४३०६ - लुबुध लुन'- पुं० [सं० ] चोरी का माले । चौर्य का धन । होना । अत्यत रागयुक्त होना । मोहित होना। आकर्षित लुप्रोपमा-सा रखो [ म० ] वह उपमा अलकार जिसमे उसका होना। रीझना। उ०—कूबरी के कौन गुन पं रहे कान्ह कोई प्रग (जैसे,—उपमेय, धर्म, वाचक प्रव्द ) लुप्त हो, लुभाइ ।—सूर (शब्द०)। २ लालसा करना। लालच मे प्रर्थात् न कहा गया हो। पडना । ३ तन मन की सुध भूनना । मोह में पडना । लुबाप-वि० [ स० लुब्ध ] लोनुन । दे० 'तुच' । उ०—काम लुवध सयो० क्रि०-जाना । बोनी सब का मनि ।-पृ० २०, ११४१०॥ लुभाना-क्रि० स० १ लुब्ध करना । अत्यत रागयुक्त करना । अपने लुबरी-पमा रसी० [अ० लुब (= लासा)] किसी तरल पदार्थ के ऊपर गहरा प्रेम उत्पन्न कराना। मोहित करना। रिझाना । नीचे को बैठी हुई मैल । तरौंछ । गाद । २ प्राप्त करने की गहरी चाह उत्पन्न करना । ललचाना। लुबुध-वि० [सं० लुच ] दे० 'लुब्य' । उ०-व्याध बिशिख जैसे,—उसको कारीगरी ने हमे लुभा लिया। २ सुध वुध बिलोक नहिं कन गान लुथ कुरग । —तुलसी (शब्द॰) । भुलाना । भ्रात करना । मोह मे डालना। उ०—सूर हरि की २-सा पुं० लुब्धक । अहेरी । बहेलिया । प्रबल माया देति मोहिं लुभाय । -सूर ( शब्द०)। लुवुधना-क्रि० प्र० [हिं० लुबुध+ना (प्रत्य॰)] लुब्ध होना । सयो० कि०-लेना। माहित होना। लुभाना। उ०-बोन नाद सुनि लुबु मृग लुभित-वि० [हिं० लुभाना ] १. क्षुब्ध । २ मुग्ध । मोहित । ३ ज्यो त्या भइ दमा हमारी। -सूर (शब्द॰) । (ख) भंवर न लुब्ध । ललचाया हुया [को०] । उटहिं जो लुबुरे वासा ।-जायसी (शब्द॰) । लुर'-वि० [ फ़ा० ] उजड्ड । घामड । मूर्ख । बुद्धिहीन (को०] । सयो० क्रि०जाना। लुर-सज्ञा स्त्री० [ देश० ] गुर । शकर । समझ । लुदुधा-वि० [सं० लुब्ध, या नुब्धक ] १ लोभी। लालची। २ चाहनवाला । इच्छुक । प्रेमी। उ०-घालि नैन मोहि लुरकना -क्रि० अ० [ सं० लुलन ( = झूलना ) ] अयर में टंगकर राखिय, पल नहिं की जय ओट । पेम क लुबुधा पाव मोह, हिलन। डोलना । नीचे की ओर मुकना । लटकना । भूनना । काह नो वड का छाट ।-जायसी (शब्द०)। लुरका-सज्ञा पु० [हिं० लुरकना ( = लटकना) ] झुपका । लुब्ध'-वि० [सं०] १ लोभयुक्त । प्रवल आकाक्षायुक्त । अत्यत राग- लुरकी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लुरकना ( = लटकना ) ] कान मे पहनने युक्त । लुभाया हुआ। ललचाया हुआ। २ तन मन की सुध की बाली । मुरको । उ०—देव जगामग जातिन का लर मोतिन भूला हुमा। माहित । उ०—जाके पदकमल लुव्य मुनि मधुकर की लुरकीन सो नाघो।-देव ( शब्द०)। निकर परम सुगति हू लोभ नाहिन । -तुलसी (शब्द॰) । लुरकी -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० लोदा | दे० 'लुदकी' । लुब्ध -संज्ञा पुं० १ व्याव । बहेलिया । लुन्धक । २ कामुक (को॰) । लुरनाg+-क्रि० भ० [ स० लुलन ( = झूलना)] १ कार से नीचे तक चली आई हुई वस्तु का इधर उधर हिलना होलना । लुब्धक-सरा पु० [ ] १ पशु पक्षियो को लालच दिखाकर पकद लेनेवाला। च्याय। बहेलिया। शिकारा | उ.-मूरदास लटकना । झूलना । लहरना । उ०—(क) छतियां पर लोल प्रभु मा मेरी गांत जनु नुन्धक कर मीन तस्घो।—सूर (शब्द०)। लुर अलक सिर फूल अरुझि सो यो दुति है।-(शब्द॰) । २ उनसे गोरा वा एक बहुत तेजवान तारा । (आधुनिक) । (ख) झाक पलक बिथुरी अलकै अरु हार लुरै मुकुता गल मे :- ३ लालची प्रादमो। लागी व्यक्ति (को०)। ४ वह व्यक्ति सु दर ( शब्द०)। २ ढल पडना । झुक पडना । टूट पड़ना । जा अत्यत रागी वा कामुक हा (को०)। ५ पिछला भाग । पीछे ३ कही से एकबारगी पा जाना । उ०—ब्रह्म को बिभूति, का हिरसा (को॰) । करतू त विश्वकर्मा की, साहिबी सकल पुरहूत की लुरै परी।- (शब्द०)। लुब्धना-फ्रि० अ० [ स० लुन्य ] दे० 'लुवुधना' । लुब्धापति--सज्ञा स्त्री० [स०] केशव के अनुसार प्रोड़ा नायिका का सयो० क्रि०-पड़ना। चतुर्थ भेद । वह प्रौढा नायका जो पति और कूल के सब ४ श्रापित होना। लुभा जाना। लट्ट होना । प्रवृत्त होना । लोगो की लज्जा करे। यथा, सो लुब्धापति जानिए केशव उ०-सग ही सग बमौ उनके, अंग अगन देव तिहारे लुरी प्रगट प्रमान । कानि कर कुलपति सर्व प्रभुता प्रभुहि समान । है। -देव (शब्द०)। -केशव (शब्द०)। सयो० क्रि०—पड़ना । लुब्ब--मण पुं० [अ०] १ बुद्धि । पाल । २ तत्व या सार लु।रयाना-क्रि० अ० [हि० लुरना ] १ प्रेमपूर्वक स्पर्श करना या भाग। ३ विशुद्ध । खालस । ४ मग्ज । मीगो । गिरी [को०] । अग रखना । प्यार करना। २ एकाएक भा पड़ना । दे० लुब्बलुवाव--सा पु० [अ० लुब्बे लुबाव ] १ गूदा । सार । २ 'लुरना'-३। पिसी बात का तत्व । साराश। लुरियाना-क्रि० स० [हि• ] लुंही करना । लपेटना । लुभाना--फ्रि० प्र० [हिं० लोभ + आना (प्रत्य॰)] १. लुब्य लुरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हि० लेरुवा ( = बछड़ा ?)] वह गाय जिसे HO
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