co 1 लोभना लोमलसाघर लोभना'-क्रि० स० [सं० लोभन ] लुभाना । मुग्ध करना । लोमन-सञ्ज्ञा पुं० [ ] गंज नामक रोग । इंद्र गुप्तक । लोभनीय-वि० [सं० ] लुमानेवाला । आकर्षक (को०] । लोमड़ी -सज्ञा स्त्री० [स० लोमशा ] कुत्ते या गीदड की जाति का लोभविजयी-सचा पुं० [सं० ] वह राजा जो असल मे लडाई न एक जतु जो ऊचाई मे कुत्ते से छोटा होता है, पर विस्तार मे लवा। करना चाहता हो, कुछ धन प्रादि चाहता हो। विशेप-भारतवर्ष की लोमडी का रंग गीदड सा होता है, पर विशेप-कौटिल्य ने लिखा है कि ऐसे को कुछ घन देकर मित्र वना लेना चाहिए। यह उमसे बहुत छोटी होती है। इसकी नाक नुकीली, पूछ झवरी और आँखें बहुत तेज होती हैं और यह बहुत तेज लोभानाg+ --क्रि० स० [हिं० लोभाना का सक० ] मोहित करना । भागनेवाली होती है । मच्छे अच्छे कुत्ते इसका पीछा नहीं कर मुग्ध करना । उ-मांगहु वर बहु भांति लोभाए। परम धीर सकते । चालाकी के लिये यह बहुत प्रसिद्ध है । ऋतु के अनुसार नहिं चले चलाए।—तुलसी (शब्द॰) । इमका रोवां झडता और रग बदनता है। यह कीड़े मकोडो लोभाना-क्रि० प्र० मोहित होना । मुग्ध होना । उ०-(क) अस और छोटे छोटे पक्षियो को पकडकर खाती है। अन्य दशो मे विचारि हरि भजत मयाने । मुक्ति निरादरि भगति लोभाने ।- इसकी अनेक जातियां मिलती है। अमेरिका मे लाल रंग की तुलसी (शब्द०) । (ख) वहुरि भगवान को निरखि सुदर परम एक लोमडी होती है, और पीतफटिबध प्रदेशो में काले रग को कह्यो एहि माहि है सब भगई। पैन इच्छा इन्हें है कछू वस्तु लोमडी होती है, जिसके रोएँ जाडे मे सफेद रंग के हो जाते है। की, अरुन ए देखि मोहइ लोभाई । —सूर (शब्द॰) । कही कही विल्कुल काली लोमडी भी होती है। उन सबके लोभार-वि० [हिं० लोभ + पार (प्रत्म०) ] लुभानेवाला । मुग्ध वाल या रोएँ बहुत कोमल होते हैं, और उनका शिकार उनकी करनेवाला । उ०-वय किशोर वय तहित बरन तन नख सिख खाल के लिये किया जाता है, जिसे समूर या पोस्तीन कहते अग लोभारे । है चितु के हित ले सब छवि वितु विघि निज है । शीतकटिबध प्रदेश की लोमडिया विल बनाकर झुड मे हाथ संवारे ।--तुलसी (शब्द॰) । रहती हैं। यूरोप को लोडियां बडी भयानक होती है । वे गांगो लोभित--वि० [सं० ] लुब्ध । मुग्ध । लुभाया हुया । उ०--नलिन मे घुमकर अगूर आदि फलो का और पालतू पक्षियो का नाश पराग मेध माधुरि सो मुकुलित अव कदव । मुनि मन मधुप सदा कर देती हैं। भारत की लोमडी चैत बैसाख में बच्चे देती है। रस लोभित सेवत अज शिव अव ।--सूर (शब्द॰) । बच्चो को सख्या पांच छह, होती है, मौर वे डेढ वर्ष मे पूरी लोभी--वि० [सं० लोभिन् ] [ वि० सी० लोभिनी ] १ जिसे किसी वाह को पहुंचते हैं। इनकी आयु तेरह चौदह वर्ष की कही वात का लोभ हो। उ०--नए नए हरि दरसन लोभी श्रावण शब्द रसाल । प्रथम ही मन गयो तनु तजि तव मई वेहाल ।- लोमपाद--सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] अग देश के एक राजा का नाम । (शब्द०)। २ वहुत अधिक लोभ करनेवाला। लालची। ३ विशेप-यह राजा दशरथ के मित्र थे। एक बार इन्होन ब्राह्मणो लुब्ध । लुभाया हुआ । उ०-ए कैसी है लोभिनी छवि धरति का अपमान किया । उससे क्रोध कर ब्राह्मण उनका देश छोडकर चुराई । और न ऐसी करि सके मर्यादा जाई । —सूर (शब्द०)। चले गए। ब्राह्मणो के चले जाने से अग देश मे अवर्षण पडा। लोभ्य-वि० [ ] पाकर्पक । लोभनीय (को०] । इसके निवारणार्थ राजा लोमपाद ने ऋष्यशृग को राज्य मे लोम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ शरीर भर के छोटे छोटे बाल । रोवां । बुलाकर अपने मित्र दशरथ की कन्या, जिसका नाम श्रोता रोम । उ०-शतशत इद्र लोम प्रति लोमनि । शत लोमनि मेरे था, प्रदान की, जिससे अनावृष्टि दूर हो गई। इन्हें रोमपाद इक लोमनि । —सूर (शब्द॰) । २ वाल । जैसे,—गोलोम । भी कहते हैं। ३ पूंछ 'को०) । ४ । मन (को॰) । लोमपादपुर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] चपा नगरी जिमे अब भागलपुर लोम-सज्ञा पुं० [सं० लोमश ] लोमडी। उ०-भूपन भनत भारे कहते हैं। भालुक भयानक हैं भीतर भवन भेर लीलगऊ लोम हैं।- लोमफल-सचा पुं० [सं०] रोएँदार फल | भव्य नामक फल [को०) । भूषण (शब्द०)। लोममणि-सा पु० [सं० ] बाल से वना रक्षाकवच । लोमकरणी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. जटामासी । २ मांसी नामक घास। लोमयूक-संज्ञा पुं० [सं० ] जूं । यूका [को०] । लोमकर्कटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] अजमोदा । लोमरध्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लोमरन्ध्र ) दे० 'रोमकूप' [को०] । लोमकर्ण- ] शशक । खरगोश । लोमरा-वि० [हिं० लोमडी ] डरपोक । भग्गू । कायर । (उपेक्षा०) । लोमकी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लोमकिन् ] एक पक्षी (को०] । लोमराजि-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] रोमावलि (को०] । लोमकीट-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] जू (को०] । लोमरी-सझा सी० [सं० लोमशा ] ३० 'लोमडी'। लोमकूप-सञ्चा पुं० [ सं० ] शरीर में का वह छिद्र जो रोएँ की जड लोमगेग-सज्ञा पुं० [सं०] गज रोग। गजा होने का रोग । वह मे होता है। लोमगर्त । रोग जिसमे बाल झड जाते हैं (को०। लोमगर्व-सशा पुं० [सं०] दे० 'रोमकूप' (को०] | लोमलताघर-सज्ञा पु० [सं०] पेट । उदर । तोद (को०] । 1 & -सझा पुं० म०
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५६९
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