पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५५७

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1 लेवार ४३१६ लेहन ७ कथरी। लेपनारक्रि० स० [सं० लेखन ] दे० 'लिखना'। उ०-सीय लेवा-वि० [हिं० लेना ] लेनेवाला । जैसे,—नामलेवा । जानलेवा । स्वयवरु माई दोक भाई पाए देपन । सुनत चली प्रमदा विशेप-इस अर्थ मे इसका व्यवहार केवल यौगिक शब्दो के प्रत प्रमुदित मन, प्रेम पुलकि तन मनहुं मदन मजुन मेषन । निरपि मे होता है। मनोहरताई सुपुमाई कहैं एक एक सो भूरि भाग हम धन्य यौ०-लेवा देई = लेनदेन । आदान प्रदान । उ०-अपनो काज पालो ए दिन एपन । तुलसी महज सनेह सुरग सब, सो समाज चित चित्रसार लागी लेपन |- तुलसी (शब्द०)। संवार सुर सुनि हमहि बनावत कूप । लेवा देई बरावर मे है कौन रक को भूप।-पूर (शब्द॰) । लेपनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० लेखनी ] दे० 'लेखनी' । लेपे ।-सज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'लेखे' । लेवार-सज्ञा पुं॰ [ स० ] अग्रहार । लेष्ट-सज्ञा पुं० [सं०] मिट्टी का ढोका [को०) । लेवार-सचा पु० [हिं० लैब ] लेव । गिलावा । यौ०-लेटभेदन = मिट्टी के ढोके तोडन का प्रौजार । लेवारना -क्रि० स० १ दे० 'लेबरना' । २ दे० लेवरना'। लेश' उ०—(क) लरिका और लेवाल-सुझा पुं० [हिं० लेना+वाल (प्रत्य॰)] लेने या खरीदने- लेसा'- वि० [ स० लेश ] दे० पढत शाला मे, तिनहिं करत उपदेश । हरि को भजन वाला। करा सबही मिलि पार जगत सब लेस । —सूर (शब्द॰) । लेवी --सचा स्त्री० [अ०] १ एक प्रकार का दरबार जो विलायत मे (ख) राज देन कहि दान वन, माहिं न सो दुख लेस । तुम्ह राजा लाग और हिंदुस्तान में वायसराय करते थे। २ उद्देश्य- बिन भरतहि भूपतिाह प्रजाह प्रचड कलेस । तुलसी (शब्द॰) । विशेष से खडी को हुई पल्टन । जैसे,----मकरान लेवी कोर । विशेप दे० 'मिलिशा'। लेस '-सहा जी० [अ०] १ कलावत्तू या किनारे पर टोकने की इसी प्रकार की और कोई पटरी। गाटा। २. वेल । लेश'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ अणु । २ छुटाई । सूक्ष्मता । ३ चिह्न । निशान। उ०-राम सच्चिदानद दिनेसा। नहिं तह यौ०-लेसदार = (१) वेलदार। जिसपर बेल लगो हो। (२) मोहनिसा लवलेगा।-तुलसी (शब्द०)। ४ ससर्ग। गाटेदार | जिसपर गाट टंकी हो । लगाव | सवष । उ०—जो कोइ कोप भर मुख वैना लस -सक्षा पु० [हिं० लासा ) १ मिट्टी का गिलावा जो दीवार सनमुख हतं गिरा सर पैना। तुलसी तक लेस रिस नाहीं। पर लगाने के लिये बनाया जाता है। २. किसी वस्तु को सो सोतल कहिए जग माही।-तुलसी (शब्द०)। ५ एक पानी में घोलकर गाढा किया हुमा । गिलावा । चेप । लस । अलकार, जिसमे किसी वस्तु के वर्णन के केवल एक ही भाग यौ 10-लेसदार = लसीला । चिपचिपा । या अश मे रोचकता पाती है। ६ एक प्रकार का गाना। लेसक-सञ्ज्ञा पुं० ] गजारोही । हाथी का सवार [को॰] । ७ समय का एक मान जो दो 'कला' ( (कुछ के मत से १२ कला ) के बराबर होता है (को॰) । लेसना'-क्रि० स० [ सं० लेश्या ( = प्रकाश) ] जलाना। एहि विधि लेसइ दीप तेजरासि विज्ञानमय । जातहि जासु लेश-वि० अल्प थोड़ा। ममीप जरहिं मदादिक सलभ सब ।-तुलसी (शब्द॰) । लेशिफ-सचा पु० म० ] घास काटनेवाला । घसियारा (को॰] । क्रि० प्र०-देना। लेशी-वि० [ स० लेशन् ] सक्ष्म अश से युक्त । लवलेशवाला [को०] । लेसना-क्रि० स० [हिं० लेस या लस ] १. किसी चीज पर लेस लेशोत-वि० [ स०] इ गित मात्र । सकेतित । इशारे मे या दवी लगाना । पोतना। २ घर की दीवार पर मिट्टी का गिलावा जबान से सुझाया हुया । सक्षेप मे कहा गया (को०] । पोतना । कहगिल करना । ३. चिपकाना। सटाना। ४ इधर लेश्य-सज्ञा पुं० [सं० ] प्रकाश [को०] । की बात उधर लगाना । चुगलो खाना। ५. दो आदमियो मे लेश्या-सशा सी० [सं०] १ जैनियो के अनुसार जीव की वह विवाद उत्पन्न करने के लिये उन्हे उत्तजित करना। अवस्था जिसके कारण कर्म जीव को बांधता है। यह छह लेसिक-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] दे॰ 'लेसक' [को॰] । प्रकार की मानी गई है-कृष्ण, नील, कपोत, पोत, पन लेसो-सचा पु० [ .] छह ढोली पान का एक गट्ठा। लेह-सञ्ज्ञा पुं० [सं०१ दे० 'अवलेह' । २ लेहन करनेवाला विशेष-इसे जैन लोग जीव का पर्याय भी मानते हैं । (को०) । ३ खाना । आहार। भोजन (को०)। ४ ग्रहण का २ प्रकाश (को०)। एक भेद जिसमे पृथ्वी की छाया ( या राहु ) सूर्य या चद्रविव लेप@-सञ्ज्ञा पु० [सं० लेश | दे० 'लेश'। को जीभ के समान चाटता हुमा जान पड़ता है। लेपपु-सज्ञा पुं॰ [ मे० लेख ] दे० 'लेख' । लेह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ दश० ] लोध नामक वृक्ष । विशेष दे० 'लोध' । लेपनाह'-क्रि० स० [हिं० लखना ] दे० 'लखना' । उ०-दुख लेहन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] [ वि० लेहक, लेह्य ] चाटना । उ०—जहं सुख अरु अपमान बडाई। सब सम लेषहिं विपति विहाई । जह भीर परत भक्तन को तह तह होत सहाय । प्रस्तुति कार -तुलसा (शब्द०)। मन हरप बढ़ायो लेहन जाभ कराय।-सूर (शब्द०)। ao दशक और शुक्ला