पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४८०

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स० स० स्वामी हो। लग्नाचार्य ४२४१ लघुचित्तता लग्नाचार्य -सभा पु० [ ] ज्योतिषी । ज्योतिर्विद् । अ, इ, उ, ओ, ए आदि । ७ वह जिसमे एक ही मात्रा हो। लगायु-सझा सी० [ ] फलित ज्योतिप मे वह आयु जो लग्न एकमात्रिक । इसका चिह्न (1) है । के अनुसार स्थिर की जाती है। विशेप-इस अर्थ में इसका प्रयोग संगोत मे ताल के सबध में और लग्नाह-सज्ञा पु० [सं०] दे० 'लग्नदिवस' [को०)। छद शास्त्र मे वर्ण के सबध मे होता है। लग्निका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० नग्निका का अमाधु रूप] १ नगी ८ वशी का छोटा होना, जो उसके छह, दोषों मे से एक माना औरत । बेहया स्त्री (को०)। २ कन्या जो अरजस्का हो । कम जाता है। ६ चांदी। १० पृक्का । प्रसवरग। ११ वह अवस्थावाली लडकी । जिसका रोग छूट गया हो (रोग छूटने पर शरीर कुछ हलका लग्नेश-सज्ञा पु० [ स० ] फलित ज्योतिष मे वह ग्रह जो लग्न का जान पडता है)। लघुकंकोल -सञ्ज्ञा पुं० [सं० लघुकडोल] एक प्रकार का ककोल जो लग्नोदय -सशा पुं० [सं०] १ किमी लग्न के उदय होने का समय । साधारण फकोल से छोटा होता है। २ लग्न के उदय होने का कार्य। लघुकटकी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० लघुकण्टको ] लजालू । लग्वगो-वि० [अ० लग्व + फा० गो ] १ मिथ्यावादी । २ वाचाल । लघुक-वि० [ सं०] १. लघु । हल्का । २. महत्वहीन । तुच्छ [को॰] । बातूनी (को०] । लघुकटाई - सज्ञा स्त्री० [ सं० लघुकण्टकारी ] दे॰ 'कटकारी' । लग्वगोई-सशा स्री० [ अ० लग्व+ फा० गोई ] १ झूठ बोलना । लघुकण-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] सफेद जीरा। मिथ्याकथन। उ०-थोडो जिंदगी के वास्ते कौन लग्वगोई लघुकर्कधु-सज्ञा पुं० [ सं० लघुकर्कन्धु ] मुंई वेर । करके दोजख मे जाने का काम करे ।-श्रीनिवास ग्र०, पृ० ६७। लघुकणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] मूर्वा । २. बकवास । वाचालता। लघुकाम-सज्ञा पुं॰ [सं० ] बकरी। लघट , लघटि-सा पु० [ स० ] वायु (को०)। लघुकाय'- सज्ञा पुं॰ [ सं० ] छाग । अज । बकरा [को॰] । लघडबग्गा-सझा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का चीता । लग्घड । लघुक्काय-वि० हलके शरीरवाला [को॰] । लघमीपुष्प-सशा पुं० [ स० लक्ष्मीपुष्प ] पद्मराग मणि। लाल । लघुकाश्मर्य- ] कटहल का वृक्ष। माणिक्य । मानिक (हिं०)। लघुकिन्नरी-सञ्ज्ञा श्री० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का लघाट-सचा पुं० [म० ] दे० 'वायु' (को०] । बाजा जिसमे वजाने के लिये तार लगे होते थे। लधिना-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] प्राचीन काल का एक प्रकार का धारदार 'लघुकोष्ठ-वि० [सं०] १ जिसका पेट हलका हो। २ खाली अस्त्र जिसमे दस्ता लगा होता था और जिससे भैसे आदि काटे पेटवाला [को०] । लघिमा 1- संज्ञा स्त्री॰ [ स० लघिमन् ] १ पाठ सिद्धियो मे से चौथी लघुकौमुदी - सच्चा स्त्री० [ सं० ] वरदराज कृत सिद्धातकौमुदी के सक्षिप्त रूप का नाम । सिद्धि ( कहते हैं, इसे प्राप्त कर लेने पर मनुष्य बहुत छोटा लघुक्रम'- '-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] जल्दी जल्दी चलने की क्रिया । तेज चाल । या हलका बन सकता है )। लघु या ह्रस्व होने का भाव । लघुक्रम'- वि० [ सं० ] द्रुतगामी । तेज कदम बढानेवाला (को०] । लघुत्व । लघु'-वि० [ -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] मचिया । छोटो खाट । खटोला (को०] ] १ शीघ्र। जल्दी। २. जो वडा न हो। लघुखट्विका- कनिष्ठ । छोटा । जैसे,-लघु स्वर, लधु मात्रा। ३ सुदर । लघुग-सञ्ज्ञा १० [ स० ] वायु । पवन (को०। वढिया । पानददायक । इष्ट । अभिप्रेत । ४ जिसमे किसी लघुगण - सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] ज्योतिष में अश्विनी, पुष्य और हस्त इन प्रकार का सार या तत्व न हो। नि.सार । महत्वहीन । अना तीनों नक्षत्रो का समूह । वश्यक । ५ स्वल्प। थोडा। ६ हलका । सरल। लघुगति-वि० [स० ] तेज चलनेवाला [को॰] । श्रासान। ७ नीच । क्षुद्र । नगण्य । ८ दुर्वल । दुबला | लघुगगे-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ खैरा नाम की मछलो। २. टेंगरा या ६ प्रामश्रित । शुद्ध । निमल (को०)। १० फुतोला (को॰) । त्रिकटक नाम को मछली। लघु-सज्ञा पु० १. काला अगर । २ उशीर । खस । -सञ्ज्ञा पु० [सं० ] एक छोटी किस्म का गेहूं [को०] | मश्विनी और पुष्य ये तीनो नक्षत्र जो ज्योतिप मे छोटे माने गए हैं और जिनका गण 'लघुगण' कहा गया है । ४. समय का लघुचचरी-सज्ञा स्त्री॰ [स० लघुचञ्चरी ] संगीत मे एक ताल को०। एक परिमाण जो पद्रह क्षणो का होता है। ५ तीन प्रकार के लघुचदन-सञ्ज्ञा पु० [ स० लघुचन्दन ] अगर नामक सुगधित लकडी । प्राणायामो मे से वह प्राणायाम जो बारह मात्राओं का होता लघुचित्त-सञ्चा पु० [सं०] वह जिसका मन बहुत दुर्वल या चघल हो । है ( शेष दो प्राणायाम मध्यम और उत्तम कहलाते हैं )। ६ लघुचित्तता-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] मन के बहुत ही दुर्बल या चचल होने म्याकरण में वह स्वर जो एक ही मात्रा का होता है । जैसे,- का भाव। -सशा स० [ स० जाते थे। कम। ३ हस्त, लघुगोधूम- --