पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४१

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मरमर ३६०० मरसा मरमर-मज्ञा पुं॰ [यू ] एक प्रकार का दानेदार चिकना पत्थर जिस- मुहा०—मरम्मत करना = (१) टूटे फूटे अंशो को दुरुस्त करना या पर घोटने से अच्छी चमक आती है। संवारना । (२) पीटना । ठोकना । मारना । विशेप-टममे चूने का अश अधिक होता है और इसे जलाने से मरयाद-मज्ञा स्त्री॰ [सं० मर्यादा ] दे० 'मर्यादा' । उ०—रहो अच्छी कली निकलती है। यद्यपि समार के भिन्न भिन्न प्रदेशो मरयाद बोले तुम हमेशा, करेगा फज्ल टू ई बात आगाह । मे अनेक रगों के मरमर मिलते हैं, पर सफेद रग के मरमर ही —दक्खिनी०, पृ० ११६ । को लोग विशेषकर मरमर या 'मग मरमर' कहते हैं । जो मरल'-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली । यह दो हाथ तक मरमर काला होता है, उसे 'सग मूसा' कहते हैं । मरमर पत्थर लवी होती है और दलदनो या ऐसे तालाबो मे पाई जाती है की मूर्तियाँ, खिलौने, वरतन श्रादि बनाए जाते हैं और उसकी जिसमे घाम फूम अधिक उगता है । पटिया और टोके मकान बनाने में भी काम आते हैं। मरल-वि० [हिं० मरना फा भोजपुरी रूप 'मृत' ] मृत । मरा अच्छा मरमर इटली से आता है, पर भारतवर्ष मे भी यह हुना। उ०—मरल गौ कई वार जियाया। बहुतक अचरज जोधपुर, जयपुर, कृष्णगढ और जबलपुर आदि स्थानो मे तिन दिखलाया। कबीर सा०, पृ० १५११ । मिलता है। मरवट -सना सी० [हिं० मरना ] वह माफी जमीन जो किसी के मरमग'-मज्ञा पुं० [हिं० मल या अनु० ] वह पानी जो थोडा मारे जाने पर उसके लडके वालों को दी जाती है। खारा हो। मरवट-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पटुए की कच्ची छाल जो निकालकर मरमरा-भज्ञा पुं॰ [ अनु० ] एक पक्षी का नाम । मुखाई गई हो। सन का उलटा । मरमरा-वि० को सहज में टूट जाय। जरा सा दबाने पर मर मर मन्द करके टूट जानेवाला । मरवट-सज्ञा मी० [हिं० मलपट ] वे लकीरें जो रामलीला श्रादि के पात्रों के गालो पर चदन या रग आदि से बनाई जाती हैं। मरमराना-फ्रि० प्र० [ अनु०, तुल म० मढमदायिता ] १ मरमर उ०-धंघरी लाल जरकसी मारी सोधे भीनी चोली जू, मरवट शन्द करना। २ अधिक दवाव पाकर पेड की शाखा या मुख पै शिर पै मौरी मेरी दुलहिया भोली जू। -भारतेंदु लकडी प्रादि का मरमर पन्द करके दवना । उ०—भयो भूरि ग्र०, भा० २, पृ० ४४६ । भार घरा बलत बरा कुमार करत चिकार चार दिग्गज सहित सोग । गिरिधरदास भूमि महल मरमरात प्रति घवरात से मरवा-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'मरुया'। परात हे दिसन लोग। परम बिसेस भार सहि ना सकत सेस मरवाना-क्रि० स० [हिं० मारना का प्रे० रूप ] १ मारने का एक तिर ब्रह्म मह सहस भरन बोग। लटकि लटकि सीस प्रेरणार्थक रूप। मारने के लिये प्रेरणा करना। २ बध मटकि मटकि चित्त भटकि मटकि डार पटकि पटकि भोग। कराना। -गोपाल (शब्द०)। सयो० क्रि०-ढालना । मरमराहट-सहा मी० [हिं० मरमराना] १ किमी लकडी या शाखा ३ दे० 'मराना'। के टूटने का शब्द । चरमराहट। २ धीमी धीमी आवाज । मरसा-सज्ञा पु[सं० मारिप ] एक प्रकार का माग जिसकी मूखे पत्ते प्रादि के पैरो से दबने की ध्वनि । ३ 7 अमतोप पत्तियां गोल मुर्गीदार और कोमल होती हैं। उ०—मरसा प्रकट करने की क्रिया। भुनभुनाहट । ( लाल साग ) के बडे बडे पत्तो को देखकर मुह से लार टपकती मेरमाणु-मज्ञा पुं॰ [स० मर्म] ३० 'मर्म' । उ०-घायल भए नाद के है।—किन्नर०, पृ० ७० । लागे मरमा है सवद कटारी हो।-पलटू०, भा० ३, पृ० ८४ । विशेप-इसके पेड तीन चार हाथ तक ऊचे होते हैं। इसके डठलो मरमिन-वि० सी० [स० मर्म ] मरमवाली। दुखियारी। दे० और पत्तियो का साग पकाकर लोग खाते हैं । मरसा दो प्रकार 'मी'। उ०—एक नारि दूजे मरमिन ह कित दुख मैं झोक का होता है। एक लाल और दूसरा सफेद । लाल मरमा साने री । 'हरीचद' कहवाइ मुघर क्यो बढवति सोक ।-भारतेंदु मे अधिक स्वादिष्ट होता है। मरसा वरसात के दिनो में ग्र०, भा॰ २, पृ० ३८२। वोया जाता है और भादो कुमार तक इसका साग खाने योग्य मरमी।-वि० [स० ममिन्] रहस्य जाननेवाला । उ०—सस्त्री मरमी होता है। पूरी वाढ के पहुंचने पर इसके सिरे पर एक मजरी प्रभु सठ धनी । वैद बदि कवि भानम गुनी।-मानस, ३१२० । निकलती है जो एक बालिश्त से एक हाथ तक लवी होती है। उस समय इसके टठल और पत्तियाँ भी कडी हो जाती हैं और मरम्म-ज्ञा पुं० [ ० मर्म ] दे० 'मर्म' । उ०—मरम्मय देर तक पकाई जाने पर कठिनाई से गलती हैं। मजरी मे सफेद मुद्धय विद्धय मेल । --प० रासो, पृ० ४२ । मफेद छोटे फूल लगते हैं और फूलो के मुरझा जाने पर वीज मरम्मत-सा सी० [अ० ] किमी वस्तु के टूटे फूटे अगो को ठीक पडते हैं । बीज छोटे, गोल, चिपटे और चमकीले काले रग के करने की क्रिया या भाव । दुरुस्ती। जीर्णोद्धार । जैसे, मकान होते हैं । यह बीन योपधि मे काम भाते हैं। वैद्यक मे इसके की मरम्मत, घडी की मरम्मत । को मधुर, इसकी प्रकृति शीतल और गुण रक्तपित्तनाशक, स्वाद