पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 1).pdf/१०

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इस प्रकार यह बृहत् आयोजन २० वर्ष के निरंतर उद्योग, परिश्रम और अध्यवसाय के अनंतर समाप्त हुआ है। इसमें सब मिलाकर ९३,११५ शब्दों के अर्थ तथा विवरण दिए गए हैं और आरंभ में हिंदी भाषा और साहित्य के विकास का इतिहास भी दे दिया गया है। इस समस्त कार्य में सभा का अबतक १०, २७, ३५꠰꠸  / (एक लाख दो हजार सात सौ पैंतीस रुपए चार आने साढ़े दस पाई) व्यय हुआ है, जिसमें छपाई आदि का भी व्यय सम्मिलित है। इस कोश की सर्वप्रियता और उपयोगिता का इससे बढ़कर और क्या प्रमाण (यदि किसी प्रमाण की आवश्यकता है) हो सकता है कि कोश समाप्त भी नहीं हुआ और इसके पहले ही इसके खंडों को दो-दो और तीन-तीन बेर छापना पड़ा है और इस समय इस कोश के समस्त खंड प्राप्य नहीं हैं। इसकी उपयोगिता का दूसरा बड़ा भारी प्रमाण यह है कि अभी यह ग्रंथ समाप्त भी नहीं हुआ था, वरन् यों कहना चाहिए कि अभी इसका थोड़ा ही अंश छपा था जबकि इससे चोरी करना आरंभ हो गया था और यह काम अबतक चला जा रहा है पर असल और नकल में जो भेद संसार में होता है वही यहाँ भी दीख पड़ता है। यदि इस संबंध में कुछ कहा जा सकता है तो वह केवल इतना ही है कि इन महाशयों ने चोरी पकड़े जाने के भय से इस कोश के नाम का उल्लेख करना भी अनुचित समझा है।

जो कुछ ऊपर लिखा जा चुका है उससे स्पष्ट है कि इस कोश के कार्य में आरंभ से लेकर अंत तक पंडित रामचंद्र शुक्ल का संबंध रहा है, और उन्होंने इसके लिए जो कुछ किया है वह विशेष रूप से उल्लिखित होने योग्य है। यदि यह कहा जाए कि शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय पंडित रामचंद्र शुक्ल को प्राप्त, है तो इसमें कोई अत्युक्ति न होगी। एक प्रकार से यह उन्हीं के परिश्रम, विद्वत्ता और विचारशीलता का फल है। इतिहास, दर्शन, भाषाविज्ञान, व्याकरण, साहित्य आदि के सभी विषयों का समीचीन विवेचन प्रायः उन्हीं का किया हुआ है। यदि शुक्ल जी सरीखे विद्वान् की सहायता न प्राप्त होती तो केवल एक या दो सहायक संपादकों की सहायता से यह कोश प्रस्तुत करना असंभव ही होता। शब्दों को दोहराकर छपने के योग्य ठीक करने का भार पहले उन्हीं पर था। फिर आगे चलकर थोड़े दिनों बाद उनके सुयोग्य साथी बाबू रामचंद्र वर्मा ने भी इस काम में उनका पूरा-पूरा हाथ बँटाया और इसलिए इस कोश को प्रस्तुत करनेवालों में दूसरा मुख्य स्थान बाबू रामचंद्र वर्मा को प्राप्त है। कोश के साथ उनका संबंध भी प्रायः आदि से अंत तक रहा है और उनके सहयोग तथा सहायता से कार्य को समाप्त करने में बहुत अधिक सुगमता हुई है। आरंभ में उन्होंने इसके लिए सामग्री आदि एकत्र करने में बहुत अधिक परिश्रम किया था और तदुपरांत वे इसके निर्माण और संपादित की हुई स्लिपों को दोहराने के काम में पूर्ण अध्यवसाय और शक्ति से सम्मिलित हुए। उनमें प्रत्येक बात को बहुत शीघ्र समझ लेने की अच्छी शक्ति है, भाषा पर उनका पूरा अधिकार है और वे ठीक तरह से काम करने का ढंग जानते हैं और उनके इन गुणों से इस कोश को प्रस्तुत करने में बहुत अधिक सहायता मिली है। इसकी छपाई की व्यवस्था और प्रूफ आदि देखने का भार भी प्रायः उन्हीं पर था। इस प्रकार इस विशाल कार्य के संपादन का उन्हें भी पूरा-पूरा श्रेय प्राप्त है और इसके लिए मैं उक्त दोनों सज्जनों को शुद्ध हृदय से धन्यवाद देता हूँ। इनके अतिरिक्त स्वर्गीय पंडित बालकृष्ण भट्ट, स्वर्गीय बाबू जगन्मोहन वर्मा, स्वर्गीय बाबू अमीर सिंह तथा लाला भगवानदीन जी को भी मैं बिना धन्यवाद दिए नहीं रह सकता। उन्होंने इस कोश के संपादन में बहुत कुछ काम किया है और उनके उद्योग तथा परिश्रम से इस कोश के प्रस्तुत करने में बहुत सहायता मिली है। जिन लोगों ने आरंभ में शब्दसंग्रह आदि और कामों में किसी प्रकार से मेरी सहायता की है वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।

इनके अतिरिक्त अन्य विद्वानों, सहायकों तथा दानी महानुभावों के प्रति भी मैं अपनी तथा सभा की कृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिन्होंने किसी न किसी रूप में इस कार्य को अग्रसर तथा सुसंपन्न करने में सहायता की है, यहाँ तक कि जिन्होंने इसकी त्रुटियों को दिखाया है उनके भी हम कृतज्ञ हैं, क्योंकि उनकी कृपा से हमें अधिक सचेत और सावधान होकर काम करना पड़ा है। ईश्वर की परम कृपा है कि अनेक विघ्न बाधाओं के समय-समय पर उपस्थित होते हुए भी यह कार्य आज समाप्त हो गया। कदाचित् यह कहना कुछ अत्युक्ति न समझा जाएगा कि इसकी समाप्ति पर जितना आनंद और संतोष मुझको हुआ है उतना दूसरे किसी को होना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। काशी नागरीप्रचारिणी सभा अपने इस उद्योग की सफलता पर अपने को कृतकृत्य मानकर अभिमान कर सकती है।

काशी श्यामसुंदरदास
३१-१-१९२९ प्रधान संपादक