पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३७

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क्ष ४१६६ रूतपत्र = शाखोट या शासोटक वृक्ष। रूपभाव = Fसापन । बेरुखा । रूजवर्ग = गहरे रंग का । जैसे बादल । रुराधालुरू % छोटी मधुमक्खियो का मधु। रूसम्बर % (१) जिसकी अावाज रूखो हो । (२) गदहा । रामभ । रूक्ष-सज्ञा पुं० १ वृक्ष। पेर। २ वरक नाग का एक तृण । ३ पारुण्य । कठोरपन । ४ गच्च किस्म या लो।। ५ फाली मिर्च [को०] । रूक्षण-सक्षा पुं० [म.] आयुर्वेद के अनुपार शरीर की चर्बी कम करना (को०] । रूक्षता-सशा सी० [स० २० कक्षा' [फो०] । रूक्षा-सा सी[ नं०] १ दतीवृक्ष । २ गधु शरीरा (को०] । रूख-सज्ञा पुं० [सं० रूक्ष या वृक्ष, प्रा० रक्ख ] पेठ । वृक्ष । उ०-(क) ऊपर ताल चहू दिग अमृत फन गव । दपि रूप सरवर ५ गा पियास प्रा ।-जायसी (शब्द०)। (ख) रूख कलपतरु सागर नारा ।ताह पठए वन राजमुमारा।- तुलसा (शब्द०)। (ग) वन डागर हूँढन फिरी घर मारग तजि गाउँ । बूझो द्रुम प्रति रस ए, कोउ कहै न पिय को नाऊँ।- सूर (शब्द०)। रूख-वि० [म० रक्ष, हिं० रूसा ] दे० 'रूपा'। रूखड़ा-सज्ञा पुं० [हिं० स्त+डा ] पेड । वृक्ष । उ०-विरा माया रूखडा दो फल की दातार । मावत परचत मुक गए सचत नरक दुवार ।-साबीर (शब्द॰) । रूखनाल-कि० अ० [सं० २] रूसना । रूठना । रूखरा-सज्ञा पुं० [हिं०] द० हजा'। रूखरा-वि० [हिं०] दे० 'रूखा' । रूखा--वि० [सं० रुक्ष, रूक्ष, प्रा० रुस ] १ जो चिकना न हो। जिसम चिकनाहट का प्रभाव हो । चिफ्ना का उलटा। अस्निग्ध । जैसे,-हसा वाल, रूखा शरीर । २.जिममे घा, तेल आदि चिकने पदार्थ न पड़े हो। जैस-सा राटी, रूखी दाल । ३ जो चटपटा न हो। जो सान मे रुचिकर और स्वादिष्ट न हो। सीठा । उ०—(क) कग सहब सिनहिं खिन भूखा। कंस खाब कुरकुटा रूखा ।-जायसी (शब्द॰) । (स) माच झूठ करि माया जोरी प्रापुन रूखो खातो। सूरदास कछु थिर नहिं रहिहै जो श्रायो सो जातो ।—सूर (शब्द०)। मुहा०-स्खा सूखा = जिसमे चिकना और चरपरा पदार्थ न हो। विना घो और चटपटे पदार्था के । जगे,-रूसा सूखा जा मिला, वही साकर पड रहा। ४ जिसमे रस न हो । मूखा । शुष्क । नीरस । ५ जिसका तल सम न हो। खुरदरा । जैसे,—यह कागज कुछ रूखा दिखाई पडता हे। यौ०-रूखा माल = नक्काशो किया हुआ वरतन (कसेरा)। ६ जिसमे प्रेम न हो। स्नेहरहित । नीरस । फोका । उदासीन । उ०—(क) रूखे सूखे जे रहत नेह वास नहिं लेत। उनतें वे अगियां मनी र परगि जिय T-7निति (मद०)। (त्र) सतर नार मा पनि नाटि । हा यागह जाति हरि हरि गौती दी।-farm (२०)। (ग) दे ही नैनरास सात बार नौग पोईना नागा न भरे नार फै।-मतिगम (ग"०)। ७ प । ठार । उ.--(२) मुसगी रामहरि । भीर पी जानिए जम मीठी उप-म (२०)। (२) नर न २२ दाह गिगी। माता पिता का बाधिन ची। गुतमी (श द०)। मुहा०-या पाना या ना = (१) गुना। शील मोच या त्याग ना । (२) द -II नागज लता । रीर प्रस्ट गग्गा ।पा। 30-यकोप-शिमग जगभी मनेा । मामाचा टीपयानो देह।- विदाग (२०) । (4) नाना ५ नए Tो। यह मुनि हंग ये स्त।-गुर (३०) । ८ दागीन । चिरक । 30--(क) नाहित गज भू। घरम घुगा विषय ।।-गुली (८०)। (घ) सजल नयन पशु मुग पारमा जागी प्रति ।-नसी (श-२०) । (ग) नह 11747 मिन रस गिा। नह लगाए भापता या लादा बार--नाय (गन्द॰) । रूखा-सा एक प्रकार की नी। रूखापन-101 पुं०1० सा+पन (प्रत्य॰)] १.गे होने का भाष । यसआई। २ पुरता । नाता। ३ ठोरता (व्यवहार पी)। ८ उदासीनता । ५ स्यासीनता। रूगा-सज्ञा पुं० [सं० रक (= उदारता)निमी नौद या यह योग भाग जो रानियाले | बचनपाला मत म भधिक दे दिया करता है। घाना धतुमा।गा। रूचना-नि० म० [रि० जना ) ० चना 130-चले निपाद जोहा। जाहारा । तर सफल रन रचा रागे।-नुलगी (उब्द०)। रूज- पु० [अ० ] एक प्रसर को बुकना जिसे मलक मोना, चोदी माद पातुमा की चीजों पर जिना किया जाता है। विशेप-यह तूतिए या हीरा मो से बनाया जाता है । पहले तूतिए या कभीम पो प्राा पर तपाते है, और जब वह जल जाता है, तब उसे गारीफ पीरा डालन है। कभी कमी नूतिए को पानी मे गलाकर और निवार तवा धोकर फूंकने से गी रज बनता है। यह जोहरिया के काम प्राता है। रज मे सडिया भी मिलाई जाती है। सज्यिा घोर पारा मिसाफर रूज से वरतन पर जिला पा फनई की जाती है। २ एक पाउडर या चूर्ण जिससे कपोलो पर लालिमा लाई जाती है। शृगार का एक प्रसाधन । रूझना-क्रि० स० [सं० / रुध् ] दे० 'अल्झना' या 'उलझना' । उ०-निज अवगुन गुन राम रावरे, लखि सुनि मति मन रूम। -तुलसी (शब्द०)।