लाखा ४२७६ लाघरकोलस (को०। लाखा-मचा पु० [हिं० लाख] १ लाख का बना हुआ एक प्रकार का चलत तेहि बाटा। उतरे जाइ समुद के घाटा ।—जायसी रग जिमे स्त्रियाँ सुदरता के लिये होठो पर लगाती हैं । (शब्द०)। कि०प्र०-जमाना।-लगाना । लागडॉट'-सशा स्त्री० [हिं० लाग(= वर)+डांट] १ शत्रुता । २ गेहूं के पौधो मे लगनेवाला एक रोग जिससे पौवे की नाल लाल दुश्मनी । र । २ प्रतिस्पर्वा । प्रतियोगिता । चढाऊपरी । रग की होकर सड़ जाती है । गेरुग्रा । कुकुहा । लागडॉट-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० लग्नदण्ड ] नृत्य की एक क्रिया । विशेष-यह एक प्रकार के बहुत ही सूक्ष्म लाल रंग के कीड़ो का लागत-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लगना ] वह ग्वर्च जो किसी चीज की समूह होता है । इसे गेरुया या कुकुहा भी कहते हैं । तैयारी या बनाने मे लगे । कोई पदार्थ प्रस्तुत करने मे होनेवाला लाखा-सज्ञा पु० [हिं० लाख (= लक्ष) ] एक प्रसिद्ध भक्त जो व्यय । जैसे,—(क) इस मकान पर १०,०००) लागत आई मारवाड़ देश का निवासी था। है । (ख) तुम्हारा यह लिहाफ कितनी लागत का है ? (ग) लाखागृह-सज्ञा पुं० [सं० लाक्षागृह] दे० 'लाक्षागृह' । तुमसे हम लागत भर लेंगे, मुनाफा नही लेंगे। क्रि० प्र०-श्राना ।-बैठना।- लगाना । लाखिराज-वि० [अ० लाखिराज] (भूमि ) जिसका लगान न देना पड़ता हो । जिमपर कर न हो। जैसे,—लाखिगज जमीन । लागनो'-क्रि० प्र० [हिं० लगना] दे० 'लगना'। लाखिराजी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० लाखिराज+ई (प्रत्य॰)] वह भूमि लागना'-मज्ञा पुं० [हिं० लगना] १. वह जो किसी की टोह मे जिसपर कोई लगान न हो। लगा रहता हो। २. शिकार करनेवाला । अहेरी। उ०- पाँचवं नग सो तह लागना। राजपखि पेखा गरजना। लाखी'-वि० [हिं० लाख+ ई (प्रत्य॰)] लाख के रग का। मटमैला जायसी (शब्द०)। लाल। लाखो-सज्ञा पु० मटमैला लाल रग । लाख का सा रग। लागर-व० [फा० लागर ] दुर्बल । क्षीण (को०] । लाखो-सञ्ज्ञा सी० [हिं० लाख ] लाख के रंग का घोडा। लागरी-सज्ञा स्त्री० [फा० लागरी] दुर्बलता। क्षीणता । कमजोरी लोग-सा सी० [हिं० लगना ] १ संपर्क । सबध । लगाव। ताल्लुक । जैसे,—(क) इन दोनो मे कही से कोई लाग तो लागिg-अव्य० [हिं० लगना] १. कारण। हेतु। २ निमित्त । नही मालूम होती। (ख) यह डडा अधर मे वेलाग खडा लिये। खातिर । वास्ते। उ०—(क) जे देव देवी सेइ अति है। २ प्रम। प्रीति । मुहब्बत । ३ लगावट । लगन । मन हित लागि चित सनमानि के। ते यंत्र मत्र सिखाय राखत की तत्परता । उ०--वरणत मान प्रवास पुनि निरखि नेह की सबनि सो पहिचानि के ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तुमहिं लाग ।--पद्माकर (शब्द०)। ४ युक्ति । तरकीब । उगय । लागि घरिहीं नर देहा ।—तुलसी (शब्द०)। ३ से। द्वारा। ५ वह स्वांग प्रादि जिसमे कोई विशेष कौशल हो और जो उ.- माहि जो मार विरह के अागि उठ तेहि लागि। हस जल्दी समझ मे नावे। जैसे,--किसी के पेट या गर्दन के जो रहा सरीर महं पांख जरा गा भागि । —जायसी (शब्द॰) । र पार ( वास्तव मे नहीं, बल्कि केवल कौशल से ) तलवार लागि पु२-क्रि० वि० [हिं० लग या लौ ] तक। पर्यंत । उ०- या कटार गई हुई दिखलाना। ६ प्रतिस्पर्धा । प्रतियोगिता। घन अमराउ लाग चहुँ पासा । उठा भूमि हुत लागि अकासा । चढ़ा ऊपरी। —जायसी (शब्द०)। यो०--लाग डाँट । लागुडिक-वि० [सं०] १ लट्ठयद । लाठी बांधे हुए । २ पहरे- ७ वैर । शत्रुता । दुश्मनी । झगा। दार [को०] । क्रि० प्र०--मानना ।-रखना । लागू-वि० [हिं० लगना ] १ जो लग सकता हो या लगने योग्य हो। प्रयुक्त होने योग्य । चरितार्थ होनेवाला। जैसे,—वही ८ जादू । मत्र । टोना। ६ वह चेप जिससे चेचक का अथवा नियम यहां भी लागू है। इसी प्रकार का और टीका लगाया जाता है। १०. वह नियत धन जो विवाह आदि शुभ अवसरो पर ब्राह्मणो, भाटो, लागू-सचा पुं० स० लग्नक ] प्रेमी। उ०—पाँवलिया मेरे मन नाइयो आदि को अलग अलग रस्मो के सवच मे दिया जाता को लागू नित इत पावै । -धनानद, पृ० ४८२ । है। ११ धातु को फूव कर तैयार किया हुआ रस । भस्म । लागो-अव्य० [हिं० लगना ] वास्ते । लिये। उ०-पुत्र शरीर १२. दैनिक भोजन सामग्री । रसद । (बु देल०)। १३ भूमि- परा तव भागे। रोवत मृषा जीव के लागे ।—जायसी कर । लगान । उ०-अपनो लाग तेहु लेखा करि जो कछु (शब्द०)। राज अश को दाम ।—सूर (शब्द०)। १४ एक प्रकार का लाघरक-मज्ञा पु० [सं०] हलीमक नामक रोग। नृत्य । उ०-अरु लाग घाउ रायरगाल ।- केशव (शब्द॰) । लापरक लस-सज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार का पाडु रोग । दे० लाग'-क्रि० वि० [हिं० लौ ] पर्यंत । तक । उ०-मासेक लाग 'लाघरक' (को०] । ८-६४ -
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५१८
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