मस्ताना ३५३२ महकना म० मस्ताना'-वि० [फा० मस्ताना ] १ मस्तो का सा1 मस्तो की तरह मस्तूरी - सज्ञा स्त्री॰ [ समस्त्रा ] धातु गलाने की भट्ठी (फतहपुर)। का । जैसे, मस्तानी चाल । २ मस्त । मत्त । मस्तूल-सज्ञा पुं॰ [ पुर्त० ] वडी नावा प्रादि के बीच मे बडा गाढा मस्ताना -क्रि० अ० [फा० मस्त + हिं० श्राना (प्रत्य॰)] मस्ती जानेवाला वह वटा लठ्ठा या शहतीर जिसमे पाल वायने हैं। पर पाना । मस्त होना । पत्त हाना । उ०-उसका ऊंचा मस्तूल झुका हुगा ऐमा दिखाई देता है सयो० क्रि०-जाना। मानो वह अपने प्यारे जलयान को समावि को गले लगाकर रो मस्ताना -क्रि० स० मस्ती पर लाना । मस्त करना । मत्त करना । रहा है ।-भारतेंदु ग., भा. १, पृ० ५५२ । सयो० क्रि०-देना। मस्सा-सज्ञा पुं० [हिं० ] ८० 'ममा'। उ०-तिल और मस्मा भी पूर्व कर्मानुसार ही प्रकट होते है। - कबीर मा०, पृ० ६८१ | मस्ति-सशा सी० [ ] माप । तीन [को०। मस्तिक-गज्ञा पुं० [ मं० २० मस्तिष्क' । उ०-साहिब तबही मस्सीत-संशा ग्मी० [अ० मन्जिट ] +० 'मगीत' । उ०-कौन मक्कान महजीत मस्सीत मे ।-जमी ममान विच कोन छाया कीन्हा । मस्निक हाथ आमनि के दीन्हा ।-कबीर सा०, ठाईं।-तुरमी श०, पृ० १६ । पृ० १०१५ । मस्तिकी - सज्ञा स्मी० [अ० मस्तकी ] २० मस्तगी' । महग - मज्ञा पुं॰ [ देशी ] उष्ट्र । ऊंट [को०] | मस्तिष्क-सज्ञा पुं० [स०] १ मस्तक के अदर का गूदा । भेजा। महत'-सञ्ज्ञा पुं० [सं० महत् (= बडा)]. घुमडली या मठ का अधिष्ठाता । माधुग्रो का मुखिया । २ महात्मा। सज्जन । मगज। विशेप-कहा जाता है, भोजन का परिपाक होने पर जो उ०-तडित दृगनि करि मेघ महत । देखे नाप तपै मब जत । नद० ग्र०, पृ०२८६ । रस बनता है, वह क्रमश मस्तक में पहुंचकर स्निग्ध रूप धारण करता है और उसी के द्वारा स्मृति और बुद्धि काम महत—वि० वडा । श्रेष्ठ । प्रधान । मुखिया । उ०—गखा प्रवीन करती है । उसी को मस्तिष्क' कहते हैं । हमारे तुम हो तुम हो नही महत । - (शब्द॰) । २ बुद्धि के रहने का स्थान । दिमाग । महताई। -सशा स्त्री० [हिं०] दे० 'महतो' । मस्ती-सज्ञा स्री० [फा०] १ मस्त होने की क्रिया या भाव । महताना-सज्ञा पुं० [अ० मेहनत, हिं० मेहनताना] दे० 'मेहनताना' । मत्तता । मतवालापन । महती-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० महत + ई (प्रत्य॰)] १ महत का भाव | क्रि० प्र०-बाना ।- उतरना ।-चढ़ना ।-दिखाना । २ महत का पद । मुहा -मस्ती झड़ना = मस्ती दूर होना । मस्ती झाड़ना = मस्ती कि० प्र० - पाना।-मिलना। दूर करना। महथ-सज्ञा पुं० [सं० महान्त ] 2. 'महत'। उ०-पलटू २ भोग की प्रवल कामना । प्रसग की उत्कट इच्छा । कीन्हो दडवत वे बोले कछु नाहि । भगत जो वन महथ से क्रि० प्र०-याना ।-उठना | चढना ।- महना ।—में श्राना । नरक पर सो जाहि ।-पलटू०, भा० ३, पृ० ११४ । मुहा०- मस्ती निकालना = प्रसग करके वीर्यपात करना। सभोग महदसा-राशा पुं० [अ० मुहदिस ] हदीस अर्थात् पंगवर की कही करके वीर्य स्खलित करना। हुई वातो का जाननवाला विद्वान् । उ०-मदम के देह हात ३ वह स्राव जो कुछ विशिष्ट पशुप्रो के मस्तक, कान, आँख, मे जाम शाह । कहा यो जबान खोल वहराम शाह । - दविखनो०, श्रादि के पास मे कुछ विशिष्ट अवसरो पर, विशेपत उनके पृ० २६० मस्त होने के समय होता है। मद । जैसे, हाथो की मस्ती, महदी -सना ग्री० [हिं० मेंहदी ] 'मेहदी' । उ० ऊंट की मस्ती। वल्ली विरप वरग। महदी नप जावक रग पग | -पृ. क्रि० प्र०-टपकना-पहना। रा०, ६७८१२। ४ वह स्राव जो कुछ विशिष्ट वृक्षो अथवा पत्थरो प्रादि में से महॅन-अध्य० [ मं० मध्य ] मे । उ०-एहि महँ रघपति नाम कुछ अवसरो पर हाता है। जैरो, नीम की मस्ती, पहाड उदारा । अति पावन पुरान श्रुतिमारा।-राम०, पृ० १० । की मस्ती। महॅई@ - वि० [सं० महा अथवा म० महति, माति या महत्, क्रि० प्र०-टपकना । बहना। प्रा० महइ, महई ] महान् । भारी। उ०-विदित पठान ५ अभिमान । धमड । गर्व । गरूर । ६ युवावस्था का मद । राज महं रहई । रहे पठान प्रबल तह महई।-(शब्द॰) । जवानी का नशा। महई - अव्य० [ सं० मध्य ] दे० 'मह' । मस्तु-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ दही का पानी । २ छेने का पानी । महक-महा स्त्री॰ [प्रा०] 20 'महक। मस्तुलुग-सचा पुं० [सं० मस्तुलुङ्ग ] मस्तिाक । मगज । महकना-क्रि० अ० [हिं० महँक + ना (प्रत्य॰)] दे० 'महकना' । मुप नाग-
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।