पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५१९

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लाधव ४२८० लाट 1 लाघव -सज्ञा पुं० [सं०] १. लघु होने का भाव । लघुता। हलकापन लाजभक्त-सज्ञा पुं० [सं०] खोई या लावा का पकाया हुया भात, जो रोगियो को पथ्य मे दिया जाता है। या छोटापन । २ थोडा होने का भाव । कमी । अल्पता। १ हाय की सफाई । फुतों। तेजी। जैसे, हस्तलाघव । ४ लाजमड-सज्ञा पुं॰ [स० लाजमण्ड] लावा का मांड। दे० 'लाजपेया' नपुसकता। ५ आरोग्यता। नीरोगता। तदुरुस्ती । ६ [को०] । विवेक का अभाव । विवेकहीनता (को०)। ७ महत्वहीनता । लाजवत-वि० [हिं० लाज+वत (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० लाजवती] कुछ महत्व का न होना (को०)। ८ चपलता। चचलता। जिसे लज्जा हो। शर्मदार । हयादार। उ०-लाजवत तव जैसे, बुद्धिलाघव (को०)। सहज सुभाऊ । निज गुन निज मुख कहसि न काक ।-मानस, लाघव-अव्य० [स०] फुरती से। जल्दी से। सहज मे। उ०-प्रति ६।२६ । लाघव उठाय धनु लीन्हा ।—तुलसी (शब्द०)। लाजवती-सज्ञा स्त्री० [सं० लज्जावती, हिं० लजालू] लजालू नाम का लाघवकारी-वि० [सं० लाघवकारिन् ] क्षुद्र । अपमानजनक । पौधा । छुईमुई। अशोभन । लाजवर्त-सज्ञा पुं० [फा० लाजवर्द] दे० 'लाजवर्द'। उ०-जनु लाप विक—वि० [सं० ] लघु । छोटा [को०] । लाजवर्त शिला जटित चुन्नीन राजी सोहती।-प्रेमघन०, लाघवी@'-सचा पुं० [सं० लाघव + ई (प्रत्य॰)] फुर्ती । शीघ्रता । भा०१, पृ० ११७ । लाघवी-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० लाघविन् ] जादूगर [को०] । लाजवर्द-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] १. एक प्रकार का प्रसिद्ध कीमती पत्थर जिसे सस्कृत में 'राजवर्तक' कहते हैं। रावटी। लाचार-वि॰ [फा०] १ जिसका कुछ वश न चलता हो। विवश । मजवूर । २ असहाय । अशक्त । दीन दुखी। विशेष-यह जगाली रग का होता है और इसके ऊपर मुनहले लाचार--क्रि० वि० विवश होकर । मजबूर होकर । छींटे होते है । यह वातज रोगों के लिये वलकारो और उन्माद आदि रोगों में उपकारी माना जाता है। आँखो में सुरमा लाचारी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० ] लाचार होने का भाव । मनवूरी। लगाने के लिये इसकी मलाई भी बनती है जो बहुत अधिक विवशता। गुणकारी मानी जाती है। लाची-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० इलायची ] दे० 'इलायची' । २०-करत २ विलायती नील जो गंधक के मेल से वनता और बहुत वढिया प्रनामासीस पान लाची त्यों वितरित ।-प्रेमघन०, भा० १, होता है। पृ० ३३॥ लाजवर्दी-वि० [फा०] लाजवर्द के रंग का । हलका नीला। लाचीदाना-सशा ० [हिं० इलायची+दाना] खाली चीनी की एक प्रकार की मिठाई जो छोटे छोटे गोल दानो के आकार की लाजवाब-वि० [फा०] १ जिसके जोड का और कोई न हो । होती है। कभी कभी इसके अदर सौंफ या इलायची का दाना अनुपम । बेजोड़ । २ जो कुछ जवाब न दे सके। निरुत्तर । चुप । खामोश । भी भरा होता है । इलायची दाना । क्रि० प्र०—करना ।—होना । लाछन-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० लाञ्छन] दे० 'लायन' । लाछो-सझा स्त्री० [सं० लक्ष्मी, प्रा० लच्छि, लछ छी, बँग० लक्खी लाजशक्त-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] खोई या लावा का सत्त । (लाखी ? )] लक्ष्मी। लाजहोम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का होम लाज'-सशा स्त्री॰ [सं० लज्जा] लज्जा । शर्म । या । जिसमें खोई या धान का लावा पाहुति मे दिया जाता था। क्रि० प्र०-प्राना।-करना । लाजा-सशा सी० [सं०] १ चावल । २ भूनकर फुलाया हुआ धान । मुहा०-लाज रखना=प्रतिष्ठा बचाना | पाबरू खराब न होने खील । लावा । उ०-अच्छत अकुर रोचन लाजा। मजुल मजरि तुलसि विराजा।—तुलसी (शब्द॰) । देना। लाज से गठरी होना या गड जाना=अत्यत शर्मिदा होना । लज्जा के कारण नीचे सिर किए रहना। यौ०-लाजाहुति = विवाह मे एक प्रकार का होम जो धान के लावे से होता है । लाजाहोम = लाजहोम । लाज-सज्ञा पुं॰ [स०] १ खस । उशीर । २ पानी मे भीगा हुआ लाजिक-सज्ञा पुं० [अ०] १ तर्क । २ तर्कशास्त्र । चावल | ३ घान का लावा। खील | लाजिम-वि० [अ० लाज़िम] १ जो अवश्य कर्तव्य हो । २ उचित | लाजक-सहा पुं० [सं०] धान का भूना हुआ लावा । लाई । मुनासिब । वाजिब । ३ सबद्ध । लगा हुया । सटा हुआ (को०)। लाजना@f-क्रि० प्र० [हिं० लाज+ना (प्रत्य॰)] लज्जित होना। लाजिमा- वि० [अ० लाज़िमह.] १. पावश्यक वस्तु । जरूरी सामान । शरमाना । उ०—(क) ये अरुन प्रधर लखि लखि विवाफल २ अनिवार्य । लाजिमी [को०] । नाज प्रताप शब्द०)। (ख) जेहि तुरग पर राम विराजे । लाजिमी-वि० [अ० लाज़िम + ई (प्रत्य॰)] जो अवश्य कर्तव्य हो । गति विलोकि खगनायक लाजे । —तुलसी (शब्द॰) । जरूरी । अावश्यक। लाजपेया-सशा स्त्री० [स०] वह मांड जो खोई या लावा उवालन से लाट-सधा पुं० [अ० लार्ड ] १ किमी प्रात या देश का मबसे बड़ा I रोगियो को पथ्य देने में होता है। शासक । गवर्नर। 1 निकले । इसका व्यवहार