पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१०४

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अंबुनिधि अत्रित अबशायी-संवा नारायण । अदुनिधि--संज्ञा पुं० [ सं० अम्वनिधि ] समुद्र। सागर । अबुवाची पद = श्रापाढ पृष्णपक्ष की दम दिन [को०] । अवुनिव-वि० [४० अम्यूनिवह] जल ले जानेवाला [को०] । अवुवासिनी--सा स्त्री॰ [ स० अम्बुवासिनी] पुण्यविय । पाइर का अवुनिव -सझा पुं० बादल (को०] । | फुन । पाटला [को०] । अंबुनेत्रा--वि० सं० [सं० अम्बुनेत्रा] असू भरी अखिोवाली । अश्रुपूरित अवुवासी--सा स्त्री० [सं० अम्युबासिन्] दे० 'अंबुवासिनी' थो०]] नेनोवाली ! ३०--आसीना थी निकट पति के प्रबुनेक्षा अवुवाह-स) पुं० [ मै० अम्बुवाह] १ चाल । मेघ । २ मोथा । यशोदा है--प्रि प्र प्र०, (सर्ग १०) । नागरमोया । ३. जलवाहक व्यक्ति (को०)। ४. अभ्रक (को०)। अबुप-वि० [सं० अम्बुप] पानी पीनेवाला । ५ सत्रह की सख्या (को०)। ६ झील (को०)। अप-सज्ञा पुं० १. समुद्र । सागर । २ घरुण । ३ मतभूपी नक्षत्रे । ऋववाहक--वि० [स० अम्युबाहक] जन्न ले जानेवाला (को॰] । ४ चकवड का पौधा । चक्रमर्द । चकौड ।। अवुवाहक’---संक्षा स्त्री० १ घादल । २ मोचा। नागरमोथा (फो०)। अत्रुपक्षी--संज्ञा पुं० [सं० अम्बुपक्षिन्] जल में रहनेवाले पक्षी कि०] । | अबुवाहिनी ---सहा स्त्री॰ [स० अम्बुवाहिनी] १ नाव का जल उलीचने अवुपति--संज्ञा पुं० [सं० अम्बुपति] १ समुद्र । उ०—-मनन अनल या फेंकने का वरतन जो प्राय काठ या कछुए के खोपडे का अबुपति जहा।-- मानस, ६।१५। २ वरुण । अंबुपन्ना--संत्या स्त्री० [सं• अम्व पत्रा) नागरमाथा । मोथा । उच्चटा। होता है। २ जल लाने वाली स्त्री० [को०)। अबुपद्धति---सी स्त्री० [सं० अम्बुपद्धति | जलमार्ग । घारी। जल भवुवाही--सधा पुं० [स० अम्बुवाहिन्] १ मेवे । बादल २ मोया। प्रवाह । जलप्रपात (को०] । मुस्तक को०)। अनुपात--सा पुं० [सं० अम्बुपात ] दे॰ 'अत्रुपद्धति' (को० । । अवुविस्रवा--संझा स्त्री॰ [सं॰ अम्युचिस्रवा] घृतकुमारी । ग्वारपाठः । घोअवपालिका--सभा स्त्री॰ [ १० अम्वपालिका | पनिहारिन । पानी कुर [] । भरनेवाली लडकी उ०—भरे हुए पानी मृदु प्रती थी पय अवविहार--सज्ञा पुं० [सुरू अम्बुबिहार जलक्रीडा। जलविहार फो०] । पर, अपालिका ।-अनामिका, पृ० १७७ । अवुवेतस--सज्ञा पुं० [सं० अम्बुवेतस] एक प्रकार का वेत जो पानी में अनुप्रसाद- सा पुः [सं० अम्बुप्रसाद] निर्मनी । निर्मली का ध ।। गैदले पानी को साफ करनेवाली ओषधि । कतक । होता है । वडा वेत ।। अंबुप्रसादन--सद्मा पुं० [सं० अम्बुप्रसादन] दे० 'अबुप्रसाद' (को०] । विशष--यह वेत पतला पर बहुत दृढ होती है। इसकी छडियाँ बहुत उत्तम बनती है। दक्षिण वगाल, उड़ीसा, कर अबुवसापु)---सा स्त्री० [सं० अम्वेवासा ] पाटल । पाडर ।-नददास | ग्र०, पृ० १०२। नाटक, चटगाँव, वर्मा आदि में यह पाया जाता है। अनुभव--सच्चा पुं० [सं० अम्बुभव ] कमल (को०] । अबशायी----संझा पुं० [सं० अम्बुशायिन्] जल या समुद्र में शयन करने ग्रबुभुत्-सच्चा पुं० [सं० अम्बुमृत्] १. वादल । २ मोथा । ३ समृद्र । ४, अभ्रक । | अंबशिरीपिका–सच्चा स्त्री० [सं० अम्वृशिरीपिका] एक विशेष पेड । अवुमत्--वि० [सं० अम्बुमत् जलयुक्त [को०)। जलशिरीष । ढाटोन । दिटिनी । [को०] । अबुमती--सा स्त्री॰ [सं० अम्बुमती] एक नदी का नाम किो०] । अबूशिरीपी--संज्ञा स्त्री० [सं० अश्वशिरीपी] ६० 'प्रवृशिरीपिका' [को०] । अबुमान्नज-वि० सं० शम्बुमात्रज] जल मे ही उत्पन्न होनेवाला । अबुसपणी-सी पुं० [ स० अम्बुसपिणी ] जोक । | जलीय फो०] । अबुसेचनी--सशी ली० [सं० अम्बुसैचनी] जल सीचने या उलीचने का अबुमानज’--सा पुं० घोघा । शख । शवूक [को०)।

  • पाव (को०] । अवुर--सा पुं० [सं० अम्बुर] दरवाजे का काष्ठ । चौखट (को॰] ।

अवूक---सुप्ता पुं० [सं० अम्बुक] लकुंच 1 बडहर [को०)। अबुरय--संज्ञा पुं० [सं० अम्बुरय) घारा। प्रवाह (को०)। अकृतवि० [सं० अम्बूढ़त] निष्ठीवनयुक्त उच्चरित (भापा या अनुराज–समा पुं० [सं० अम्बुज दे० 'अदृपति' [को०)। " कयन) (को०] ।। अनुराशि--सन्ना पु० [सं० अम्युराशि ] जल की राशि अर्थात् समुद्र । अबूज--सा पु० [सं० अम्बुज कमल । अबुज । उ०---परे सीस | सागर ।। भरि चहू न धरि । मन इम्भ झकर अबूज झार |--१० अनुरुह-सा पुं० [सं० अम्बुरुह ] कमल । | रा०, ३५१७६१ ।। अवुरुहासज्ञा स्त्री॰ [सं० अम्बुरुहा स्थल कमलिनी (को०)। अबूजीG-~-उमा स्त्री॰ [• अम्बुज + हि० ई ( प्रत्य० ) नमलिन । अनुरुहिणी--सद्मा स्त्री० [सं० अम्बुरुहिणी] कमल । कमलिनी । कुई । कुमुदिनी । उ०—'अनुदिन काम विलास विलासिनि, ६ मलि ते कोई [को०]। | अबूर्ज। --सुर०, १०।२८२६॥ अवुरोहिणी---सा ली० [ स० अम्बुरोहिणी ] दे० 'अबुरुहिणी' । अबूदीप -सज्ञा पुं॰ [सं० अम्बुद्वीप, प्रा० अयूदोग्र] वर साहित्य में अवल-सा पुं० [स०अम्ल> प्रा० अमम्ल अवल, १ अम्ल । । | वणित एक द्वीप का नाम । उ०—प्रदीप हुन को पाना । | अम्बल । खट्टा रस । उ०--पन व अबुल जब मैलि }-१० । -वर सी०, पृ० ५। रा०, ६३।१०६ । २ आम ।। अतुलसा पुं० [स०अामलक, प्रा० मलय मला को ०1। अवाह-सपा पुं० [फा०] माझ भाडे । जमघट । । नमाज। समह। अबुवाची--सझा स्त्री० [सं० अम्बुवाची अपाढ़ में अद्रि नक्षत्र का ४०---इफ दम की पैट लगे है यह अयोह मजा घरची कापिं । प्रथम चरण अर्थात् भारभ के तीन दिन और २० घडी जिनमें -राम० घमं०, पृ० ६३ । पृथ्वी ऋतुमती समझी जाती है और वीज बोने का निषेध है। अद्वित--सहा ५० [सं० अमृत 1 सुधा यो०---अबुवाची त्याग = पापा, कृष्ण पक्ष द्वयोदशी का दिन रस अति सोधे । फेड़े में सुरंग पिरौरा चोधे ।-जयर्स इं० {ों०]। ( गुप्त ), १० १९६२ ।। वशिरीदिका] शरीपिया' [को०), -सझा औ० स० अम्बुसपिणी )जो - -