पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४०९

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रामानंदी ४१६८ राय ये एक स्मार्त अध्यापक से पढने लगे। एक दिन रामानुज की इतने प्राचीन काव्य की भिन्न भिन्न प्रतियो मे इतना गधिक शिष्यपरपरा के राघवानद से इनकी भेंट हुई, जिन्होने इन्हे प्रतर होना स्वाभाविक भी है। बहुत कुछ इसी रामायण के देखकर कहा कि तुम्हारी प्रायु बहुत थोडी है और तुम अभी तक भावार पर और स्थान स्थान पर अन्यान्य रामायणो की हरि की शरण में नहीं आए हो। इसपर ये राघवानद से मत्र सहायता लेकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस' लेकर उनके शिष्य हो गए और उनमे योग सीखने लगे। उमी नामक जो प्रमिद्ध भापाकाव्य लिखा है उनका वोच भी इस ममय इनका नाम रामानद रखा गया। इनके ममय मे प्राय 'रामायण' शब्द से होता है। वाल्मीकि कृत रामायण के सारे भारत मे मुसलमानो के अनेक प्रकार के अत्याचार हुए ये, अतिरिक्त अध्यात्म रामायण प्रादि जो कई रामायण हैं, जिन्हे देखकर इन्होने जाति पांति का बघन कुछ ढीला करना वे साप्रदायिक हैं। चाहा, और सवको राम नाम के महामंत्र का उपदेश देकर रामायणी'—वि० [सं० रामायणीय] रामायण सबधी । रामायण का। अपने 'रामावत' सप्रदाय में समिलित करना प्रारभ किया। रामायणी-सञ्ज्ञा पुं० [स० रामायण+ई (प्रत्य॰)] १ वह जो रामानुज के श्रीवैष्णव संप्रदाय की सकुचित सीमा तोडकर रामायण का विशेष रूप से जानकार और पडित हो। २ वह इन्होने उसे अधिक विस्तृत तथा उदार बनाया था। इनका जो रामायण की कमा कहता हो । ३ वह जो रामलीला मे शरीरात स० १४६७ मे हुआ था। इनके मुख्य शिष्यो मे पीपा, रामायण गाता या पाठ करता हो। कवीर, सेना, धना, रैदास प्रादि हैं। रामायन-मज्ञा पुं० [सं० रामायण] २० 'रामायण' । रामानंदी-वि० [हिं० रामानद+ई (प्रत्य॰)] १ रामानद सबधी । २ रामानद के सप्रदाय का अनुयायी। रामायुध-सम्रा पुं० [स०] धनुप । रामायत--सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] वैष्णव गाचार्य रामानद का चलाया रामानुज- सज्ञा पुं० [ स०] १ रामचद्र के छोटे भाई लक्ष्मण । हुधा एक प्रसिद्ध संप्रदाय । उ.-(क) रामानुज लघु देख खचाई।-मानस, ६।३५ । (ख) विशेप- इस संप्रदाय के अनुसार मनुष्य ईश्वर को भक्ति करके रामानुज आगे करि पाए जहं रघुनाथ । —मानस, ५।२० । वैप्णन सासारिक सकटो तथा आवागमन से बच सकता है । यह भक्ति मत के एक प्रसिद्ध प्राचार्य और श्रीवैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक । राम की उपासना से प्राप्त हो सकती है और इस उपासना विशेष-कहते हैं, रामानुज का जन्म सं० १०७३ मे हुआ था। के अधिकारी मनुष्य मात्र हैं। जाति पांति का भेद इसमे किसी बाल्यावस्था में ये कांचीपुर ( काजीवरम् ) मे रहते थे। पहले प्रकार का अवरोध उपस्थित नही कर सकता। ये वैष्णव यामुन मुनि के अनुयायी हुए और फिर उनकी गद्दी रामिल-सज्ञा पुं० [सं०] १ रमण । २ कामदेव । ३ स्वामी। भी इन्हीं को मिली और ये श्रीरगम् मे रहने लगे। पर वहां के पति । ४ वह जिससे प्रेम किया जाय । प्रेमपाय। राजा शकराचार्य के अद्वैत मत के अनुयायी थे। अत: उनसे अनबन हो जाने के कारण ये मंसूर चले गए। वहां के जैन रामी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० रामा ] कास नामक घास । राजा विष्णुवर्धन को इन्होंने वैष्णव वना लिया था। उसी रामेश्वर-सञ्चा पु० [ स० ] दक्षिण भारत मे ममुद्र के तट पर राज्य में सं० ११९४ मे १२१ वर्ष की अवस्था में इनका देहात स्थापित एक प्रसिद्ध शिवलिंग । हुआ था। इन्होंने वेदातसार, वेदातदीप तथा वेदार्थसंग्रह ये विशेप-इसके विषय मे यह प्रसिद्ध है कि इसे रामचद्र जी ने तीन गथ बनाए थे और ब्रह्मसूत्र तथा भगवद्गीता पर भाष्य लका का पुल बांधने के समय स्थापित किया था। यह भारत किए थे। इनके दार्शनिक सिद्धातो के प्रावार उपनिषद् के चार मुख्य और सबसे बडे तीर्थों मे से एक तीर्थ है । है । वेदात मे इनका सिद्धात विशिष्टाद्व त के नाम से प्रसिद्ध है। रामेपु-सझा पु० [सं०] १ रामशर । २ एक प्रकार की ईख । रामाप्रिय-सज्ञा पुं० [सं०] दार चीनी । रामाद-सज्ञा पुं० [ स० ] एक प्राचीन ऋपि का नाम | रामायण-सशा पुं० [सं०] वह न थ जिसमे रामचरित वणित हो । रामोपनिषद्-तज्ञा स्त्री० [सं० ] अथर्ववेद के अंतर्गत एक उपनिषद् रामचद्र के चरित्र मे मवध रखनेवाला ग्रथ । का नाम। विशेष-मस्कृत में रामायण नाम के बहुत से न थ हैं, जिनमे से राम्या-सहा स्त्री॰ [ ] रात्रि ! रात । वाल्मीकि कृत रामायण सबसे प्राचीन और अधिक प्रसिद्ध है। राय'-सज्ञा पुं० [स० राजन, राज, प्रा० राय ( सस्कृत मे भी यह प्रादिकाव्य है और इसके रचयिता वाल्मीकि प्रादिकवि प्रयुक्त )] १ राना। २ छोटा राजा या सरदार । सामत । हैं। वाल्मीकि ऋपि रामचद्र के समकालीन थे, अत उनका उ०-सब राजा रायन के वारी। वरन वरन पहिरे मब ग्र व रामायण सबसे अधिक प्रामाणिक माना जाता है। इसमे सारी।--जायसी (शब्द०)। ३ ममान की एक उपाधि । मात काड है जिनमे से प्रत्येक काड अनेक सगों मे विभक्त है। यौ०-रायबहादुर । राय साहब । साधारणत भारत मे तीन प्रकार के वाल्मीकीय रामायण पाए विशेष-किमी किसी शब्द के पहले लगकर यह श्रेष्ठता या जाते है-प्रौदीच्य, दाक्षिणात्य और गौडीय । इन तीनो रामा वडाई भी मूचित करता है, जैसे,-रायकरीदा, रायमुनिया । यणो के सर्गों की संख्या और पाठ आदि में बहुत कुछ अतर है। ४ भाट । वदीजन । ५ गर्यो की उपाधि। ६. दे० 'रायवेल । स०