पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१०६

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४५ । अशुमती विशेप--पृथ्वी की विवत् रेखा को ३६० भागों में बाँटकर अशल- वि० [सं०] १ हिस्सेदार। दयाद । २. पुष्ट कध'वाला । प्रत्येक विभ ज क विदु पर से एक एक लकी र उत्तर दक्षिण को वलेवान् । गत संपन्न [ की० ] । खीचते हैं। इसी प्रकार इन उत्तर दक्षिण लकीरो को ३६० अशवत्-- सझा पुं० [ ] अणुमत् । सौम के एक भेद [ को० ]। भागों में घटकर विभाजक बिंदु पर से पूर्व पश्चिम असता--सव सी० [सं० ] यमुना नदी । लकीर खींचते हैं। इन उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम को अशस्वर--सी पुं० [सं० ] सर्गः1 में मुख्य स्वर [को०]। लकीरों के परस्पर अंतर को अश व हते हैं । इसी रीति से । अशहर--वि | स०] हि सेदार 1 हिस्सा पानेवाला [को॰] । राशिचक्र भी ३६० अशों में बांटा गया है। राशियाँ १२ हैं, अशोरी--वि० [ अशहारिन् ] दे॰ 'अशधा' [को०]। इमसे प्रत्येक राशि प्राय ३० अश की है ती है। प्र ण के ६०वें अशाश-=-सा पुं० [सं०] १. अशा का भीग ( वि स देवता को )। भाग को कला और कल के ६०वें भाग को विकला कहते है। २ अमुख्य, अपूण या गाण अवतार । अशावतार | को० ]। ८ कध।। ६ सूर्य । १२ श्रादित्य में से एक, जैसे--अश- प्रशाशि--त्रि० वि० [ स०] विभागश 1 विभागानुक्रम से [को० ]। सुता = अर्थात् सूर्य की पुत्री यमनः । १० विसी क रवार को अशावतरण-संझा पुं० [सं०] १ दे० 'अशावतार' । २ महाभारत के हिस्सा। ११ फायदे का हिस्सा । १२ राग वा मृख्य स्वर । अदि पर्व के ६४ से ६७ अध्यायों का अभिघात [को०]। ( सगीत ) 1 १३ एक यदुवंशी रजिा ( को०)। १४ अशावतार-सा पुं० [सं० ] वह अवतार जिसमे परमात्मा की शक्ति दिन { को०)। का कुछ भाग है। आया हो । पुणवतार से भिन्न । यी--अशवश = धन परिवार । अशी-वि० [ स० अशिन् ] [ वि. स्त्री० अशिनी ] १ अशधारी । अशक---सच्चा पुं० [सं० ] [ ० अशिव 1 ] १. भाग । टुकडा । २. अश रखनेवाला । २ शक्ति या सामर्थ्य रखनेवाला । ३. अवतार ।। दिन । सौर दिवम । ३ हिस्सेदार । साझीदार । पट्टीदार। उ०--दाय या उत्तराधिकार में वेई व्यक्ति हिस्सा बाँटनेवाले अशी --सच्चा पुं० १ हिस्सेदार। माझेदार । २ अवयव । अशु--संज्ञा पुं॰ [सं०] १ किरण । प्रभा । हो तो प्रत्येक का भाग अश और पाने वाला अशक कहलाता था ।-पाणिनि०, पृ० ४१३ । यौ०--अशुधर, अशुपति, अशुभर्ता, अशुभृत् अशुस्वामी, अशुहस्त = सूर्य ।। अशक---वि० १. श्रश धारण करनेवाला । अश रखनेवाला। अश २ लता का कोई भाग। ३ सूत । सुन्न । सागा । धागा। धारी । २ घटनेवाला 1 विभाजक। पतली रस्सी । ४ तागे का छोर। छोर । ५ लेश । वहुत सूक्ष्म अश करण- -सम पु० [सं०] विभ जन । बॅटवारी या विभाग करने अशा या भाग । ६ लता और विशेष रूप से सोमलता का का कार्य [को० 1 ।। सुतरा (को०)। ७ सूर्य। ८ । एक ऋषि या राजा का अशकपना--सच्च, मी० [सं० ] अश या विभ ग प्रदान वरने का पायं नाम । ६ वेग ( क'०)। १० वेश (को०)। ११. अमन [को॰] । वस्त्र ( को०) । अशत --त्रि ० वि [ सं अशतस् ] वि सी अश है । कुछ हद तक। | अशुक- सज्ञा पुं॰ [सं०] १ कपड।। वस्त्र । २ पतला व पड़ा । आशिक रूप में । खो में । टुकडो में । खडप, । असपूर्ण महीन कपडा । ३ किरन । अल्प प्रकाश। किरणसमृह् । रूप से । ४ रेशर्म कपडा । ५ उपरना। उत्तरीय । दुपट्टा । ६ धोती अशतीस--सज्ञा पुं॰ [ देश० ]एक तीर्थ का नाम । या अधोवस्त्र । ७ अढना । ओढ़नी । ८ मुखवस्त्र । पूँघट अशधारी--विर | मुं० ] अश धारण घरवाला । अशक । उ-- | ( क'० ) ६ तेजपात ।। प्रग यो व वीद्र अशधारी नरहरि तहाँ दिलपति मान्यो तिन्हें । अकोष्णीषपट्टिका-सच्चा स्त्री० [सं० अशुक + उणीवपट्टिका ] गुण का प्रभाते हैं ।---अव ६०, पृ० ७५ । उप्प पर बधै जानेवाली अशक नामक महान वस्त्र फ। श्रशन--संझा पुं० [सं० 1 विभाजन । विभाग या बँटवारा करने में। वार्य । पट्टी --हर्ष ९, पृ० १७ ।। [को० ] 1 अशुजाल-सा पुं० [सं०] १. किरणसमूह । प्रकशिपुज । २. अशपत्र--सा पुं० [सं०] वह कागज जिसमें पट्टीदारो का अश या जा प्रकाश की दीप्ति यो चमक [को॰] । हिस्सा लिखा हो। अनाभि--सा स्त्री॰ [ स० ] वह विदु जिस पर समानांतर प्रकाश अशप्रकल्पना- -सइ स्त्री० [सं०] दे॰ 'अशकल्पना' [ को०]। की किरणें तिरछा और सकुचित होकर मिलें । अशाप्रदान--सझा पुं० [सं०] हिम्सा या अश देने का कार्य । अशकल्पना विश ष--सूर्यमुखी शशे को जब सूर्य के सामने करते हैं तब उसकी | [को॰] । । दूसरी ओर इन्ही किरणों का समूह गौल वृत्त । बिंदु बने अंशभागी--वि० [ सं० ] दे॰ 'अशमाग' । | जाता है जिसमें पड़ने से चीजे जलने लगते हैं। अशभाग--वि० [सं०] अर्श । दायाद। हिस्सेदार । [को॰] । अशुपट्ट-संझा पुं० [सं०] वस्त्रविशंप। एक प्रकार का रेशमी अशभू-वि० [सं० ] पट्टीदार | साझीदार [ फो० ]। कपडा [को० ]। । अश'भूत--वि० [सं० ] अशरुप । अमय । अश [को० ] । अशुमत-सझा पुं० [सं०] १ सूर्य । २. अशुमान राजा । अशयिता--वि० [सं० अंशयितु, अशतिर ] हिस्सा घटनेवाली अमिती--सा स्त्री० [सं०] १. एक नदी। यमुन। कालिंदी २. दीयाद। हिस्खेदार । सालपर्णी [को०]। - -