प्रकाशिका 'हिंदी शब्दसागर' अपने प्रकाशनकाल से ही कोश के क्षेत्र मे और वैज्ञानिक युग के विद्याथियो के लिये भी साधारणत पर्याप्त हो । भारतीय भाषाओ के दिशानिर्देशक के रूप में प्रतिष्ठित है। तीन मैं आपके निश्चयो का स्वागत करता हूँ। भारत सरकार की ओर से दशक तक हिंदी की मूर्धन्य प्रतिमानो ने अपनी सतत तपस्या से शब्दसागर का नया सस्करण तैयार करने के सहायतार्थ एक लाख इसे सन् १९२८ ई० में मूर्त रूप दिया था । तव से निरतर यह ग्रथ रुपए, जो पाँच वर्षों मे वीस बीस हजार करके दिए जाएंगे, देने का इस क्षेत्र मे गभीर कार्य करनेवाले विद्वत्समाज में प्रकाशस्तभ के रूप निश्चय हुआ है । मैं आशा करता हूँ कि इस निश्चय से प्रापका काम में मर्यादित हो हिंदी की गौरवगरिमा का पाख्यान करता रहा है । कुछ सुगम हो जाएगा और आप इस काम मे अग्रसर होगे।' अपने प्रकाशन के कुछ समय बाद ही इसके खड एक एक कर राष्ट्रपति डा. राजेंद्रप्रसाद जी की इस घोपणा ने शब्दसागर अनुपलब्ध होते गए और अप्राप्य ग्रथ के रूप में इसका मूल्य लोगो को के पुन सपादन के लिये नवीन उत्साह तथा प्रेरणा दी। सभा द्वार' सहस्र मुद्राओं से भी अधिक देना पड़ा । ऐसी परिस्थिति में अभाव प्रेषित योजना पर केंद्रीय सरकार के शिक्षामत्रालय ने अपने पत्र स की स्थिति का लाभ उठाने की दृष्टि से अनेक कोशों का प्रकाशन हिंदी- एफ।४-३३५४ एच० दिनाक ११:५९५४ द्वारा एक लाख रुपया जगत् में हुआ, पर वे सारे प्रयत्न इसकी छाया के ही बल जीवित पांच वर्षों मे, प्रति वर्ष बीस हजार रुपए करके, देने की स्वीकृति दी। थे । इसलिये निरतर इसकी पुन अवतारणा का गभीर अनुभव हिंदी- जगत् और इसकी जननी नागरीप्रचारिणी सभा करती रही, किंतु किया गया, इस सवध में देश के विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी विद्वानो इस कार्य की गरिमा को देखते हुए एक परामर्शमडल का गठन साधन के अभाव मे अपने इस कर्तव्य के प्रति सजग रहती हुई भी की भी राय ली गई, किंतु परामर्शमडल के अनेक सदस्यो का वह अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाह न कर सकने के कारण मर्मातक पीहा का अनुभव कर रही थी। दिनोत्तर उसपर उत्तर- योगदान सभा को प्राप्त न हो सका और जिस विस्तृत पैमाने पर सभा विद्वानो की राय के अनुसार इस कार्य का सयोजन करना दायित्व का ऋण चक्रवृद्धि सूद की दर से इसलिये और भी बढता गया कि इस कोश के निर्माण के बाद हिंदी की श्री का विकास बडे व्यापक चाहती थी, वह भी नही उपलब्ध हुआ। फिर भी, देश के अनेक पैमाने पर हुआ। साथ ही, हिंदी के राष्ट्रभाषा पद पर प्रतिष्ठित निष्णात अनुभवसिद्ध विद्वानो तथा परामर्शमडल के सदस्यो ने होने पर उसकी शब्दसपदा का कोश भी दिनोत्तर गतिपूर्वक बढते गभीरतापूर्वक सभा के अनुरोध पर अपने बहुमूल्य सुझाव प्रस्तुत किए। जाने के कारण सभा का यह दायित्व निरतर गहन होता गया । सभा ने उन सबको मनोयोगपूर्वक मथकर शब्दसागर के सपादन हेतु सिद्ध त स्थिर किए जिनसे भारत सरकार का शिक्षामत्रालय भी सभा की हीरक जयती के अवसर पर, २२ फाल्गुन, २०१० सहमत हुआ। वि० को, उसके स्वागताध्यक्ष के रूप मे डा० सपूर्णानद जी ने राष्ट्रपति राजेंद्रप्रसाद जी एव हिंदीजगत् का ध्यान निम्नाकित उपर्युक्त एक लाख रुपए का अनुदान बीस वीस हजार रुपए शब्दो मे इस ओर प्राकृष्ट किया-'हिंदी के राष्ट्रभाषा घोषित हो प्रति वर्ष की दर से निरतर पाँच वर्षों तक केंद्रीय शिक्षा मत्रालय जाने से सभा का दायित्व बहुत बढ गया है। हिंदी मे एक अच्छे देता रहा और कोश के सशोधन, सवर्धन और पुन सपादन का कार्य कोश और व्याकरण की कमी खटकती है। सभा ने आज से कई लगातार होता रहा, परतु इस अवधि मे सारा कार्य निपटाया नही वर्ष पहले जो हिंदी शब्दसागर प्रकाशित किया था उसका बृहत् जा सका। मत्रालय के प्रतिनिधि श्री डा० रामधन जी शर्मा ने सस्करण निकालने की आवश्यकता है। आवश्यकता केवल इस वडे मनोयोगपूर्वक यहाँ हुए कार्यों का निरीक्षण परीक्षण करके वात की है कि इस काम के लिये पर्याप्त धन व्यय किया जाय और इसे पूरा करने के लिये प्रागे और ६५००० ) अनुदान प्रदान करने केंद्रीय तथा प्रादेशिक सरकारो का सहारा मिलता रहे।' की सस्तुति की जिसे सरकार ने कृपापूर्वक स्वीकार करके पुन उक्त उसी अवसर पर सभा के विभिन्न कार्यों की प्रशसा करते हुए ६५०००) का अनुदान दिया। इस प्रकार सपूर्ण कोश का सशोधन सपादन दिसबर, १९६५ मे पूरा हो गया। राष्ट्रपति ने कहा-'वैज्ञानिक तथा पारिभाषिक शब्दकोश सभा का महत्वपूर्ण प्रकाशन है । दूसरा प्रकाशन हिंदी शब्दसागर है जिसके इस ग्रथ के सपादन का सपूर्ण व्यय ही नहीं, इसके प्रकाशन के निर्माण में सभा ने लगभग एक लाख रुपया व्यय किया है। आपने व्ययभार का ६० प्रतिशत बोझ भी दो खडो तक भारत सरकार ने शब्दसागर का नया सस्करण निकालने का निश्चय किया है। जब से वहन किया है, इसी लिये यह ग्रथ इतना सस्ता निकालना सभव हो पहला सस्करण छपा, हिंदी में बहुत बातो में और हिंदी के अलावा सका है । उसके लिये शिक्षाभत्रालय के अधिकारियो का प्रशसनीय. ससार मे बहुत वातो में वही प्रगति हुई है। हिंदी भाषा भी इस सह्योग हमे प्राप्त है और तदर्थ हम उनके अतिशय प्राभारी * प्रगति से अपने को वचित नहीं रख सकती। इसलिये शब्दसागर जिस रूप मे यह अथ हिंदीजगत् के समुख उपनि का रूप भी ऐसा होना चाहिए जो यह प्रगति प्रतिबिंबित कर सके है, उसमे अद्यतन विकसित कोशशिल्प का यथासार
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