पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१०५

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अंश .. अंभ ----सा पुं० [सं० अम्भ ] अभसू का सामगत रूप, जमे, अभ - अभोधि--सच्चा पुं० [ स० अम्भोधि] प्रवृघि । समुद्र । उ०---जयति पति, अभ’सार में। अजनी गर्भ अमोधि सभूत विधु विबुध कुल कैरवानदकारी ।-- अभ पति-सा पुं० [सं० अम्म पति जलपति । वरुण (को०] । तुलस ग्रे०, या २, पृ॰ ३६० । अभ सार--संज्ञा पुं० [सं० अम्भ सार] मोती [को०] । अभोधिपल्लव-सज्ञा पुं० [ सं० अम्भोधिपल्लव ] विद्रुम मूंगा। अभ मृ--सञ्ज्ञा पुं० [सं० शम्भ सू] दे॰ 'अभसू’ [को॰] । प्रवाल [को॰] । प्रभ स्थ-वि० [सं० अम्म स्थ] जल में स्थित [को॰] । अभोधिवल्लभ--सज्ञा पुं० [ मं• अम्भोधियल्लम ] मूंगा। प्रवाल । अभ--मल्ला पुं० [सं० अल्मस् ! १ जल । पानी। उ6–नौ तत्वनि अभौनिधि: -मा पुं० [सं० अम्मोनिधि) समुद्र । सागर ] .. को लिंग पुनि मोहि भयो है अभ।---सुदर ग्र०, भा० २, अभोयोनि--सवा पुं० [ म० अम्भोयोनि ] ब्रह्मा [को०) । पृ० ७८१ । २ पितृलोक । ३ पितर। ४ लग्न से चोयी राधि । अभोराशि--सच्चा पुं० [सं० शम्भोराशि ] समुद्र ।। ५ चार की सच्ची । ६ सख्य में अध्यात्मिक तुष्टि के चार अभोरुह-• सहा पुं० [सं० अम्भोरुह ] १ कमल । उ०-वदन इदु, भेदों में से एक । दे० 'अभस्तुप्टि' । ७ देव । ८ असुर । ६. अमोरुह लोचन, स्याम गौर सोभा सदन सरर |--तुलस, ग्र०, एक राक्षस या असुर (को०)। १०. शक्ति (को०) ११ तेज पृ० २९६ । २ सारस पक्ष । (को०)। १२ मनुष्य । मानव (को०) १३ एक वैदिक छदै अम--सर्व० सं० अस्मत्, प्रा अम्ह ] हमारा। मेरा। उ०-- (को०)। १४ अकाया। उ०--करि मत सहि गोरी अचभ । जे जपि ताम पेरभ राव। बूझै न मृत को अंम ठाव 1- पृ० ग्रारभ चक्क भुजद अभ |--पृ० रा०, १९८४ रा०, १२।१९८| अभनिधि—-सवा ४० [सं० अम्मस् + निधि दे० 'अमोनिधि' । अमर --सा पुं० [ स० अम्वर ] अकाश । नभ । ३०-चालुक्क अभस्--सचा गु० [सं० अम्मस्] पान: [को॰] । | राह चालत दल अमर घुमर घमर बर ।---पृ० रा०, १२।७६ । अभसार-सद्मा पु० [सं० अम्म सार] मोती : अमरें --- सज्ञा पुं० [स० अमर] देवता। उ०-~-सभरि सौं लगे अभसू-सज्ञा पुं॰ [सं० अम्भस + सु] १ बू । २. भाप । समर अमर कीतिग एव ।--पृ० रा०, १२३२६ । अभस्तुष्टि---मझो पुं० [सं० अम्भस् + सुष्टि] साख्य में चार अध्यात्मिक । अमर+--वि० दे० 'अमर' । तुष्टियों में से एक । जई कोई व्यक्ति माया के प्रपच में फंसकर । अमर"+--सज्ञा पुं॰ [सं० अमृत, अमरअ ] अमृत । यह सतोप करता है कि उसे होते होते प्रकृति की गति के अनुसार अमर डमर-सच्ची पुं० दे० 'अवर इदर' उ०---धन अमर हमर विवेक आदि की अवस्था प्राप्त हो ही जाएगी तब उनकी इस तुप्टि को यं मस्तुष्टि कहते हैं । | दिसि प्रमान। उठे जत्न तीनौ निधान । पृ० रा०, १४५९१ । अभस्सार--सधा पुं० [सं० अम्भस्सार] मोती । मुक्ता [को॰] । अंमरी--संज्ञा स्त्री० [सं० अमरी = देवागना ] देवागना। अप्सरा । प्रभु--सवा पुं० [स० अम्बु पानी । श्रोप। तेज । काति । उ०-~ उ०—अमरिय रहसि दल दुम विहसि । करसि वर लगे से | सदा दोन किरवाने में, जाके अनिन अभ् ।--भूपण ग्र०, पृ० ६ । बर।-पृ० रा०, ३१।१५४ ।। अभोस पुं० [स० अम्भस्] ‘अभस् का समासगत रूप । | अमहq--सव० [सं॰ अस्मत् प्रा० अम्म) हमे। उ०--अमह एत्ता अभोज'---सक्षा पुं० [स० अम्भोज] १. कमल। पद्म । २ सारस पक्षी ।। दुख सुनि ।--की-०, पृ० ७२ । । ३ चद्रमा । ४ कपूर । ५ शख । अमृत ५ --सझा पुं० [सं० अमृत ] अमृत । सुधा। उ०—-गगन अभोज--वि० जल में उत्पन्न । अभोजखड--सच्चा पुं० [स० अम्मोजखड] कमल समूह [को॰] । मंडल मे ॐधा कृधा तहाँ अमृत का वासा ।--गौरख ०, पृ० ६ । अभोजजनि----सद्मा पुं० [सं० अम्मोज-+जनि] अ भोजजन्मा ब्रह्मा । अमृत--समी पुं० दे० 'अमृत' । उ०--प्रमृत्त प्रावहि जाहि, पप्पील चतुरानन [को॰] । गहि चाहि ।--पृ० रा, भा० २, पृ० ५६४ 1 अभोजजन्म-सबा पुं० [ स० अम्भोजजन्मन्] ब्रह्मा को०]। अमोल --वि० [हिं० अनमोल ] दे॰ 'अमोल'। उ०—इसे अस्व अंमोजंजन्मा--सक्षा पुं० [सं० शम्भोजजन्मन][ब्रह्मा [को॰] । अमोल लिये पृडीर चद कहि ।--पृ रा०, ६४१४२० ।। अभोजयोनि--सा स्त्री॰ [स० अम्भोजयोनि] ब्रह्मा [को०]। , | अम्रित--सद्मा पु० दे० अमृत । उ०---मनहूँ कला ससि भान, कला अभोजा--सा स्त्री० [स० अम्मोजा] १. कमलिन । २ जेठी मधू । | सोलह सोवन्निय । वाल वेस ससित सभी अम्रित रस मुलेठ। [को॰] । पिन्निय --पृ० रा०, २०१५।। अंभोजिनी--सद्मा ब्री० [स० अम्भोजिन] १ कमल की पौध अवटना -क्रि० स० दे० 'टिना' । ३०----अवटि छीर अनल पर यामलिन । पदिनी २ कमल का समूह । ३.वह स्थान जहाँ जाई | जोरन दे तव दही जमाई।-सुं० दरिया, पृ० ६ । पर बहुत से कमल हो। अश---सच्चा पै" [सं०] १. भाग । खड। अवयव । अग । २ दाय अभोद--सा पुं० [सं० शम्भोद ] १ घादल । मेष । २. मोथा। या उत्तराधिकार का भाग । हिस्सा। बखरा । वट। ३. नागरमौया ।। भाज्य अक । '४ भिन्न की लकीर के ऊपर की सख्याँ। ५, यी--प्रभोदनाद = मेव नाद । रावण का पुत्र । अमोदनादध्म = प्रमोदनाद को मारनेवाले लक्ष्मण । पीथा माग । ६ सोलहवां भाग । ७ वृत्त की परिधि को अमोधर--सज्ञा पुं॰ [सं० अमोघर] १. बादल । २ मोया ।। ३६० च भाग जिसे इकाई मानकर कोण यो चाप का प्रमाण बताया जाता है।