लखुत्रा' 40 लग ज्यो लगड-वि०॥ स० लखुआ ४२३४ लगन '--सञ्ज्ञा पु० [ स० लाक्षा (= लास)+ हिं० उग्रा (प्रत्य॰)] खू चकां मे लस्ते दिल पैहम निकलते हैं।--भारतेंदु ग्र०, भा० १ लाखा या लाही नामक रोग जो गेहूँ के पौथो मे लगता है। २, पृ० ८४८ । २ लाल मुहवाला वदर। यो०-लस्ते जिगर = हृदय का टुकटा । पुत्र वा अत्यत प्रिय व्यक्ति। लखुत्रा ----मा पुं० [ हि लखना+उग्रा (प्रत्य॰) दे० लखिया' | लगत-सज्ञा स्त्री० [हिं० लगना+ अत (प्रत्य॰)] { लगन हाने की क्रिया या भाव । उ०-यालम मे जब वहार की आकर खिलत लखुवा-सज्ञा पुं० (स० लाक्षा+हिं उवा (प्रत्य॰)] दे॰ 'लखुण' । लपेटनाg-क्रि० स० ( स० लक्ष्य = प्रा. लक्ख, हिं० लख + है । दिल की नई लगन को मजे की लगत है।-नजीर (शब्द०)। २ लगन या स्त्रीप्रमग करने की क्रिया या भाव । ऐदना< सं० भेदन अथवा हिं० खेदना या रगेदना] खदडना । भगाना । वेदना । स्थानच्युत करना वा हटा देना। लग-क्रि० वि० [हिं० ला] १ तक । पर्वत । ताई। उ.- एक मुहूरत लग कर जो।। नयन मूंदे श्रीप हि निहोरी।-रघु- लसेरा--सज्ञा पु० [हिं० लाख + एरा (प्रत्य॰) १, वह जो लाख की राज (शब्द०) । २ निकट । ममी । नजदीक । पाम । उ०- चूडी आदि बनाता हो । २ हिंदुओ मे एक जाते जो लाख की यहि भाति दिगीश चले मग मे । इस सार सुन्या प्रति ही लग चूटियां आदि वनाती है। मे।-गुमान (शब्द०)। लसोट, लखाट-सञ्ज्ञा पुं॰ [ हिं० लकुट ] दे० 'लकूट' (फल)। लग -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ लिग् लगन । लाग । प्रेम । उ०-झांकति है लसोटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हिं० लाख + प्रोट (प्रत्य॰)] लाख की चूडी का झरोखा लगी लग लागिवे की इहां झेल नही फिर । आदि जो स्त्रियां हाथो मे पहनती है। उ०—हाथन लखौट पाइ -पद्माकर (शब्द०)। चूरा पचमणी गरे, गोरी की जुगुल जानु कोरी मनो केरा की । लग-अव्य० १ वास्ते । लिये । उ० - भृगुपति जीति परसु तुम पायो । -देव (शब्द०)। ता लग ही लकेश पठायो । हृदयराम (शब्द०)। २ साथ । लखौटा-सशा पु० [हिं० लाख + प्रोटा (प्रत्य॰)] १ चदन, केसर मग | उ -नगलगा वातनि अलग लग लगी पावै लोगनि की श्रादि से बना हुआ अगराग वा अवर राग । उ०-दरशन तो लुगाइन को लाग री |-देव (शब्द॰) । भुख को भयो सुमुखी मोहि रसाल | बिना लखौटा हू लगे अघर ] खूबसूरत । पुदर [को०] । मोठ अति लाल । - लक्ष्मण (शब्द०)। २ एक प्रकार का छोटा डिब्बा जो प्राय पीतल का बनता है और जिसमे स्त्रियां लगढग-क्रि० वि० [हिं० ] दे० 'लगभग' । प्राय सिंदूर आदि सौभाग्य के द्रव्य रखती हैं। इसके ढकने मे लगरण सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जिसमे पलक पर एक प्राय शीशा भी लगा होता है। छोटी, चिकनी, कडी गांठ हो जाती है। इस गांठ मे न तो पीडा होती है और न यह पकती है। लखौटा - सज्ञा पुं० [हिं० लेख + प्रोटा (प्रत्य॰)] लिखावट । लखौटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० लाख + प्रौटा (प्रत्य॰)] लाख की लगदी -सज्ञा स्त्री॰ [देश० । वह विछीना जिसे वच्चेवाली स्त्रियां बच्चो के नीचे इसलिये विछाकर उन्हे अपने पास सुलाती हैं कि जिसमे चूडी । लखौट। उनके मलमूत्र से और विछौने खराव न होने पावें। कयरी। लखौटा -वि० [हिं० लखना (= देखना) + प्रोटा (प्रत्य॰)] परि- चायक | लखानेवाला। सचित करनेवाला । उ-जसे समुद्र मे नाव पर सबके आगे मार्ग दिखलानेवाला माझी रहता है, वैसे लगन'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लगना ] १ किसी ओर ध्यान लगने को ही तेरे हाथ मे यह लखौटा है।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, क्रिया । प्रवृत्ति का किसी एक प्रोर लगना । लौ । जैसे,—प्राज कल तो आपको बस कलकत्ते जाने की लगन लगी है। पू० २०१। क्रि० प्र०—लगना ।—लगाना । लखौरी' - सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० लाक्षा, हिं० लाखा+औरी (प्रत्य॰) (तु० श्रावृत्ति)] १ एक प्रकार की भ्रमरी का घर जो वह २ प्रेम । स्नेह । मुहब्बत । प्यार । मिट्टी से घरो के कोनो मे बनाती है । भृ गी का घर । २ भारत लगना।-लगाना। की एक प्रकार की छोटा पतली ईंट जो प्राय पुराने मकानो मे ३ लगने की क्रिया या भाव । लगाव । सबध । पाई जाती है और जिसका व्यवहार अब कम होता जा रहा लगन-सज्ञा पु० [ सं० लग्न ] १ विवाह के लिये स्थिर किया हुआ है । नातेरही ईंट । ककया ईंट । लखौरिया ईंट । कोई शुभ मुहुर्त । व्याह का मुहुर्त या साइत । २ वे दिन जिनमे लखोरी -तज्ञा स्त्री० [ स० लक्ष, हिं० लाख (सख्या) ] किसी देवता विवाह श्रादि होते हो । सहालग । ३ दे० 'लग्न' । को उसके प्रिय वृक्ष की एक लाख पत्तियाँ या फल यादि मुहा०-लगन धरना= विवाह की तिथि निश्चित करना । चढाना । जैसे,—शिव जी को वेलपत्र की या लक्ष्मीनारायण को लगन-सन्चा पुं० [फा०] १ तांवे, पीतल आदि की थाली जिसमे तुलसी की लगोरी चढ़ाना । रखकर गोमवत्ती जलाई जाती है। २ कोई बडी थाली जिसमे क्रि० प्र०-चढाना ।—जलाना या वालना = लाख वत्तियो की आटा गूंधते या मिठाई श्रादि रखते हैं। ३ मुसलमानो की भारती करना। एक रोति जिसमे विवाह से पहले थालियो मे मिठाइयां आदि लख्व-सञ्ज्ञा पु० [फा० लस्त ] टुकडा । सद। अश । उ०—कि चश्मे भरकर वर के लिये भेजी जाती हैं। पोतडा। क्रि० प्र०
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