हरा ४२०२ रूसा तथा जगल हैं। श्राबादी इम देग मे धनी नहीं है। यह देश ८६,६०,२८२ वर्ग मील है। इसकी राजधानी पहले लेनिनग्राड थी और अब ( मास्को ) है । रूस-मज्ञा स्त्री॰ [फा० विश ] चाल । (लश०) । रूसना-'क्र० अ० [हिं० रोप] १ रोप करना । नाराज होना । रूठना । उ० (क) खोला प्रागे पानि मजूना । मिल निकसी बहु दिन कर रूसा ।-जायमी (शब्द )। २ मान करना । रूठना । उ०—(क) वारहि बार को रूसित्रो बारो बहाउ जु बुद्धि वियोग वसाई । केशव (शब्द०) । (ख) जगत जुगफा ह जियत तज्यो तजे निज भान | रूसि रहे तुम पूस मे यह घौं कौन समान ।-पद्माकर (णन्द०)। क्रि० प्र०-जन ।-बेठना रहना । रूसा-वि० [सं० रुप् (= रोप)] [वि० सी० रूप]] रूठा हुप्रा । रुष्ट । उ०-श्याम अचानक पाररी। पाडे ते लोचन दोउ मूदे मो को हृदय लगाए री। लहनो ताको जाके आ मैं वड- भागिनि पाए री। यह उपकार तुम्हारो सजनी रूसे कान्ह मिलाए री।-सूर (शब्द०)। रूसा - मञ्ज्ञा पुं० [म. रूपक ] अडूमा । अहसा। विशेप दे० 'अडूसा'। रूसा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रोहिप] एक मुगघित घाम का नाम । भूतृण उ०- 3 - रोहिप । जोर में मन्द करना । उ०—(क) एक मुई रुर सुई सो दजी । रहा न जाय आयु अव पूजी |--जायसी (शब्द०)। (ख) हमरे श्याम चनन कहत हैं दूरि । मघु बचन बसत अास हुती मजनी प्रब मरिही जु विमूरि। कौन कही कौन सुनि पाई केहि व रथ की धूरि । सहि सबै चनो माधव के ना तो मरिहा रुरे । दक्षिण दिशि यह नगर द्वारिका सिंधु रह्यो जन पूर । मूग्दाम प्रभु बिनु क्यो जीवां जात मजीवन मूरि । --यूर (शब्द)। रूग-वि० [ मं० स्ढ ( = प्रशस्त) ] [वि० सी० रूरी] १ प्रशस्त । श्रेष्ठ । उत्तम । अच्छा। उ० (ब) जिन्हके प्रवण समुद्र समाना। क्था तुम्हार मुभग सरि नाना । भरहिं निरतर होहिं न पूरे । तिन्ह के ह्यि तुम कह गृह रूरे । तुलसी (गन्द०)। (ख) लटकति ललित ललाट लटूरी। दमकति दूव दतुरिया रूरी।-मुर०, १०१११७, २ बहुत बडा । चित्र की सी पुनिका के रूरे बगरू रे माँहि शवर छडाय लई कामिनी के काम की।-केशव (शब्द॰) । सुदर। मनाहर । उ.-मेघ मदाकिनी, चारु सौदामिनी, रूप रूरे लमै देह वारी मनो।केशव (शन्द०)। रूल-सशा पुं० [अ०] १ नियम । कायदा । २ लकीर सोचन का डडा। रूलर | ३ लकीर जो लिखावट सीधी रखन के लिये कागज पर स्त्रीची जाती है। क्रि० प्र०-खींचना। यौ०-रूलदार = (कागज) जिसपर लकीरें खिंची हुई हो। रूलना-'क्र० म० [श०] दवाना । हूलना। रूलर-सशा पुं० [१०] १ लकीर खीचने का डंडा । शलाका । २ लकीर खीचने की पटरी । पैमाना । ३ शामक । रूप-सा पुं० [हिं० रूख ] दे० 'रूख' । रूप-वि० [ स०] १ निर्दय । कठोर । २ अम्ल । खट्टा (को०] । रूपक'- पुं० [सं०] रूसा । अडूसा । वामक । रूपक-वि० १ मजानेवाला । २ लीपनेवाला (को०] । रूपण-मक्षा पुं० [सं०] १ भूपित करना । अलकरण । २ अनुलेपन । ३ श्राच्छादन । रूपा-वि० [हिं० रूखा ] दे० 'रूखा'। रूपित-वि० [सं०] १ टूटा हुआ। खडित । भग्न । भूपित (को०)। ३ लिप्त (को०)। ४ मलिन । दूपित (को॰) । ५ नुगधित । नुवामित (ने । ६. जडा हुआ । जटित (को०)। रूस-- नज्ञा पुं॰ [फा० ] एक देश का नाम जो यूरोप और एशिया दोनो महाद्वीपो के उत्तरी भाग मे फैला हुआ है। विशेप-इसके उत्तर मे उत्तरीय हिमसागर, पूर्व मे प्रशात महा- मागर, दक्षिण मे चीन, तुर्किस्तान, फारस, कश्यप सागर, का केशम या काफ पहाड, काला सागर और स्मानिया, तथा पश्चिम मे हगरी, जर्मनी, बालटिक की खाडी, स्वीडन और नारवे है। इस देश में बडी बडी नदियों और बडे बडे मैदान विशेष-यह घास नेपाल, शिमला, अलमोडा, काश्मीर, पजाब, राजमहल, मध्यप्रदेश के पहाडी प्रदेशो, बंबई और मद्रास के पर्वनो मे होती है । इस घास से गुलाब की सी मुगध आती है और इसका तेल निकाला जाता है। इसको प्रधान दो जातियाँ होती हैं । एक का फून सफेद और दूसरी का फूल नीले रंग का होता है । जन यह घास नरम रहती है, तब इसकी पत्तियो का रग नीलापन लिए हाता है, पर पकने पर उनका रग लाल हा जाता है। जव इसकी पत्तिया नरम होती हैं, तब इसे 'मोतिया' कहते हैं, और जब पककर लाल हो जाती है, तब उन्हे 'सी।फया' कहते हैं। सावन भादा मे यह फूलने लगती है और कातिक प्रगहन तक फूलती है। । इसी समय इसकी पत्तिया तेल निकालने के योग्य हो जाती हैं। जव घाम फूलने लगती है, तब काट ली ज ती है और इसकी छोटी छोटी पूलियो बाध ली जाती हैं। तेल निकालत समय देग मे पानी भरकर ढाई तीन सौ पूलिया उममे छोड दी जाती हैं । फिर देग पर सरपोश लगा देते हैं, जिसम दा नलिया, जो तीन चार अगुल मोटी और ग्वार हाथ लवी होती है, लगी रहती हैं। यह देग याग पर रख दिया जाता है और नलियो का मिरा तावे के दा घडो के मुंह से लगा दिया जाता है, जो पाना में हुवे रहते है। इस प्रकार घाम का पासव खीचा जाता है। जब पासव निकल पाता है, तब उसे एक चौड़े मुंह के वरतन मे उडेल लेते हैं। इस बरतन मे रूसे का अर्क थोडी देर तक रहता है भार तेल छोटे चम्मच से धीरे धीरे ऊपर से काछ लिया जाता है। यह तेल गुलाब के अतर मे मिलाया जाता है और इसमे ताडमीन सजित ।
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