लंक्निी ४२२४ लंगर लंकिनी-सज्ञा स्त्री० [० लकिनी ] रामायण के अनुसार एक राक्षसी जिमे हनुमान जी ने लका में प्रवेश करते समय घूमो ने मार डाला था। उ०-नाम लकिनी एक निसिचरी । सो कह चले से मोहि निंदरी । —मानस, ६।५। लकीसा-संज्ञा स्त्री० [हिं० लक ] कटि । कमर । लक । उ०- अलप केन कुच मून धूलदती उच्चारन । थून उदर लकोम थूल किसल गघ वारन ।-पृ० रा०, २५६१२६ । लकूरgi-मज्ञा पुं॰ [ मं० लागूली ] लगूर । लंकेश-पज्ञा पुं॰ [ स० लकेश] १ रावण । २ विभीपण। लकेश्वर-सज्ञा पुं० [ सं० लद्देश्चर ] १ रावण । २ विभोपण। लकेस-सज्ञा पुं० [ स० लङ्केश ] विभीपण । उ०-सुनु लकेस सकल गुन तोरे। ताते तुम्ह अतिसय प्रिय मोरे ।—मानस, ६।४६। लकेसर-सज्ञा पुं० [सं० नागकेसर ? या देश० ] एक प्रकार के फूल का पौया । उ०-उसमे लकेसर, तारा, मधुरी और गेंदा के पौधे लगाए।-नई०, पृ० ८० । लकेसुर-सझा पुं० [सं० लकेश्वर ] रावण । उ०-मन नह लकेसुर मारण।-रघु० रू०, पृ० १७८ । लकोई-सज्ञा सी० [सं० लङ्कोटिका ] दे० 'लकोदक' । लकोटिका-तज्ञा स्त्री० [ स० लड्कोटिका ] दे० 'लकोदक' [को०। लकोदक-सज्ञा पु० [स० लछोदक ] असबरग । स्पृवफा । लेखनी-सला सी[ स० लसनी ] लगाम का वह भाग जो घोडे के मुंह मे रहता है [को०] । लंग-सज्ञा सी० [हिं० लॉग] दे० 'लांग' । उ०-लोगन की लग ज्या लुगाइन की लाग री।-देव (शब्द०)। लग-सज्ञा पुं॰ [फा०] १ लंगडापन । क्रि० प्र०—करना ।-खाना । २. वह जो पगु हो । लंगडा व्यक्ति वा प्राणी (को०)। लिंग। शिश्न (को०)। लग-सझा पुं० [ स० लङ्ग] १ स्त्री का यार । उपपति । २. मेल । मिलन (को०) । ३ खजता । पगुता । लंगडापन (को०) । लगक-सशा पु० [ स० लङ्गक ] स्त्री का यार । उपपति । लगड-वि० [सं० लग+ हिं० ड (प्रत्य॰)] दे० 'लंगडा' । लगड़ -सज्ञा ॰ [ फा० लंगर ] दे॰ 'लगर' । लगन-सज्ञा पुं० [सं० लवण] लाँघना। लांघर पार करना (को०] । लगनी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० लगनी ] वह डोरी या डडा जिसपर कपडे टांगे जाते हैं। अलगनी [को॰] । लगर'-सशा पु० [फा० । मि० अ० एन्कर ] १ बडी वडी नावो या जहाजो को रोक रखने के लिये लोहे का बना हुया एक प्रकार का बहुत बडा काटा। विशेष—इस कांटे या लगर के बीच मे एक मोटा लबा छट होता है, और एक सिरे पर दो, तीन या चार टेढ़ी झुकी हुई नुकीली शासापं और दूसरे मिरे पर एक मजबूत कडा लगा हुआ होता है। इसका व्यवहार बडी बडी नावो या जहाजों को जल मे किमी एक ही स्थान पर ठहराए रखने के लिये होता है। इसके कार फडे मे मोटा रस्सा या जजीर प्रादि वांवकर इसे नीचे पानी मे छाट देते हैं। जब यह तल मे पहुंच जाता है, तर इतक टेढे अकुडे जमीन के ककड पत्थरो मे पड जाते हैं, जिमा कारण नाव या जहाज उमो म्यान पर रुक जाता है, और जबतक यह फिर खीचकर कार नही उठा लिया जाता,, तबतक नाय या जहाज आगे नहीं बढ़ गकता । क्रि० प्र०-उठाना ।—करना । -छोड़ना ।—हालना ।- फेंकना।—होना । यौ०-लगरगाह। २. लकडी का वह कुदा जो किमी हरहाई गाय के गले में रस्सी द्वारा बाध दिया जाता है। इसके बांधन से गाय इधर उधर भाग नहीं सकती। गुर । ३ रस्मी या तार आदि से बंधी और लटकता हुई कोई भारी चीज जसका व्यवहार कई प्रकार की फलो मे और विशेषत. वडी घडियो श्रादि मे होता है। कि० प्र०-चलना ।-चलाना ।—हिलाना । विशेप-इन प्रकार का लगर प्राय निरतर एक मोर से दूसरी पोर पाता जाता रहता है। कुछ कलो में इसका व्यवहार ऐसे पुरजो का भार ठीक रखने मे होता है, जो एक प्रोर बहुत भारी होते हैं और प्राय इधर उधर हटते बढ़ते रहते हैं, वही घडियो मे जो लगर होता है, वह चाभी दी हुई कमानी के जोर से एक सीधी रेखा मे इधर से उधर चलता रहता है और घडी की गति ठीक रखता है। ४ जहाजो मे का मोटा वडा रस्सा। ५ लोहे की मोटी भोर भारी जंजीर । उ॰—हाथी ते उररि हाड़ा जूझो लोह लगर दै एती लाज का में जेती लाज छत्रसाल मे ।-भूपण (शब्द॰) । क्रि० प्रा-डालना ।—देना । ६ चांदी का बना हुमा तोडा जो पैर मे पहना जाता है। इसको वनावट जजीर की सी होती है। ७ किमी पदार्थ के नीचे का वह अश जो मोटा और भारी हो। ८ कमर के नीचे का भाग । ६ अडकोश । ( वाजारू १० पहलवानो का लंगोट । मुहा०-नगर बांधना = (१) पहलवानी करना । (२) ब्रह्म चर्य धारण करना । लगर लंगाट कसना या वांधना = लडने को तैयार होना। लंगर लंगोट ( किसी को ) देना या आगे रखना = पहलवानी सीसने के लिये किसी पहलवान का शिष्य वनना। ११ वह ( स्थान या व्यक्ति प्रादि ) जिसके द्वारा किसी को किसी प्रकार का प्राश्रय या सहारा मिलता हो। ( क.)। १२ कपडे में के वे टाके जो दूर दूर पर इसलिये डाले जाते हैं जिसमें मोडा हुत्रा कपडा अथवा एक साथ सीए जानेवाले दो कपडे अपने "थान से हट न जायं। विशेष-इस प्रकार के रसके पी सिलाई करने से पहले डाले जाते हैं, और इसीलिये इत्ते कच्ची सिलाई भी कहते हैं ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४६३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।