HO रै खरपूजा ४२०४ रेसवा हैं, तथापि खाने योग्य फल या छाया न होने के कारण लोग ३ सदेह । शक । शंका । ४ मेढक । मक (को०) । ५ एक इसे निकृष्ट पेडो मे गिनते हैं। प्रकार की मछनी (को०)। २ एक प्रकार की ईख जिसे रेंडा भी कहते हैं। रेकण-सज्ञा पुं० [सं० रेकणस ] स्वर्ण । नोना को०] । रँडखरबूजा-सञ्ज्ञा पुं० हि० रेट + खरबूजा ] पपीता । रेकान-सगा पुं० [श० ] वह जमीन जो नदी के पानी को पहुंच के रैड़ना-फ्रि० अ० [हिं० रेड ] १ फसल के पौरे का बढ़ना। वाहर हो। २ पौधे (विशेषत धान, गेहूं, जो प्रादि का ) गर्भित होना । रेकार्ड-सज्ञा पुं० [अ०] १ किमी सरकारी या सार्वजनिक सम्या पौध का उस अवस्था को प्राप्त हाना जिसके कुछ समय वाद के कागजपत्र । २ अदालत की मिसिल । ३ कुछ उसमे से वाले निकलती है। विशिष्ट ममालो से बना तवे के प्राचार का गाल टुकडा रैडमेवा-सशा पुं० [हिं० रैड + मेवा ] अडकाकुनी। रेंडखरबूजा । जिसमे वैज्ञानिक क्रिया से किसी का गाना बजाना या कही पपीता। हुई वातें भरी रहती हैं । फोनोग्राफ के सदूक के बीच में निकली रड़ा'—सज्ञा पु० [हिं० रंड ] १ एक प्रकार का धान जिसकी फसल हुई कील पर इने लगाकर कुजी देने पर यह घूमने लगता है कुमार कातिक मे तैयार हो जाती है। २. धान, गेहूं, जौ आदि और इसमे से शब्द निकलने लगते हैं। चूडा। विशेप दे० का गर्भ। 'फोनोग्राफ'। क्रि० प्र०-लेना । पाना । रेक्टर-सञ्ज्ञा पुं० [ ] किमी मम्या का विशेषकर शिक्षा सस्या रडा १- सच्चा स्त्री० एक प्रकार की ईख । का प्रधान । जैस,-यूनिमिटी का रेक्टर । 1-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रैंड ] अरडी या रेंड के बीज जिनसे तेल रेख-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० रेसा ] १ रेखा। लकीर । उ०-दुई ननन निकलता है और जो रेचक होने के कारण दवा के काम मे बीच मे काजर रेख विराजत रूप अनूप जग्यो ।- (को०)। आते है। मुहा०-रेख सींचना या खीचना, सचाना = (१) लकीर रैदी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ रश० ] खरबूजे का छोटा फन । ककडी या खरबूजे बनाना । रेसा पाकत करना । (२) फताफल का विचार करने की वतिया। के लिये चक्र आदि वनाना । (३) पहने मे जोर देना । रैन-सज्ञा स्त्री० [हिं० रैन ] दे० 'रैन' । उ०—किने दिन गए रेंन दृढता प्रकट करना । निश्चय उत्पन्न करना। प्रतिज्ञा करना। सुख सोएं। -पोद्दार अभि० प्र०, पृ० २३८ । कोई बात जोर देकर निश्चित रूप से कहना • उ०-(क) पूछा रैर-ग्र० [अनु० ] अनमने लडकों के रोने का शब्द । गुनिन्ह, रेख तिन साँची। भरत भुवाल होहिं, यह सांची।- मुहा०-रे रे करना = बच्चो का धीरे धीरे और कभी कभी देर तक तुलसी (शब्द॰) । (ख) रेस खंचाइ कही वल भाखी । भामिनि रोना । जैसे,—यह लडका जव देखो, तब रे रे करता रहता है। भइउ दूध के माखो।-तुलसी (शब्द०)। रेस कादना = दे० रवमा- 'रेख सोचना'-१ । उ०-तृन तोरयो गुन जात जिते गुन
- - सज्ञा पुं० [ दश० ] बवून से मिलता जुलता एक पेड ।
काढति रेख मही। —सूर (शब्द०)। रे-अव्य० [सं०] १ सबोधन शब्द । उ०-क्यो मन मूढ़ छबीली २ चिह । निशान । उ०-विना रूप, बिनु रेख के जगत नचाव के अगनि जाय पर्यो रे समा जिमि भीर मे -मन्नालाल सोइ ।—(शब्द०)। (शब्द॰) । यो०- रूप रेख = प्राकार । स्वरूप । मूरत । उ०-ना प्रोहि ठावं विशेप-इस सबोधन से प्रादर का भाव सूचित होता है और न श्रोहि दिनु ठाऊ। रूपरेख विन निरमल नाऊ।-जायसी इसका प्रयोग उसी के प्रति होता है, जिसके प्रति 'तू' सर्वनाम (शब्द०)। का व्यवहार होता है। ३ गिनती | गणना । शुमार । हिसाव । उ०—तिन महं प्रथम २ तुच्छना वा अपमानसूचक मवोवन । रे-सचा पुं० [सं० ऋपभ का श्रादि र ] सगीत मे ऋषभ स्वर । रेख जग मोरी।-मानम, ११४ नई नई निकलती हुई मूर्छ । जैसे--स, रे, ग, म, प, घ, नी । मूछो का आभास । उ०—देख छैल छपीले रेख उठान । -देव (शब्द०)। रेउछना-क्रि० अ० [ देश० ] किसी वस्तु या व्यक्ति के आस पास क्रि० प्र०-निकलना। चकर मारना। रेउछा-सञ्चा पुं० [हिं० रेवछा ] दे० 'रेवंछा' । मुहा०-रेख आना, भीजना या भीनना = निकलती हुई मूछो का दिखाई पडना। रेउढ़ा-सचा पु० [हिं० रेवडा ] दे० 'रेवडा' । ५ हीरे के पांच दोपो मे से एक जिसमे हीरे मे महीन महीन लकीरें रेउही -सच्चा स्त्री॰ [हिं० रेवडी] दे० 'रेवडी'। सी पडी दिखाई पडती हैं। रेउरा-सझा पुं० [हिं० रेवरा ] दे॰ 'रेवरा' । रेखता-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० रेख्तह, ] एक प्रकार का गाना या गजल रेतरी -सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रेवडी । दे० 'रेवडी' । जिसका प्रचार भरवी फारमी मिली हिंदी में पहले पहल मुसल- रेक-सचा पु० [स०] १. दस्त लाना। विरेचन । २. भवम । नीच । मानो द्वारा हुमा था। इसी से उर्दू को बहुत दिनो तक लोग