क्रि० प्र० मरोड- मरेठी ३८०६ मरोड़ा या पटेला बांधकर खेत मे पींचा या चलाया जाता है। वरहा। युच को मरोर डारी तोरि हारी कमनि विथोरि डारी बैनी वेड । गुरिया । वखर । त्यो।-पद्माकर (शब्द०)। मरेठी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० मुलेठी, तुल० म० मधुयष्टि ] दे० 'मुलेठी' । देना । - दालना।-पड़ना। मरेरना - क्रि० स० [हिं० मोरना] पीडित करना। व्यथा पहुंचाना। मुहा०-श्रग मरोड़ना=अंगडाई लेना। उ०-मब अग मरोरि उ.--कवि ठाकुर वे पिय दूर वमै तन मैन मरोर मरेरती मी। मुगे मन मैं झरि पूरि रही रग में न भई। गुमान (गन्द०)। -ठाकुर०, पृ० ७८१ । भी मरोदना या हग (शादि) मरोडना = (१)भ्र भग करना। -मशा री० [हिं० मरोड़ना ] ? मरोटन का भाव या क्रिया। आँख से इशारा करना या कनवी माग्ना। उ०-(क) अतर उ० - मानत लाज लगाम नहिं नेकु न गहत मरोर । होत मे पति की मुरति गहि गहि गहपि गुनाह । दृग मरीरि मुप मोरि तोहि लखि वाल के दृग तुरग मह जोर । - मतिराम तिय छुवन देत नहिं ठाह ।- पद्माकर (णब्द०)। (म) पान दियो (गन्द०)। हसि प्यार मो प्यारी बहू लसि त्यो हमि भौंह मरोरी। -देव मुहा० - मरोड़ खाना = चक्कर साना । 30-न्हाय वमन (शब्द०)। (२) नाक भौंह चढाना । माह सिकोटना । उ०- पहिरन लगी बम न चल्यो चित चोर । साय मरोड गडे (क) हो हूँ गही पदुमाकर दौरि मा भौंह मरोरत मेज ला गिरयो गडे कडे कुच कोर । - राममहाय (शब्द०)। मन में श्राई।-पाकर (शब्द०)। (ग्व) मुनि मौतिन के गुन की मरोड़ करना = मन मे दुराव या कपट रखना । कपट करना । चरचा द्विज ज् तिय भौंह मराग्न लागी।-द्विजदेव (गन्द०)। उ०-माघू पावत दास के मन मे करत मरोर । मो होवगा २ ऐठकर नष्ट करना या मार डालना । उ॰—() महावीर चूहा बसे गांव की ओर ।- कवीर (शब्द०)। मरोड़ की बारे वगकी बांह पीर क्यो न किनी ज्यो लात घात ही यात = पेंचदार बात । घुमाव की वात । मरोर मारियो । तुलसी (शब्द॰) । (ख) मांटि मारपो २ मरोडने से पडा हुअा घुमाव । ऐंठन । बल । ३ उदग धादि कलह वियोग माग्यो बोरि के मरोरि मारयो अभिमान भरयो के कारण उत्पन्न पीडा। व्यया। क्षाभ । उ० (क) घिरि भय मान्यो है। - केशर (शन्द०)। (ग) कपि पुनि उपवन आए चहु पोर घन तेहि तकि मारेम सार। मोर सोर मुनि वारिहि तोरी । पच मेनपति सेन मरारी।-पाकर (शब्द०)। होत री तन मे अधिक मरोर ।-राममहाय (शब्द॰) । (ख) क्रि० प्र०-दालना ।-देना। झिलत झकोर रहै जावन को जोर रहै समद मरोर रहे शार रहै ३ पीटा देना। दुख देना। वेदना उत्पन करना । उ० (क) तव मो। -पद्माकर (शब्द०)। (ग) इक ता मार मरोर ते वार वधू पिय पथ लसि अंगगनी अग मोरि । पौढि रही मरति भरति है माँस । दूजे जारत मास री यह मुचि ली मुचि परयक मनु डारी मदन मरोरि । मतिराम (शब्द०)। (ख) मास । - राममहाय (शब्द०)। एक पानी गई कहि कान में प्राइ परी जहां मैन मरोरी गई। मुहा०-मरोद खाना = उलझन मे पडना। उ०-गुलफनि लो -वेणी (शब्द०)। ४ मलना । मीजना । ममनना । ज्यो त्यो गयो करि करि साहम जोर । फिर न फिरचा मुरवान मुहा० हाथ मरोदना(पु) = हाथ मनना। पछताना । उ०- चपि चित अति खात मरोर । - राममहाय (शन्द०)। (क) अब पछताव दरव जन जोरी। करहु स्वर्ग पर हाथ ४ पेट में ऐंठन और पीडा होना । पेट ऐंठना। ५ घमड । गर्व । मरोरी । - जायमी (गन्द०)। (स) पुरुप पुरातन छाडि कर उ०-पाए आप भली कहो मेटन मान मरोर । दूर करो यह चली पान के साथ । लोभी मगत वोछुडी सडी मगेरइ हाथ । देखिहै छला छिगुनिया छोर ।-विहारी (शब्द०)। ६ क्रोध । -दादू (गन्द०)। गुस्सा। विशप-पुरानी कवितायो मे 'मरोडना' का रूप प्राय 'मरोरना' मुहा० - मरोद गहना = क्रोध करना । उ० - रह्यो मोह मिलना ही पाया जाता है। रह्यो यो क है गहैं मरोर । उत दै मखिहि उराहनो इत मरोडना-क्रि० प्र० पेट ऐंठना । पेट मे ऐंठन उत्पन्न होना । चितई मो ओर । —बिहारी (शब्द०)। मरोडफलो-सझा स्त्री॰ [हिं० मरोद + फली ] एक प्रकार को फली विशेष-पुरानी कविताप्रो मे प्राय 'मरोड' के स्थान मे 'मरोर' जो प्राय पेट के मरोड के लिये गुणकारी होती है। मुर्रा । ही पाया जाता है। अवतरनी। मरोडना'-क्रि० स० [हिं० मोदना ] १ एक अोर से घुमाकर मरोडा-सा स्त्री० [हिं० मरोडना ] १ ऐंठन । मरोड। उमेठ । दूसरी ओर फेरना। बल डालना । ऐंठना । उ०—(क) बांह वल । २ पेट की वह पीडा जिसमें अदर की ओर कुछ ऐंठन मरोरे जात ही मोहि सोवत लियो जगाय । कहै कबीर पुकारि सी जान पडती हो। कै यहि पंडे ह्व के जाय । कवीर (शब्द॰) । (ख) गोड चाप विशेप - यह एक रोग है जिसमे मलोत्सर्ग के समय पेट में ऐंठन ले जीभ मरोरी । दघि ढरकायो भाजन फोरी । —सूर (शब्द०) सो होती है और प्राय कोष्ठबद्ध रहता है। कभी कभी प्राव (ग) कोपि कूदि दोउ घरेसि बहोरी। महि पटकत भजे भुजा के साथ भी मरोड होता है। मरोरी । —तुलसी (शब्द०)। (घ) मोहि झकझोरि डारी क्रि० प्र०-उठना।-पड़ना ।
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