पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५७५

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मलमास । दौंगरा। लॉगियामिर्च ४५४२ लोट लौंगियामिर्च-सज्ञा स्त्री० [हिं० लौंग + इया(प्रत्य॰) + मिर्च ] एक लोकांतिक-सझा पुं० [सं० लोकान्तिक ] जनो के अनुसार वे स्वर्गस्थ प्रकार की बहुत कडवी मिर्च जिसका पेड बहुत वसा और फल जीव जो पांचवें स्वर्ग ब्रह्मलोक में रहते हैं। ऐसे जीवो का जो छोटे छोटे होते हैं । इसे मिरची भी कहते हैं । दूसरा अवतार होता है, वह प्रतिम होना है और नमके उपरांत फिर उन्हें अवतार धारण करने की प्रारश्यवना नहीं लौड़ा- सशा पुं० [सं० लिङ्ग वा देश० ] पुरुष की मूद्रिय । रह जाती। लौंदिया-सहा स्त्री० [हिं० लौंडी+पा (प्रत्य॰)]। दे० 'लौडी'। उ०-तेकर होइवो लौंडिया, जे रहिया वाव हो।-धरनो०, लौका -सज्ञा पुं० [सं० लावुक ] [स्रो० लौकी ] कह । उ०-भइ पृ० १२७॥ भूजी लौका परवती। रांता कीन्ह पाटि के रती-जायमी (णन्द०)। लौड़ी -सज्ञा स्त्री० [हिं० लोहा ] दासी। मजदूरनी। उ०-मन लोकायतिक-सशा पुं० [ म० ] वह जो चार्वाक मत को मानता हो । मनसा द्वे लोडी निकारि डारो, मारो हफार तृप्णा कुबुधि कुबाद नास्तिक । भौतिकवादी (को०] । की।-कवीर (शब्द०)। लौकिक-वि० [40] १. लोक मवधी । गासारिक । २ पार्थिव । लौंद - सज्ञा पुं॰ [सं० लब्ध या लब्धि = ( प्राप्ति ) ?] अधिमास । भौतिक । ३ व्यावहारिक । ४ सामान्य । साधारण । प्रचलित । सार्वजनिक । लौदा-सज्ञा पुं० [हिं० लव (= वालू) ] वह पानी जो ग्रीष्म ऋतु में वर्पा मारभ होने से पहले वरसता है । लवंदरा । लवद । लौकिक-सपा पुं० १ सात मात्रामा के छंदो का नाम । ऐसे छद इक्कीम प्रकार के होते हैं। २ सांसारिक व्यवहार । लाक- व्यवहार या चलन (को०)। लौदाल- -सहा पुं० [सं०] दे॰ 'लोदा'। लौकिकन्याय- सशा पुं० [सं० ] लोक मे पाला जानेवाला नियम । लौदी-सज्ञा स्त्री॰ [ देश०] वह करछी जिससे खंडसार मे पाक चलाया साधारण नियम। जाता है । (बुंदेला)। लौकिकाग्नि-समा स्त्री० सं०] अग्नि जिसका विधिपूर्वक सस्तार लौन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लवन ] १. दे० 'लवन' । २ दे० 'लौंद' न हुया हो। सामान्य श्रग्नि । लौन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लवण ] दे० 'लोन' । उ०-तैसो इह कहिए लौकिकन-वि० [ म० ] लोरव्यवहार को जाननेवाला [फो०] । भब कौन। दाघे पर जस लागत लौंन ।-नद० ग्र०, लौकी-सरा स्त्री० [सं० लावुक ] १ कद्द, । घीया । २. पाठ की पृ० १७१। वह नली जिसे भवके में लगाकर मद्य सुमाते हैं। लो-सञ्चा श्री० [सं० दावा ] १ आग की लपट । ज्वाला । उ०- जोरि जो धरी है वेदरद द्वारे तीन होरी, मेरी विग्हागि की लोक्य वि० [सं० १ लौकिक । पार्थिव । २ माघारण । सामान्य । प्रचलित (को०] । उलू कनि लौ लाइ प्राव ।-पद्माकर (शब्द०)। २ दीपक की टेम । दीपशिखा। लोगादि -सक्षा पुं० [सं० ] धर्मशास्त्र के कर्ता एक प्राचीन प्राचार्य का नाम। लौ'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लाग] १ लाग। चाह । राग । उ०-लो इनकी लागी रहै निज मन मोहन रूप। तात इन रसनिधि लौज-सा पुं० [अ० लोज़ ] १ वादाम । २ एक प्रकार की मिठाई लयो लोचन नाम अनूप ।- रसनिधि (शब्द०)। २ चित्त की जो काटकर तिकोनिया वरफी के प्राकार की बनाई जाती है। वृत्ति । इसमे प्राय वादाम पीसकर डालते हैं। यौ०-लोलीन% किसी के ध्यान मे हुवा हुमा या मस्त । उ०-- यो०-लौजात को गोट = वह ऐंठ की गोट जो समोसे के जोहो खसम न चीन्हें बावरी पर पुरुष लोनीन । कहहिं कवीर पुकारि पर बनाई जाती है। के परी न बानी चीन्ह । -कवीर (शब्द०)। लौजीना-सज्ञा पुं० [अ० लोजोना ] १ वादाम का हलवा । २ ३ अाशा | कामना । उ०-लो लगी लोयन में लखिवे की उते पिस्ते बादाम से बनी मिठाई फो०] । गुरु लोगन को भय भारी।-सुदरीसर्वस्व शब्द०)। लौजोरा@--सक्षा पुं० [हिं० लो+जोरना ] पीतल या कांसे के क्रि० प्र०—लगना ।—लगाना। कारखाने में वह काम करनेवाला जी भट्ठो के पास बैठा हुधा लौ-सज्ञा पुं० [सं० लोलक ] कान का लटका हुआ भाग । लोलकी । यह देखता रहता है कि धातु गल गई या नहीं।'धातु गलानेवाला। लौमा-सज्ञा पुं० [सं० लावुक ] कद्द । घीमा । लौट :-सज्ञा स्त्री० [हिं० लौटना ] लौटने की क्रिया, भाव या ढग । लोकना--क्रि० स० [सं० लोफन ] दूर से दिखाई देना। उ०-मनि घुमाव । मुडना । उ०-करु उठाय धूघुट करत उभरत पट कुहल झलकै प्रति लोनै । जजु काँधा लोकहि दुइ कोने । गुझरोट । सुख मोटें लूटी ललन लखि ललना की लौट ।- जायसी (शब्द०)। बिहारी र०, दो० ४२४ ॥