मरोड़ी ३८०७ मर्त्य - मरोड़ी- सशा मी० [हिं० मरोड़ना ] १. ऐंठन । धुमाव । वल । मर्कटेंदु -सज्ञा पुं॰ [ स० मर्कटेन्दु ] कुचिला। मुहा०-मरोड़ी करना = खीचातानी करना। इधर उधर करना। मर्कत -सञ्चा पु० [सं० मरकत ] दे० 'मरकत' । २ वह वत्ती जो आटे आदि मे सने हुए हाथो से मलने पर छूटकर मर्कब-एचा पुं० [अ०] १ मवारी। वाहन । २ घोडा । अश्व । निकलती है । ३ गुत्थी। गांठ । उ०-खाक बाव अव प्रातरस लाया। सिकम माए के मर्कव मरोर-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'मरोड' । बनाया। सत० दरिया, पृ० १३ । मरोरना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'मरोडना' । मर्कर-मज्ञा पुं० [ स० ] भृगराज । भगरा । भंगरया । मरोरी-मज्ञा स्त्री० [हिं० मरोडना] दे॰ 'मरोडी' । मर्करा-मञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] १ मुरग। २ तहखाना। ३. भाँडा । मुहा०-मरोरी करना = इधर उधर करना। खीचातानी करना। वर्तन । ४ वांझ स्त्री। उ.- नख सिख लों चित चोर सकल अंग चीन्हे पर कत करत मरोरी। एक सुनि सूर हहरयो मेरो सरवस अरु उलटी होलो मर्ग-सज्ञा पु० [ फा०] मौत । उ०—नालए रश्क न हो वायसे दरदे सरे मर्ग । गैर के सर पे लगाता है वह मदल घिस्के । -श्री- संग डोरी।- सूर (शब्द०)। निवास ग्र०, पृ० ८६। मगेलि-सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] मकर की जाति का एक वडा सामुद्रिक जतु । मर्घटी-वि० [हिं० मरघट ] मरघट का। श्मशान सबधी। मरोह-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मरोर ] मरोर । मसोस । उ०—सपन मसान का । उ०-हाड की कठ मैं चार माला धरे । मर्घटी जान चित उठा मरोहू । औटि करेज पानि या लोहू । —चित्रा०, खोपडी मे अहार करे ।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ५६ । पृ०३६। मरौर -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मरोड' । उ०—उतही ते मोरति म!-मञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मिर्च' । दृगन पावत अलि जिहि ौर | सीखति है मुग्धा मनो भयमिस मर्चेट-सञ्ज्ञा पुं[अ० ] व्यापार वाणिज्य करनेवाला । व्यापारी। भृकुटि मरौर । --शकुतला, पृ० १७ । सौदागर । मर्क-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ देह । शरीर । २ वायु । हवा । ३. मर्ज-सज्ञा पु० [अ० मर्ज ] १ रोग। व्याधि । बीमारी। २. शुक्राचार्य के एक पुत्र का नाम | ४ वदर । आदत । लत । व्यसन । ३ दु ख । कष्ट (को०] । मर्कक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ मकदा । २ हरगीला नामक पक्षी । मर्जबान-सञ्ज्ञा पुं० [फा० मर्जबान ] किसान । कृपक । काश्तकार । मर्कट-सज्ञा पु० [ स० ] १ बदर । बानर | उ०–मर्कट मूठि स्वाद उ०—यह मुगल सल्तनत का मर्जवान था और उसका सरबरा- नहिं बहुरं घर घर रटत फिरौ।—कबीर १०, भा॰ २, पृ० कार विनायक था।--शुक्ल अभि० ग्र०, पृ० ६७ । १४०। २ मकडा। ३ हरगीला नामक पक्षी। ४ एक मर्जादा-सचा बी० [सं० मर्यादा ] दे० 'मर्यादा' । उ०—प्राज प्रकार का विष। ५ दोहे के एक भेद का नाम जिसमें सत्रह समुद्र ने अपनी मर्जादा छोड दी। श्रीनिवास ग्र०, पृ० ७३ । गुर और चौदह लघु मात्राएं होती हैं । जैसे,—ब्रज में गोपन मर्जी-सज्ञा स्त्री० [अ० मर्जी ] दे० 'मरजी' । सग में राधा देखे श्याम। ६ छप्पय का पाठवां भेद जिसमे मर्जू -सञ्ज्ञा पुं॰ [ मे० ] १ धोवी। २ गुदाभजन करानेवाला। ६३ गुरु, २६ लघु कुल ८६ वर्ण या १५२ मात्राएं या ६३ गुरु, २२ लघु कुल ८५ वर्ण या १४८ मात्राएं होती है। मर्कटक-सञ्ज्ञा पुं० [३०] १ वानर | वदर । २ मकही। ३. मर्जू-सञ्ज्ञा सी० घोना । साफ करना [को॰] । एक प्रकार की मछली । ४ मड़ा नामक अन्न। ५ मकरा मर्त-सञ्ज्ञा पुं० [ मं०] १ मनुष्य । २. भूलोक । नामक घाम । ६ एक दैत्य का नाम । मर्तबा-सज्ञा पुं० [अ० मर्तबह ] १ पद । पदवी । जैसे,—आज मर्कटतिदुक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मर्कटतिन्दुक ] कुपीलु । कल वे अच्छे मर्तवे पर हैं । (शब्द॰) । मर्कटपाल-सञ्ज्ञा पु० [ ] बदरो का राजा, सुग्रीव । क्रि० प्र०-चढ़ना ।—देना ।—पाना।—यदना ।—मिलना। मटपिप्पली-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ) अपामार्ग । चिचडा । २ वार । बेर । दफा । जैसे,—मैं आपके मकान पर कई मर्तवा मर्कट प्रिय-मशा पु० [सं० ] खिरनी का पेड । गया था, पर आप नहीं मिले। मर्कटवास-सज्ञा पु० [सं०] मकडी का जाला। मर्तबान'- -सचा पु. [ स० मृद्भाण्ड, हिं० अमृतवान ] रोगनी वर्तन मर्कटशीप-सज्ञा पुं० [सं० ] हिंगुल । जिसमे अचार, मुरब्बा, घी आदि रखा जाता है । अमृतबान । मर्कटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १. बानरी । बँदरी। २ मकही। ३ मर्तबान'—मज्ञा पुं० [ देश० वा वरमी ] भारत की पूर्वी मीमा मे मटे हुए वर्मा राज्य के पेगू प्रदेश का एक नगर और समुद्र की भूरी केवांच । कौंछ । ४. अपामार्ग। ५ अजमोदा । ६ एक खाडी । रगून, मोलमिन बदरगाह इसी खाडी मे है। प्रकार का करज । ७ छद के प्रत्ययो मे से अंतिम प्रत्यय । मर्त्य'—सक्षा पुं० [सं०] १ मनुष्य । २ भूलोक । ३ शरीर । विशेष—इसके द्वारा मात्रा के प्रस्तार मे छद के लघु, गुरु, कला और वर्णो की संख्या का परिज्ञान होता है। मर्त्य–वि० मरणशील । नश्वर (को०] । ८-५ लौंडा [को०] । । DO
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