पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५०७

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लवा' ४२६८ लवणासुर 5 गान समुद्रो मे ने एक । ग्वाले पानी का नमुद्र । विगेप दे० 'वनमुद्र'। लवण-व० [२०] १ नमकीन । तारा ! २ जिमय काटा जाय । काटावाला (०) । ३ लावण्ययुक्त । सलोना । सु दर । लवणस्शुिरा-मा सी० [सं० लवकि, का] महा योति मती लना होगा लवणक तक सशा पुं० [ म. ] नमक का व्यापारी को० । लवणक्षार-सग पु० [ मं० ] १ रुख के रम 7 बनाया जा एक प्रकार का द्रव्य । २ एक प्रकार का नमक को.) । लवणजल-मा पु० [सं०] समुद्र [को०)। यो०-लवण जलं भव = शख । शक्ति । लवणतृण-मा पु० [सं०] १ अवलोनी घास जिसका माग खाते हैं । लोनी । लोनिया । २ कुलफा नामक माग । लवणत्रय-सशा पुं० [सं०] वैद्यक मे तीन प्रकार के नमको का ममूह, मंघव, विट और रुचक ( सौदचल ) । लवणधेनु - सशा स्त्री० [सं० ] गाय के त्प मे कल्पित नमक का ढेर जिमके दान का वराहपुराण में बटा माहात्म्य लिखा है। विशेप-गोबर गे निपे म्यान मे कुग के अानन पर सोलह पस्य नमक का एक ढोका रखे और उसे गाय के रूप मे कल्पित करे। चार प्रम्प और नमक पान में रखकर नसे उम गाय का बछडा माने । फिर चार गन्ने रखकर चार पर, सोना रखकर नीग, चादी रखकर सुर, गुड या स्वर्ण बन्द कर मुंह, फल रगार दात, चीनी रखकर जीभ, गवद्रव्य रखकर नाक, रत्न रखकर नय, पन रसार कान, मक्खन रखकर स्तन, तागा रजकर पूछ, नाये का पत्तर रवर पीक, पुश रखकर गए और काना र दाहती लपत रे। फिर या वधि पूजन नरके चोदान कर दे। लवणपाटलिका-71 [म०] नाक पी पाटनी या पती [को०) । लवणप्रगाढ-० [सं० ] जिसमे यत्यधिक नमक हो। जिनमे बहुत तेज नरगिलहो। लवण मार-T1 पु० [ म० ] वैद्यक का एर प्रसिद्ध चूण जिनमे तीना नमक यौर अन्य तापचिपा पडी है और जो पेट वा अपच आदि बीमारिगेम दिया जाता है। लवण मद-सा पुं० [२०] एक प्रकार का नमक । क्षार नमक को०] । लवणमेद-तरा ० [सं०] सारी नमफ। लवणमह-ममा पु० [सं० ] श्रत अनुगार प्रमेह रोग का एक भेद जिम पाव के साप लपण क नमान त्राव होता है। लवणयत्र- पुं० [अ० गया ] दो मुडेदार परलना के मुर जाकर बनाया या एक यम जिममे दुर ओपथियो का पाप होता है। इनन ने एक बरतन म नमा भर दिया जाता है। लपण - SI 40 ] पुर. तुमार दुग द्वीप के अंतर्गत एक पाया। लवण व्यापत्-सज्ञा सी० ] घोडों की एक प्रकार की गहरी पीडा जो अधिक नमक खाने से होती है। लवणशाक-मज्ञा पुं० [स० लवण द्वारा मधित वस्तु । सवान। प्रचार [को०] । लवणसमुद्र-मज्ञा पुं॰ [ स० ] खारे पानी का समुद्र । विशेप-यह पुराणोक्त सात समुद्रा मे से एक है। पुगणो मे तो सातो ममुद्रो की उत्पत्ति सागर के पुत्रो के खोदने से या प्रियवत राजा के रथ के चलने से बताई गई है, पर ब्रह्मवैवर्त में लिखा है कि श्रीकृष्ण की एक पत्नी विग्जा के गर्भ से सात पुत्र हुए, जो सात समुद्र हुए। इनमे से एक पुत्र के रोने के कारण थोडी देर के लिये कृष्ण का वियोग हो गया । इसपर विरजा ने उसे शाप दिया कि 'तू लवण समुद्र होगा और तेरा जल कोई न पीएगा'। यह कथा बहुत पीछे की कल्पित जान पडती है। लवणातक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० लवणान्तक ] १ लवणासुर को मारने- वाले शत्रुन । २ नीवू । लवणाबुगशि-सज्ञा पुं० [सं० लवणाम्बुराशि ] समुद्र किो०] । लवणाभ-सज्ञा पुं॰ [सं० लवणाम्भस् । समुद्र । सागर (को०] । लवणा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ दीप्ति । प्राभा। २ महाज्योतिष्मती लता। ३ चुका ४ चंगेरी। ५ अमलोनी शाक। ६ एक नदी का नाम । लूनी। लवणाकर-सज्ञा पुं० [ म० ] १ नमक की खान । २ समुद्र । ३ ( लाक्ष० ) मु दरता का खान । उ०-उमको (स्थायी भाव) अवस्था लवणाकर के समान होती है । -रस क०, पृ० ११ । लवणाचल-सज्ञा पु० [ स० ] पहाड के रूप मे कल्पित नमक का ढेर जिसके कान का मत्स्यपुराण मे वडा माहात्म्य लिखा है । लवणाब्धि-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] नमक का समुद्र (को०] । लवणापण-लज्ञा पुं० [ ] नमक का हाट या वाजार को०] । लवणालय-मज्ञा पुं० [ मं०] १ समुद्र । लवणाकर । २ लवणासुर की वमाई हुई मधुपुरो जो पोछ मथुरा के नाम से प्रसिद्ध हुई । लवणासुर-तज्ञा पुं० [ ] मधु नामक असुर का पुत्र जो मयुरा म रहता था और जिसे रामचद्र का आज्ञा से शत्रुन ने सारा धा। विशेप -रामायण मे इमको कथा इस प्रकार है। मत्ययुग म देत्य कुल मे गोला के गभ ने 'मधु' नामक एक पुत्र उत्सन्न हुआ । उसने घोर तप द्वारा शिव को प्रसन्न करके उनमे एक शूल प्राप्त किया । फिर दूसरी बार तप करके उसन शिव मे यह वर मागा कि वह शूल कुल मे सदा बना रहे। शिव ने ऐसा वर न देवर यह वर दिया कि गूल तुम्हारे ज्येष्ट पुत्र को मिलेगा। विश्वावसु की कन्या अनला के गर्भ मे कुभीनसी नाम की एक कन्या यो। मधु ने उसके माथ विवाह किया, और उसी के गर्भ न लवणासुर उत्पन्न हुप्रा । शूल पाकर वह अवाहा गया और अनेक प्रकार के अत्याचार करने लगा। जब रामचद्र जी राजा हुए, तब ऋपिया ने SO HO