पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३४

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रुमणे वु, रुवुक, रुवूक कहर उस वक्त कोई रुमझुमाकर और ढाता हो।-ठढा०, के सप्तर्पियो मे मे एक का नाम । ७ एक भैरव का नाम । पृ० २३ । ८ एक फलदार वृक्ष का नाम । ८ श्वान । कुत्ता ,फो०] । रुमण-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] रामायण के अनुसार एक वानर जो सौ रुपा सज्ञा पुं० [हिं० ररना, ररुश्रा ] बडी जाति का उल्लू करोड वानरों का यूथपति था। जिसकी वोली बडी भयावनी होती है। उ०- रुरुया चहुं दिसि रुमन्वान्-सक्षा पु० स० रुमन्वत् ] १ महाभारत के अनुमार एक ररत, हरत सुनिक नर नारी। हरिश्चद्र (शब्द॰) । प्राचीन ऋषि का नाम । २ पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । विशेष प्रवाद है, यह कभी कभी किसी का नाम सुनकर रटने रुमांचित-वि० [ स० रोमाञ्चित ] दे० 'रोमाचित' । लगता है और वह आदमी मर जाता है। इसका बोलना लोग रुमा- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ वाल्मीकि के अनुसार सुग्रीव की पत्नी बहुत अशुभ मानते हैं। का नाम । २ नमक की खान या झील (को॰) । रुरुक्षु-वि॰ [ म० ] चिकना का उलटा । रूखा। रुक्ष । उ०—काल रुमाल-सशा पुं० [फा० रूमाल ] दे० 'रूमाल' । जिघृक्षु रुरुक्षु कृपा का स्वपानन स्वक्ष स्वपक्ष प्रियाही ।- रुमाली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० रूमाल] १ एक प्रकार का लंगोट जिसमे रघुराज (शब्द०)। कपडे के एक छोटे तिकोने टुकडे के दोनो योर दो लवे वद और रुरुत्सा- सज्ञा स्त्री० [सं० ] रोध करने की अभिलापा। रोकने की तीसरे कोने पर, जो नीचे की ओर होता है, एक लबी पतली चेष्टा । ३ रोक । रुकावट (को०] । पट्टी टंकी होती है। रुरुभेरव-संज्ञा पुं० [ म० ] तात्रिको के अनुसार एक प्रकार के विशेष-इसके दोनो बद कमर से लपेटकर बाँध लिए जाते है और भैरव जिनका पूजन दुर्गा के पूजन के समय किया जाता है । नीचे की पट्टी से आगे की ओर इद्रिय ढककर उसे फिर पीछे की रुरुमु ड-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रुरुमुण्ड ] एक पर्वत का नाम । ओर उलटकर खोस लेते हैं। प्राय कुश्तीबाज लोग कसरत करने रुलना-कि० अ० [सं० लुलन (= इधर उधर ढोलना )] इयर या कुश्ती लडने के समय इसे पहनते हैं। उधर मारा मारा फिरना। आवारा फिरना। उ०-सु दर २ छोटा रूमाल । गमछा । ३ मुगदर हिलाने का एक हाथ या रोझ राम जी जाकै पतिवत होइ। हलत फिर ठिक बाहरी प्रकार। ठौर न पावै कोइ ।-सु दर ग्र०, भा॰ २, पृ० ६६१ । २. विशेष- इसका हाथ सिर के ऊपर से मुगदर को ताने हुए और खराव होना। दवा रह जाना। हिल डुलकर जहां का तहाँ फिर पीठ के ऊपर के प्राधे भाग तक होता है। इसमे अधिक रह जाना। बल की आवश्यकता होती है। रुलाई- -सशा लो० [हिं० रोना+पाई (प्रत्य॰)] १ रोने की किया रुमावली-सशा स्त्री० [सं० रोमादली ] दे० 'रोमावली'। या भाव । २ रोने की प्रवृत्ति । रुम्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सूर्य का सारथी, अरुण किो०] । क्रि० प्र०-याना । छूटना । रुम्र'- वि० पिंग वर्ण का । भूरे रंग का । २ चमकीला । ३ मुदर [को०] । रुलाना-क्रि० स० [हिं० रोना का प्रेर० रूप ] दूसरे को रोने मे रुरना-क्रि० अ० [ स० लुलन] १ लुढकना । पडना । गिरना । प्रवृत्त करना । उ०-उस कहने ने सबको रुला दिया।- उ०-मधि बाजार चलि रुवर नदि रुरत तु है घन मुड । - सुधाकर (शब्द०)। पृ० रा० ५।८६ । २ हिलना डुलना । कपित होना । उ० - रुलाना-क्रि० स० [हिं० रुलाना का सक० रूप] १ इधर उवर सहज हसौं ही छवि फवति रंगीले मुख दसननि जोति जाल फिराना । २ नष्ट करना । मिट्टो खराब करना । मोती माल सो रुर । - रसखान० पृ० ८६ । रुल्ला- रुराई-सज्ञा स्त्री० [हिं० रूरा+ ई (प्रत्य॰)] सुदरता। लुनाई। - सज्ञा क्षी० [देश॰] वह भूमि जिसकी उपजाऊ शक्ति कम हो गई हो और जिसे परती छोडने की अावश्यकता हो। उ.-मैं सव लिखि सोभा जो वनाई। सजल जलद तन वसन कनक रुचि उर बहु दाम रुराई ।-सूर (शब्द०)। रुल्ली-सज्ञा स्त्री० [ देश०] रोहिणी की तरह की एक प्रकार की वनस्पति जो उससे कुछ छोटी होती है। रुरु-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ काला हिरन । कस्तूरी मृग । २ एक दैत्य का नाम जिसे दुर्गा ने मारा था। ३ पुराणानुसार एक प्रकार स्वथ- सज्ञा पु० [सं०] श्वान । कुत्ता [को०] । का बहुत ही क्रूर जतु जिसे भारशृग भी कहते हैं। रुपा-सशा पु० [हिं० रोवॉ ) सेमल के फूल के अदर से निकला विशेप-ऐसा प्रसिद्ध है, इस लोक मे जो लोग हिंसा करते हैं, हुआ घूमा । भूपा । उ०—का सेमर के साख बढाए फूल अनूपम उन्हे हिंसित प्राणी, रुरु होकर, रौरव नरक मे काटते है। बानी। केतिक चात्रिक लागि रहे है चाखत रवा उडानी।- ४ एक प्रसिद्ध ऋपि जो प्रमत्ति के पुष और च्यवन के पौत्र थे। कबीर (शब्द०)। विशेष-कहते हैं, जब इनकी स्त्रो प्रमहरा का देहात हो गया, हवाई - -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० रुलाई दे० 'रुलाई। तब इन्होने उसे अपनी प्राधी प्रायु देकर जिलाया था। रुवाव-सशा पुं० [अ० रुब ] द० 'रोब'। ५. विश्वेदेवा के भतर्गत देवताओ का एक गण । ६. साणि मनु वु, रुखक, रुवूक-सञ्चा पु० [२०] एरड वृक्ष । रेंड का पेड (को०] । रुल्ल, Ho