पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५८

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HO स० HO HO रोमकर्णक रोमावलि, रोमावली रोमकर्णक-सञ्ज्ञा पुं० [ ] खरगोश । खरहा। रोमश-वि० [सं०] १ रोएंदार । २. ऊनी । ३ क्रिया के सदोप उच्चारण से युक्त । रोमकूप-सज्ञा पुं॰ [ सं०] शरीर के वे छिद्र जिनमे से रोए निकले हुए होते हैं । लोमछिद्र। रोमश-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ भेंड। मेप । २ शूकर । सूअर । रोमकेशर-सञ्ज्ञा पु० [ ] चंवर । चामर। ३ पिंडानु । कुभी । ४ यो नि । भग (को०] । रोमशा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ ] १ दग्या नाम का वृक्ष । २ वृहस्पति रोमगत-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'रोमकूप' [को॰] । की कन्या लोमशा। रोमगुच्छ-सज्ञा पुं० [सं० ] चंवर । चामर । रोमशातन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] १. रोप्रो का उखाडना। २. जैनियो रोमद्वार-मज्ञा पुं० [ स० ] दे० 'रोमकूप' । का एक तप । केशलुचन (को०] । रोमन-सज्ञा पु० [अ० ] रोम देश का निवासी । रोमसूची-मक्षा स्त्री० [सं०] बालो को व्यवस्थित रखने के लिये रोमन कैथलिक-सचा पु० [अ० ] ईसाइयो का प्राचीन सप्रदाय । लगाया जानेवाला कांटा। विशेष—इस सप्रदाय मे ईसा की माता मरियम की, तथा अनेक रोमहर्ष -सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] रोगटे खडे होना । रोमाच । पुलक । सत महात्मानो की उपासना चलती है और गिरजो मे मूर्तियाँ रोमहर्षण'-सज्ञा पु० [ स० ] १ रोयो का खडा होना जो प्रानद भी रखी जाती है। के सहसा अनुभव से अथवा भय से होता है। २ वेदव्यास रोमपाट-सज्ञा पु० [ स०] ऊनी कपडा। दुशाला आदि। उ०- का शिष्य, सूत पौराणिक । चामर चरम वसन बहु भाँती। रामपाट पट अगानेत रोमहर्षण—वि० जिससे रोगटे खडे हो । भयकर । भीषण । जैसे,- जाता ।—तुलसी (शब्द०)। रोमहर्पण घटना। रोमपाद-सञ्ज्ञा पुं० [ ] अग देश के एक प्राचीन राजा जिनका रोमाकुर -

- सञ्चा पु० [ रोमाकुर दे० 'रोमाच' ।

उल्लेख वाल्मीकीय रामायरा के बालकाड, सर्ग ६ मे है । रोमाच-सच्चा पुं० [सं० रोमाञ्च ] १ आनद से रोया का उभर विशेप-यह राजा वडा अन्यायी और अत्याचारी था। इसके पाना । पुलक । २ भय से रोगटे खडे होना। पापो से एक बार भयकर अनावृष्टि हुई। राजा ने शास्त्रज्ञ रोमाचक-वि० [सं० रोमाञ्च+ क ( प्रत्य०)। रोमाचकारी। भयानक । रोमाच पैदा करनेवाला । उ०-सदियो के प्रत्या- ब्राह्मणो को बुलाकर उपाय पूछा। सबने ऋष्यशृग मुनि को बुलाकर उनके साथ राजकन्या शाता का विवाह कर देने को चारो की सूची यह रोमाचक ।-गाम्या, पृ० १४ । राय दो । वेश्याओ के प्रयत्न से ऋष्यशृग मुनि लाए गए और रोमाचिका-मज्ञा स्त्री० [ स० रोमाञ्चिका ] रुदतो नाम की खूव वृष्टि हुई। तब राजा ने अपनो कन्या शाता उन्हे लता (को०] । रोमाचित - वि० [ स० रोमाञ्चित ] १ पुलकित । हृटरोमा। २ व्याह दी। भय से जिसके रोगटे खडे हो गए हो। रोमपुलक - सञ्चा पु० [ म० ] रोमाच । रोगो का खडा होना [को०] । रोमवद्ध रोमाटिक-वि० [अ० रोमैटिफ ] जिसमे रोमास हो। उ०—तुलसी -सञ्ज्ञा पुं० [स०] वह वस्त्र जो रोयो से बंधा या बुना हो । निषेध के कवि नहीं हैं, वह सहज अपावन नारि के सौंदर्य- रोमवद्ध-वि० जो रोयो से बंधा या बुना हो । वर्णन मे हर रोमाटिक कवि को करने के लिये तत्पर रोमभूमि-सज्ञा पु० [ स० ) चमडा । त्वक् । रामनिभय । हैं।-प्र० सा०, पृ० ३३ । रोमरध्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रोमरन्ध्र ] दे० 'रोमकूप' [को॰] । रोमातिका मसूरिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० रोमान्तिका मसूरिका ] चेचक रोमराजि, रोमराजी-सज्ञा स्त्री० [ स० ] १ रोमावलि । रायो की की तरह का एक रोग जिसमे रोमकूम के समान महीन महीन वह पक्ति जो पेट के बीचो बोच नाभ से कार की ओर दाने शरीर भर मे निकलते हैं और कई दिनो तक रहते है। खाँसी, ज्वर और अरुचि भी रहती है। इस रोग को छोटी रोमराजीव-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० रोमराजी] दे० 'रोमराजी' । उ० माता भी कहते हैं। उर वीच रोमराजीव रेष । गुरु राह मेर मधि चल्यो भेष | रामास-सञ्चा पु० [अ०] १ प्रणयकया। प्रेमकहानी। २ साहसिक पृ० रा०, २।२७४। कथा। ३ वह कया या घटना जिसमे अद्भुत साहस, प्रेम- रोमलता-सञ्चा स्त्री॰ [ स० ] रोमावलि । रोमराजी। उ०—कटि प्रसगो ग्रादि का रोमाचक वर्णन हो । ४ प्रणयव्यापार | अति सूक्षम उदर धुति चलदल दल उपमान | रोमलता तन रोमाग्र-राज्ञा पुं० [सं०] रोएं की नोक । घूम अति चारु चिरीन समान । --केशव (शब्द॰) । रामानी-वि० [अ० रोमास ] दे॰ 'हमानी'। रोमविकार-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] दे० 'रोमहर्ष' (को०] | रोमाली-सञ्ज्ञा सी० [सं० ] रोया की पक्ति । रोमावली । रोमराजी। रोमविक्रिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'रोमहर्ष' [को०] । रोमालु-सज्ञा पु० [सं०] पिंडालु [को॰] । रोमशी-सचा स्री० [स०] काष्ठमार्जार । वृक्षशायिका। चमर- यौ०-रोमालु'विटपी= कु भी वृक्ष । पुच्छ (को०]। रोमावलि, रोमावना--प्रज्ञा सी० [स० रोया को पक्ति जो पेट जाती है।