पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४६९

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लक्खी' ४२३० लक्षिर लक्खी' - वि० [हिं० लाख ] लाख के रग का । लाखी । लक्षण ग्रंथ- सशा पुं० [ सं० लक्षण + ग्रथ] काव्य या साहित्य वे लक्खी -सज्ञा पुं० घोडे की एक जाति । लक्षणा वा विवेचन करनेवाला ग्रथ । माहित्यिक समीक्षा को लक्खी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लाख (संख्या) वह जिसके पाम लाखो पुस्तक । ममालोचना शास्त्र । उ०-पहनी वात तो ध्यान देन रुपए हो। लखपता। की यह है कि लक्षण यो के बनने के बहुत पहले में कविता होती पा रही थी। - चिंतामणि, भा० २, पु० ६२ । लक्खी-सज्ञा स्त्री॰ [ म० लक्ष्मी, प्रा०, बंग० लक्सी ] लक्ष्मी । उ०-वगाली के लक्खी कहने को लक्ष्मी न माने तो कभी ठीक लक्षणज्ञ-वि० [सं०] लक्षणा को जाननवाला । शुभ अशुभ चिह्ना न होगा। -प्रमघन, भा॰ २, पृ०७ । का ज्ञाता [को०)। लक्षणभ्रष्ट-वि० [ स०] जो शुभ लक्षणो मे हीन या रहित हो । लक्त-वि० [ स० ) लाल । सुर्ख। अभागा । भाग्यहीन [को०) । लक्तक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ अलता, जो स्त्रियां पैरो मे लगाती है। लक्षण लक्षणा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार की लक्षणा जिते अलक्तक । २ वहुत फटा हुअा पुराना कपडा । चीथडा । लत्ता । जहल्लक्षणा भी कहते हैं। लक्तकर्मा -सज्ञा पुं० [सं० लक्तकर्मन् ] लाल लोध । लक्षणा-सशा खी० [स०] १ लक्षण शब्द की वह शक्ति जिसमे उसका लक्तिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] छिपकली [को०] । अर्थ लक्षित हो जाता है। शब्द को वह शक्त जिसने उपका लक्ष-वि० [सं० ] एक लाख । सौ हजार । अभिप्राय मूचित होता है। लक्ष'-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] १ वह अक जिमसे एक लाख की संख्या का विशेप-कभी कभी ऐसा होता है कि शब्द के माधारण अर्थ से ज्ञान हो । जैसे,—१,००,००० | २ पैर । ३ चिह्न । निशान । उसका वास्तविक अभिप्राय नहीं प्रकट होता । वास्तविक अभि ४ दे० 'लक्ष्य' । ५ अस्त्र का एक प्रकार का सहार। उ०- प्राय उमके माधारण अर्थ से कुछ भिन होता है । शब्द की जिस लक्ष अलक्ष युगल दृढनाभ मुनाभ दशाक्ष शतानन ।-रघुराज शक्ति ने उमका वह माधारण से भिन्न प्रोर दूसरा वास्तविक (शब्द०)। ६ व्याज । दिखावा । वहाना (को०)। ७ मुक्ता। अर्थ प्रकट होता है, उसे लक्षणा कहते ह । साहित्य में यह मोती (को०)। शक्ति दो प्रकार की मानी गई है-निरूढ और प्रयोजनवती लक्षक'-वि० [सं०] १ (वह) जो लक्ष करा दे। जता देनेवाला। (विशेप दे० ये दोनो शन्द)। २ (वह शन्द) जो सबध या प्रयोजन से अपना अर्थ सूचित करे। २. मादा हस। हसी। ३ मादा सारम। मारसी। ४ छोटी लक्षक-सञ्चा पु० एक लाख की सस्या [को॰] । भटकर्टया। ५ एक अप्परा का नाम जिसका उन्लेख लक्षण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ किसी पदार्थ का वह विशेषता जिसके महाभारत मे है । ६ दुर्योधन की पुत्री का नाम जिमका द्वारा वह पहचाना जाय । वे गुण आदि जो किमी पदार्थ में दिवाह कृष्ण के पुत्र साव ने हुअा था । लक्ष्मणा । विशिष्ट रूप से हो और जिनके द्वारा महज मे उमका ज्ञान हो लक्षणान्वित-वि० [सं० शुभ चिह्नोवाला [को०] । सके । चिह्न । निशान । प्रासार । जैसे,-आकाश के लक्षण लक्षणी- वि० [ #० लक्षणन् ] १ जिसम कोई लक्षण या चिह्न से जान पडता है कि ग्राज पानी बरसेगा। २ नाम । ३ हो । २ लक्षण जाननेवाला। परिभाषा। ४ शरीर में दिखाई पडनेवाले वे चिह्न प्रादि जो लक्षण्य-वि० [ सं०] १ चिह्न या निशान का काम देनेवाला । किसी रोग के सूचक हो । जैसे,—इस रोगो मे क्षय के सभी २ शुभचिहो से युक्त। लक्षण दिखाई देते हैं। ५ दर्शन । ६ सारस पक्षी। ७ सामु लक्षण्य-संज्ञा पुं० दैवज्ञ । भविष्यवक्ता [को॰] । द्रिक के अनुपार शरीर के अंगो मे होनेवाले कुछ विशेष चित । लक्षना -क्रि० स० [ स० लक्ष + हिं० ना (प्रत्य॰) ] लखना । जो शुभ या अशुभ माने जाते हैं । जैसे,-चक्रवर्ती और बुद्ध के देखना। उ०-पक्ष हू सवि सव्या सधी हैं मनोत लक्षए लक्षण एक से होते हैं। ८ शरीर में होनेवाला एक विशेष स्वच्छ प्रत्यक्ष ही देखिए ।-केशन (शब्द०)। प्रकार का काला दाग जो बालक के गर्भ मे रहने के समय सूर्य लक्षन पु-सज्ञा पुं॰ [ स० लक्षण ] दे० 'लक्ष्मण'-१ । उ०-बाण या चद्रग्रहण लगने के कारण पड जाता है । लच्छन । ९ चाल को वायु उडाय के लक्षन लक्षि करो अरिहा समात्यहिं ।- ढाल । तौर तरीका । रग ढग । जैसे,—आजकन तुम्हारे लक्षण केशव (शब्द०)। अच्छे नही जान पडते । १० दे० 'लक्ष्मण' । ११ पुरुपेंद्रिय । लक्षना पु-सज्ञा सी० [ स० लक्षणा ] शब्दो को एक शक्ति । विगेप शिश्न (को०] । १२ योनि । भग (को०)। १३ अध्याय । दे० 'लक्षगा'। परिच्छेद । स्कध (को०)। १४ व्याज । छल छद्म (को०)। १५ लक्षश-क्रि० वि० [सं० लक्षशस् ] लाखो की संख्या मे। २ प्रत्य- लक्ष्य । उद्देश्य (को०) । १६ बंधी हुई सीमा । दर (को०)। १७ धिक । अगणनीय । बहुत अधिक [को॰] । प्रस्तुत प्रसग । उपस्थित विपय (को॰) । १८ कारण (को०)। लक्षा-सा सी० [ स०] एक लाख की मख्या। १६ नतीजा । परिणाम । अमर (को०) । लक्षि'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० लक्ष्मी ] दे॰ 'लक्ष्मी' । उ० - सुनहिं सुमुखि लक्षणक-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] चिह्न । निशान । लच्छन [को०] । तो को त्याचतो लक्ष दासी -केशव (शब्द॰) । लक्षण, कर्म-सञ्ज्ञा पुं० [ से० दणकर्मन् ] परिभापा [को० । लक्षि पुं० [सं० लक्ष्य ] दे० 'लक्ष्य' । उ०- बाण की वायु -सका