पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४२३

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रीठ' ४९८२ रीमा रीठ@--सझा सी[ स० रिष्ट ] १. तलवार । २ युद्र । (डि.)। जाउ म पो भौत पर ।-मार (शब्द॰) । (घ) रीठ-वि० अशुभ । खराब। रमरम परि धन धाम गंवारे ग्रा का उठि गैर-नुनमी रीठा'-सज्ञा पुं० [ स० रिप्ट, प्रा० ट्ठि या सं० रीठा (= रज (शब्द०)। (ग) ने पट परिवार नि मन को टारि । भेद ) ] १ एक वटा जगली वृक्ष जो प्राय बगाल, मध्य --माधि (गर)। प्रदेश, राजपूताने तथा दक्षिण भारत म पाया जाता है। रीति- ही [ मे०] १ ना. पाय पने शाहग। प्राार । यह देसन मे बहुत सु दर होता है। २ इस वृक्ष का 'फरा तर | । उ ~fT गुर्ग विधा परी जा सफरी की जो वेर के बराबर होता है। गति ।-किरी ()। । चिा। मारेपाटा । विशेप- इसको लोग सुखाकर रखते हैं। इसे पानी मे भिगोकर उ.--7) TATE मनसा प्यार त मन र प्रोनि । उनी मलने से फेन निकलता है जिससे कपडे पोर जाते हैं। गागीर गति मुग यह प्रग पर की गति-ग्गनिधि (गन्द०)। मे शाल भादि प्राय इसी से साफ किए जाते हैं। यह रेशम (अ) ग्युल गति चितिमाः। प्राग जाहि पर बचन न तथा जवाहिरात धोने के काम म भी पाता है। रो फेनिल 915I7T (T70) ! : TIITELI 1793 1 8 tiſzca मेकिता विपथ गा RBT परन विनिष्ट पदरचना वपन् भी कहते हैं। वों गी यह गाजना गिगो भाग, प्रमाद या माधु माता रीठा-सज्ञा पुं० [हिं० भट्ठा ] वह भट्ठा जिममे चूना बनाने के है।" पाना । ६ काहे का मल । म । ७ जने हुए लिये ककर फूंक जाते हैं । ( बुदेलखड ) । सोनी मैन। मोगा। ६ गति। १० धभार।११ रीठाकरज-सज्ञा पुं॰ [सं० ] ३० 'रीठा" । म्नुनि । प्रशना । रीठो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० रीठा ] 20 रीठा' । बार-काल = दिली नारि पतितांग का वर काल जत्र राडर'-संज्ञा पुं० [अ० ] १ वह जो पढे । पढनेवाला । पाठा। राति गमाफी राना Anाता थी। रातिमथ, २ कालेज या विश्वविद्यालय का अव्यापक जो लेक्चरर रीतिश रावेक्षणाय जिनम नायिकाभेद, नसतिष, (अध्यापक ) से ऊंचा होता है। व्याख्याता। ३ जो अलगार प्रापि का लक्षण एव नांदाहारण विवेचन किया लेख या पुस्तको के प्रूफ पढता या मशोधन करता है । मशोधक । गया हो। रीडर- सशा सी० पाठय पुस्तक । जैसे,—पहली गैहर । वेयिक रीडर। रीतिक पुं० [सं०] पीतल ॥ भन्म । पुप्पाजन [को०] । किंग रीडर। रीतिका-स ली० [स०] १ जम्ने का मस्म । २ पीतन । रीडिंग रूम-सशा पुं० [अ० ] अध्ययनाच । २० 'वाचनालय' । पुगुमाजन । रीढक-सज्ञा पुं० [सं० ] देखो 'रोढ़' (को०] । रीम' - सा खी० [अ० ] TITE Tो पर दी जिसमे वीन दम्ने रीढ़-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० रीठक ] पीठ के बीचोबीच को वह पटी हड्डी (गर्यात् ५०० नट) होते हैं। जो गर्दन से कमर तक जाता है और जिमगे पसलियां मिली रोम-रणे. [२०] मवाद । पी। हुई रहती हैं । मेरुदड। रोर-मझा जी० [हि० गा विशेष—यह वास्तव में एक ही हडी नहीं होती, बल्कि वहत रीर-मा पु० [ 10 ] शिव । सी हड्डियो की गुरियो की एक शृ खला होती है । इगे शरीर रीरी-मरा ग्यी० [ स० ] पीता। का प्राधार समझना चाहिए | इसका सीधा लगाव मस्तिक रीशमाल-मा सी० [फा०] यह व्यक्ति जो अपनी स्पो के अभिपार से होता है और बहुत से सदनमूत्र इसमे स दोनो पार की कमाई साता हो सिग। निकलकर फैले रहते हैं। रीढा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] अनादर । प्रवज्ञा । उपेक्षा किो०) । रीपगृफ-संज्ञा पुं॰ [सं० ऋयमूफ ] दे० 'प्राप्यमूर' । रोण-वि० [सं०] १ तिरोभूत । तिरोहित । अतर्धान । २ स्पदित । रीस'-गशा री० [हिं०] १ दे० 'गेनि' । उ-वृद्ध जो मीन प्रसवित । क्षरित (को० । हुलाव गीय धुनहि तेदि रीन ।- जापती (सन्द०)। के ईर्चा | १ माह । उ० - वरनौ गोउ कर रीस-राशा सी० [ रीत-सज्ञा स्त्री० [हिं० रीति ] दे० 'रीति' । उ०—पखीन सो मीच सोहाग की रीतहि ।—देव (शन्द०) । रीमी ।—जायसी (शब्द०)। २ । बराबरी । उ०- (क) नेमल पिना गुगय तू करत मालती रीस । --दीनदयाल रीतना@1-क्रि० अ० [सं० रिक्त, प्रा० रित + हिं० ना (प्रत्य०) ] (शन्द०)। (स) कहो हिगालय शिव प्रभु ईस। हमगा उनसो खाली होना । रिक्त होना । उ०—हमहूं समुझि परी नीके करि फैसी रीस ।—सूर (शब्द० । यह आशा तनु रीत्यो ।—सूर (शब्द॰) । रीसनाल-क्रि० प्र० हिं० रिस +ना (पत्य०) ] ऋद्ध होना । सफा रीतनारे-क्रि० स० खाली करना । रिक्त करना। होना । उ० – मुख फिराइ मन अपने रोमा। चलत न तिरिया रोता-वि० [ रिक्त, प्रा० रित्त ] [ वि० सी० रीती | जिमके अदर कर मुख दीसा ।- जायगी (शब्द॰) । कुछ न हो। खाली। रिक्त । शून्य । उ०—(क) सांची कहि रीसा-ताशा सी० [२२० ] एक प्रकार की झाडी जिसकी छाल के रेशो 10 स०