४२०३ रूसियाह' या मिट्टी का तेल मिलाकर मुगधित द्रव्य तैयार किया जाता यह बहुत मजबूत और चिकनी होती है। रग देने और वानिश है। मध्यप्रदेश के जगलो से रूसा का नेल बहुत अधिक मात्रा करने से इसपर बहुत अच्छी चमक पाती है। इसमे मेज, कुरसी, में बाहर जाता है। यूरोप और अमेरिका मे इस तेल का बहुत पालमारी और तसवीर के चौखटे बनाए जाते हैं। यह वृक्ष व्यवहार तथा व्यापार होता है। वीज से बरसात मे उगता है। इसको सस्कृत में 'अहिगधा' कहते हैं। इसकी पत्तियाँ उत्तेजक और कटु होती है। इसकी पर्या-हिप । र धवेना । भूतृण । कत्तृण । गधतृण । छाल पेट को पीडा और अंतरिया ज्वर में दी जाती है। इसकी रूसियाह'-वि० [फा०] जिसका मुंह काला हो। कदाचारी । मात्रा ३ माशे स ६ माशे तक है। यह मधु के साथ कुष्ठ रोग पापात्मा । बदचलन । गुनहगार । पापी । बदनाम । उ०-काश मे और काली मिर्च के साथ पीसकर विशूचिका तथा प्रातसार दस पांच साल पहले तुम मुझे मिल जाते तो तैमूर तवारीख मे मे दी जाती है । इस वैद्य लोग ईसरमूल, अकम्ल और रूहीमूल इतना रूसियाह न होता।-मान०, भा० १, पृ० १९४ । कहते हैं। रूसियाह- सज्ञा पु० [फा०] १ सूर्य । २ प्रासमान [को०] । रूहामूल-सहा पु० [हिं० रूही+मूल ] रूही नामक वृक्ष की छाल रूसियाही सज्ञा स्त्री॰ [ फा . ] बदचलनी । पाप । गुनाह (को०] । और जड । ईसरमूल । प्रर्कमूल । अतिगवा। विशेप द० 'ही' । रूसी-वि० [हिं० रूस ] १ रूस देश का रहनेवाला । रूस देश का रेंट-सञ्ज्ञा पुं० [प्र. रेन्ट ] घर, मकान या जमोन का किराया। निवासी। २ रूस देश मे उत्पन्न । ३ रूस देश का । रैकना-क्रि० अ० [अनु० या स० रिङ्कण ] ( गदहे का बोलना । रूसी-सज्ञा स्त्री० रूप देश की भापा । उ० - तिसका शब्द सुनकर धेनुक खर रेंकता आया । - लल्लू रूसी-सज्ञा स्त्री० [ देश० ] सिर के चमडे पर जमा हया भूपी के (शब्द॰) । २ वुरे ढग से गाना। उ०—पर हमारे राम भी समान छिलका जो सिर न मलने में जम जाता है। जब रेंकते है, तो तीसो रागिनी हुडदगा नाचने लगती हैं।- क्रि० प्र०-जमना।-निकलना। प्रतापनारायण (शब्द०)। रूस्त-सज्ञा पुं० [ म० ] कपडे का किनारा । दामन । अचल [को०] । रंगटा -सञ्ज्ञा पु० [ अनु० रेकना ] गदहे का बच्चा । रूह-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ प्रात्मा । जीवात्मा । उ०-चाम चश्म के रेंगना-क्रि० अ० [सं० रिङ्गण ] १ कीडो और सरीसृपो का नजर न आवै देखु रूह के नैना । चून चिगून वजूद नमाजु तें गमन । च्यूटी आदि कीडो का चलना । उ०-रकत के आँसु सुभा नमूना ऐना ।—कबीर (शब्द॰) । २ सत्त। सार । पर भुई टूटी। रोग चली जनु बीर बहूटी।-जायसी (शब्द०) जैसे,-रूह गुलाब, रूह केवडा, रूह पानडी ( यह इत्र का २ धारे धीरे चलना । उ०—(क) कोउ पहुंचे कोउ रेंगत मग एक भेद होता मे कोउ घर मे ते निकसे नाहिं । —सूर (शब्द०)। (ख) गऊ यौ०- रूह अफजा=प्राणवर्धक । सिंघ रेंगाहे एक बाटा ।—जायसी (शब्द०)। मुहा०-रूह कब्ज हो जाना, रूह फना होना = भय से स्तव्य हो रगनी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रेंगना ] भटकटया । जाना। रैट-मशा पु० [ देश० ] श्लेष्मा मिश्रित मल जो नाक से (विशेपत. रूहड़-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० रूई । पुरानी रूई जो पहले किसी प्रोढने जुकाम होने पर) निकलता है । नाक का मल । या विछाने श्रादि के कपडो में भरी रही हो । क्रि० प्र०—निकलना ।-बहना । रूहनाg-क्रि० प्र० [ म० रोहण ] चढना । उमडना । छा जाना । रटा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] लिसोडे का फल । उ०-चहुँ दिसि दिष्टि परी गज जूहा । श्यामल घटा मेघ जस रड़-सज्ञा पु० [ सं० एरण्ड ] १ एक पौधा । एरड । रेडा । उ०- रूहा।—जायसी (शब्द०)। नाम जाको कामतरु देत फल चारि ताहि तुलसी विहाइ के रूहना-क्रि० स० [हि० सँधना] आवेष्टित करना। घेरना । उ० ववूर रेंड गोडिए । —तुलसी (शब्द॰) । इमि वमु पोडश वत्तिस जूहा । मधि मोहन शशि के सम रूहा। -गोपाल (शब्द०)। विशेप-यह ६-७ हाथ ऊंचा होता है और इसकी पेडी और टहनी पोली तथा मुलायम होती है। इसके चारो ओर वडी रूहानियत-सञ्चा सी० [फा०] अध्यात्मवाद । आत्मवाद । वडी शाखाएं नहीं निकलती, सिरे पर छोटी छोटी टहनियां रूहानो-वि० [अ० ] आध्यात्मिक । आत्मिक । होती हैं, जिनमे पत्तो की पोली डांडियां लगी रहती है। इन रूही-सश स्रा [ देश० ] एक प्रकार का वृक्ष । अर्कमूल। चौरी। डाडियो के छोर पर वालिश्त डेढ वालिश्त के बडे बडे गोल कटावदार पत्त लगे रहते है। कटाव बहुत लवे होते हैं और विशेप-रूही का वृक्ष हिमालय पर्वत के नीचे रावी नदी के पत्तो तथा टहनियो के रग मे कुछ नीली झाई मी रहती है। पूर्व में तथा मध्यभारत और मद्रास प्रात मे पाया जाता है। फूल सफेद होते है और फल गाल गोल तथा कंटोले होते है। इसे चौरी और मामरी भी कहते हैं। इसकी छाल देशी प्रोपधियो फलो के अदर कई बडे बडे वीज होते हैं जिनमे से बहुत तेल मे काम पाती है और जड साँप काटने की घोषधि मानी जाती निकलता है। यह तेल जलाने और प्रौपध के काम पाता है। है। इसकी लकड़ी तौल मे प्रति घनफूट २७ सेर तक होती है । यह दस्तावर हाता है । यद्याने इसके वोज बहुत काम के होते 1 ईसर मूल।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४४४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।