रुकवाना ४१८४ रुक्मी to रुकवाना-क्रि० स० [हिं० रुकना का प्रेर० ] दूसरे को रोकने में चरण मे 'भ म म ग (5 II, sss, 15, 5) होते हैं। इसके प्रवृत्त करना । रोकना । रोकने का काम दूसरे से कराना । और नाम 'रूपवती' तथा 'चपकमाला' भी हैं। रुकाव - सज्ञा पुं० [हिं० रुकना ] १ रुकने का भाव । रुकावट । रुक्मवाहन-सा पु० [ स० ] द्रोणाचार्य । अटकाव । अवरोध । रोक । २ मलावरोध । कब्ज । ३ स्तभन। रुकमसेन--मज्ञा पुं० [ ] मीमणी का छोटा भाई । उ०—तव रुकुम-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० रुक्म ] दे० 'रुक्म' । छोटा वालक नृप केरा। रकममेन बोला यहि वेरा।-विधाम रुकुमी-सज्ञा पुं० [सं० रुक्मी ] दे० 'हक्मी' । (शब्द०)। रुक-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० रुच् ] १ शोभा। द्युति । काति । २ रुक्मागद-सज्ञा ॰ [सं० रस्माङ्गद ] एक राजा का नाम । उ०- रुक्मागद महपाल, भयो एक भगवान प्रिय । ताकी कथा आकाक्षा। इच्छा । ३ तेज । ४. मानद । ५ शुक सारिका की बोली या कूजन [को०] । रमाल, मैं वर्णो सक्षेप ते ।-रघुराज (शन्द०)। रुक्माभ-वि० [सं० ] सोने की तरह चमकीला । सुनहरा [को०) । रुक-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० रुज् ] रोग । व्यापि (को०] । यौ०-रुक्प्रतिक्रिया = रोग का प्रतिकार । चिकित्सा । रुक्मि-मन] पुं० [म० ] जना के अनुगार पांचवें वर्ष का नाम जो रम्यक और हैरण्यवत् वर्ष के मध्य में स्थित है । रुक्का-सज्ञा पुं० [अ० रुका ] १ छोटा पत्र या चिट्ठी। पुरजा। परचा । २ वह लेख जो हुडी या कर्ज लेनेवाल रुपया लेते रुक्मिण-मशा सी० [सं० रुक्मिणी ] दे॰ 'रुक्मिणी'। समय लिखकर महाजन को देते हैं। रुक्मिणी-संज्ञा स्त्री० [ म०] श्रीकृष्ण की पटरानियो मे से बडी रुक्ख -सज्ञा पुं० [स० वृक्ष, प्रा० रुक्ख ] रूख । पेड । वृक्ष । और पहली जो विदर्भ देश के राजा भीमक की कन्या थी। तुम रुक्म-सज्ञा पुं० [ न० उ०—(क) यह सुनि हरि रुक्मिणि सो कयौ। ज्यो मोको ] १ स्वर्ण। सोना । उ०-चल्यो रु,क्मनी चित पर चयो। वधु रुक्म रथ चढि भट रुक्मी।– गोपाल (शब्द०)। २ स्वर्ण- नूर (शब्द॰) । (ख) लसि रुक्मिणी कह्यो भूपण। स्वर्णाभरण (को०)। ३ घस्तूर । धतूरा । मुनि नारद यह कमला अवतार । —सूर (शब्द॰) । ४ विशेष-हरिवश मे लिखा है कि रुक्मिणो के सौंदर्य को प्रशमा लोहा । ५ नागकेसर । ६ रुक्मिणी के एक भाई का नाम । सुनकर श्रीकृष्ण उसपर प्रासक्त हो गए थे। उधर श्रीकृष्ण के उ०—कुदनपुर को भीषम राई। विष्ण भक्ति को तन मन रूपगुण की प्रशसा सुनकर रुक्मिणी भी उनपर अनृरक्त हो चाई। रुक्म आदि ताके सुत पांच । रुक्मिणि पुत्री हरि रंग रांच ।—सूर (शब्द०)। गई थी। पर श्रीकृष्ण ने कम की हत्या की थी, इसलिये रुक्मी उनसे बहुत द्वेप रखता था। जरासघ ने भीष्मक से कहा था रुक्म-वि०१ चमकीला । २ सुनहरा [को॰] । कि तुम अपनी कन्या रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ यौ०-रुक्मकेशी = सुनहले वालोवाला। स्वर्णकेश । जिसके केश कर दो। भीष्मक भी इस प्रस्ताव से सहमत हो गए। जब स्वर्णाभ हो। विवाह का समय आया, तब श्रीकृष्ण और बलराम भी वहाँ रुक्मकारक-संज्ञा पुं० [ ] सुनार । पहुंच गए । विवाह से एक दिन पहले रुक्मिणी रथ पर चढ़कर रुक्मकेश-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] विदर्भ के राजा भीष्मक के छोटे पुत्र इद्राणी की पूजा करने गई थी। जब वह पूजन करके मदिर से का नाम । बाहर निकली, तव श्रीकृष्ण उने अपने रथ पर बैठाकर ले चले। रुक्मपात्र-सञ्ज्ञा पु० [ स० स्त्री० रुक्मपात्री= स्वर्णथाली ] सोने समाचार पाकर शिशुपाल आदि अनेक राजा वहां आ पहुंचे का वर्तन (को०] । और श्रीकृष्ण के माय उन लोगो का युद्ध होने लगा। श्रीकृष्ण रुक्मपाश-सज्ञा पुं० [स० ] सूत का बना हुआ वह फदा या लड उन सबको परास्त करके रुक्मिणी को वहां से हर ले गए। जिसकी सहायता से गहने आदि पहने जाते हो। पीछे से रुक्मी ने श्री कृष्ण पर आक्रमण किया और नर्मदा के तट पर श्रीकृष्ण से उसका भीषण युद्ध हुया । उस युद्ध मे रुक्मी रुक्मपुर-सज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक नगर का नाम जहाँ को मूछित और परास्त करके श्रीकृष्ण द्वारका पहुंचे। वही गरुड निवास करते हैं। रुक्मिणी के गर्भ से श्रीकृष्ण को दस पुत्र और एक कन्या हुई स्क्मपृष्ठक-वि० ] जिसपर सोने का पानी चढ़ाया गया हो। थी। पुराणो मे रुक्मिणी को लक्ष्मी का अवतार कहा है । रुक्ममाली-सज्ञा पुं० [ स० रुक्ममालिन् ] पुराणानुसार भीष्मक रुक्मिदप, रुक्मिदारण-सञ्ज्ञा पुं० [स०] बलदेव । के एक पुत्र का नाम । रुक्मिदार-सशा पु० [ रुक्मिदारिन् । वलदेव । रुक्ममाहु-सज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार भीष्मक के एक पुत्र का रुकमिभिद्-सज्ञा पुं० [सं०] वलराम | वलदेव । नाम। रुक्मी- सज्ञा पुं० [सं० रुक्मिन्] विदर्भ देश के राजा भीष्मक का रुक्मरथ-सझा पुं० [सं०] १ शल्य के एक पुत्र का नाम । २ वडा पुत्र और रुक्मिणी का भाई। भीष्म के एक पुत्र का नाम । ३ द्रोणाचार्य । विशेप-जिस समय श्रीकृष्ण इमकी वहन रुक्मिणी को हर ले रुक्मवती-मञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] एक वृत्त का नाम, जिसके प्रत्येक चले थे, उस समय इसके माथ उनका घोर युद्ध हुआ था। BO ] स०
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२५
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