकर निकल | ऊँचबाना । परखवाना। ५ चिह्न, छा। शादि लगवाना । दिया जाता है। अँकवार--संज्ञा स्त्री० [सं० अङ्कपालि, अङ्कमाल, प्रा० अफवालि, मॅकटी+--- सच्चा स्त्री॰ [ अँकटा शब्द का अल्पार्थक प्रयोग ] छोटा अकवाल ] १ गोद 1 अक। २ छाती । वक्षस्यले । | अंकटा । अॅकड––सधा भी० [ स० हुङ्कार >प्रा० उकड >अॅकढ़ 1 अकड। मुहा०-देना =गले लगना । छाती से लगन् । प्रालियन करना । ऐंठ। उ०—अँकड जीव लब सुक से किया था जुल्ला । भेंटना --- अरना = अलिगन करना । भेटना । गले मिलना। उ०-धनमाला पहिरावत स्यामहि वा वार शैकवार भरत | -दक्खिनी०, पृ० १४९। । अँकडा-- सझा पुं० दे० 'शैवटा' ( बोल० )। घरि--सूर०, १०॥४०६ | --भरी होना = गद में बच्चा रहना । सतानयुक्त होना। उ०- बहू तुम्हारी बैंकबीर भरी अॅकडी--सब स्त्री० [सं० अड़ र= अँखु = टेढी नोक; अथवा ० रहे, ( आशीर्वाद) ( शब्द० ) । अटक, प्रा० अङ्क,डग, अकुडय ] १ अकटी । २ हुक । ३ आलिंगन । भेट । मिलना। जैसे---चिट्ठी में हमारी मेंट कैटिया । ३ तौर का मुडा हुन्ना फल । टेढ़ी गाँसी । ४ वेल । अँकवार लिख देना !--( शब्द॰) । लता । ५ लुग्गी । फल तोडने का बस का इदा जिसके सिरे , | अँकवारना+---क्रि० स० [हिं० अफवार+ना ] गले लगाना। मैंटना। पर फंसाने के लिए एक टेढी छोटी लव डी वैधी रहती है। आलिंगन करना। अंकना --क्रि० स० [सं० अन] दे० 'किना' ।। अॅकवारि--सम्रा स्त्री० [ स० अपालि, प्रा० अफवालि ] उ०... अकना--क्रि० अ० १ का जाना या कूता जाना । २ लिखा। खेलते हैं मोहि वोलि लियो इहि दोउ भुज भरि दीन्हीं | जाना या अकित होनी ।। अँकवारि । ---सूर०, १०l६०४ ।। अकना---- क्रि० स० [सं० कर्णन] सुनना । श्रवण करना। उ०—अवध सकल नर नारि विक ल अति अँकनि वचन अन- अकवा अँकवारी' (--सच्चा स्त्री० १ दे० 'अकवार' । उ०--अव के गौना बहरि नहि ौना करि लै भेंट ग्रैकवारी --सतवाणी, भो० २, भए । --तुलसी ग्र०, भा० २, पृ० ३६२ ।। अकमाल -सच्चा पुं० दे० 'अक्माल' । उ॰—सूर स्याम वन ते व्रज पृ० ६।२ इथाबाही । हाघापाई। मुठभेड । संघर्ष (लाक्षणिक | ए जननि लिए बैंकमाल । —सूर०, १०११३६० । प्रयोग ) । उ०—–वीर अगुमने भुजा पसारी । दुइ दल' मह अँकरवरी+--संज्ञा स्त्री० [हिं० अफरवरी या श्रीरी ( प्रत्य॰)] भई अॅकवारी 1-चित्रा०, पृ० १४३ । अँकडी । ककडी । उ०--कटि न चुमै न गई अँकरवरी । अँकस-सभा पुं० दे० 'अकस'। - जय सी ई० (गुप्त), छद १३७ । । अॅकसदीया--सल्ला यु० दे० अका सदीया' । -