d म० प्रादेशिक । लोकनाथ ४३२० लोकविश्रुत को भूमि पर गिरने से पहले हो हाथो से पकड लेना । २ बीच लोकमाता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० लोकमातृ ] १. गौरी। पार्वती। २ मे से ही उडा लेना। उ०—जाते जेर सब नोक विलोकि रमा । लक्ष्मी [को॰] । ग्रिलोचन मो विप लोक लियो है । —तुलसी (शब्द०)। लोकमार्ग-सझा पुं० [सं० ] सर्वस्वीकृत प्रथा [को०] । क्रि० प्र०-लेना। लोकयज्ञ सज्ञा पुं॰ [स०] जनता के समर्थन को इच्छा । लोकपणा [को०] । लोकनाथ-मज्ञा पुं० [स०] १ ब्रह्मा । २ लोकपाल । ३ बुद्ध । लोकयात्रा-सहा स्त्री॰ [ स०] १ व्यवहार । २ व्यापार । ३. लोकनी -सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'लोकदी'। क्रम । सासारिक अस्तित्व (को०)। ४. जीवनयापन का साधन । लोकनीय-वि० [सं० ] देखने योग्य । अवलोकनीय [को॰] । योगक्षेम (को॰) । लोकनेता-सञ्ज्ञा पुं० [ मै० लोकनेतृ ] शिव [को०] । लोकप, लोकपति सज्ञा पुं० [सं०] १ ब्रह्मा। २ दिक्पाल । लोकरंजन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० लोकरञ्जन ] लोकप्रियता । सवको प्रमन्न नरेश । लोकपाल । ३ राजा। रखना [को॰] । लोकपक्ति-सका सी[सं०] मानव का आदरभाव । सहज समान [को०] । लोकरक्षक-सज्ञा पुं॰ [ स० लोकरक्षक ] राजा । शासक [को०] | लोकपथ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] सर्वसमत मार्ग । समाज द्वारा मान्य लोकरव-सञ्ज्ञा पुं० [ ] अफवाह । प्रवाद । मामान्य चलन (को०)। लोकरा-सज्ञा पुं० [ देश चीथडा । लोकपद्धति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ । दे० 'लोकपथ' [को॰] । लोकरावण-वि० [सं० ] जनता या प्रजा का उत्पीडक [को०] । लोकपरोक्ष-वि० [ म• ] समार से परे वा छिपा हुआ। गृप्त (को०] । लोकल-वि० [अ०] १ प्रातिक । प्रादेशिक । २ किसी एक ही स्थान लोकपाल-मज्ञा पुं० [सं०] १ दिक्पाल । जिले, नगर या प्रदेश प्रादि से सबध रखनेवाला। स्थानीय । विशेप-पुराणानुसार पाठ दिशामो के अलग अलग लोकपाल है। यथा-इद्र पूर्व दिशा का, अग्नि दक्षिणपूर्व का, यम दक्षिण यौ०-लोकल बोर्ड । लोकल गवर्नमेंट । का, सूर्य दक्षिणपश्चिम का, कुवेर उत्तर का और सोम उत्तर- लोकल वोर्ड -सचा पुं० [अ०] वह स्थानीय समिति जिसके सम्यो पूर्व का । किसी किसी प्रथ मे सूर्य और सोम के स्थान पर का चुनाव किसी स्थान के कर देनेवाले करते हो और जिसके निति और ईशानी या पृथ्वी के नाम मिलते अधिकार में उस स्थान की सफाई आदि की व्यवस्था हो । २ अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का एक नाम । ३ नरेश । राजा। नृपति । उ०-दिगपालन की भुवपालन की लोकपालन को किन लोकलीक-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० लोक + लीक ] लोकमर्यादा । उ०- सरस असम सर सरसिज लोचनि विलोकि लोकलीफ लाज मातु गई च्चै । -केशव (शब्द००)। लोपिवे को पागरी। केशव (शब्द॰) । लोकपितामह - सज्ञा पुं० [सं० ] ब्रह्मा । लोकलेख लोकप्रकाशन - सधा पुं० [सं०] १ सार्वजनिक अभिलेख या दस्तावेज । -सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] मूर्य [को०] । २ सामान्य पत्र (को०] । लोकप्रत्यय-सज्ञा पुं० [ ] वह जो ससार मे मर्वत्र मिलता हो । लोकलोचन-सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य [को॰] । लोकप्रदीप-सज्ञा पुं० [सं०] बुद्ध । लोकवचन-सज्ञा पुं० [सं०] जनश्रु ति । अफवाह (को॰] । लोकप्रवाद-सज्ञा पुं० [ ] जिसे समार के सभी लोग कहते और लोकवर्तन - सझा ० [सं० ] विश्व के पोपण का प्राधार या समझो हो । साधारण बात । साधन (को०] । लीकप्रसिद्ध-वि० [सं०] मब पर प्रकट | लोगो मे ख्यात । सर्व- लोकाद-सज्ञा पु० [सं०] १ जनश्रुति । अफवाह । २ सर्वसाधा- विदित । उजागर (को०] । रण की चर्चा का विषय । मवविदित विवरण (को०] । लोकबंधु - - सज्ञा पुं० [सं० लोकबन्धु ] १ शिव । २ सूर्य । लोकवार्ता 1-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'लोकवाद' [को॰] । लोफबांधव सज्ञा पुं॰ [ स० लोकवान्यव ] दे० 'लोकबघु' को०] । लोकविद्विष्ट-व० [सं० ] सबका अप्रिय । जिससे सारा समार घृणा लोकवाद्य-वि० [सं० ] १ समाज से बहिष्कृत । जातिच्युत । करता हो [को॰] । अजाती । २. ससार से विपरीत मत रखनेवाला । सनकी [को०] । लोकविधि-सज्ञा पुं० [ ] १ समाजसमत मर्ग। प्रशस्त पय । लोकभा-वि० [सं० लोकभर्तृ ] जगत् का पालक । ससार का पालन २ विश्व का स्रष्टा । ब्रह्मा को०] । पोपण करनेवाला (को०] । लोकविनायक-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] लोगो का अधिपति देवतावर्ग (को०] | लोकभावन-वि० [सं०] मसार का कल्याण करनेवाला (को०] । लोकविभ्रम-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'लोकव्यवहार' (को०] । लोकमर्यादा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] प्रचलित या समाज द्वारा स्वीकृत लोकविरुद्ध-वि० [सं०] जो लोकाचार के विपरीत हो (को॰] । रीति रिवाज या प्रथा [को०] । लोकविश्रु त-वि० [सं० ] ससार भर में प्रसिद्ध । जगद्विख्यात । BO HO HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५६१
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