पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३८४

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1 रहाई ४१४३ रॉचना रहाई -सज्ञा स्त्री० [हिं० रहना] १. रहने की क्रिया या भाव । २ राकव-सा पुं० [सं० राड्व] १. मृगो के रोएं से बना हुआ कल । चैन । आराम । उ०-सीस ते पूछि लौं गात गर्यो कपडा प्रादि । २. पशम । नरम ऊन । पै डसे विन ताहि परं न रहाई .-(शब्द॰) । राडीर-सज्ञा पुं॰ [स० राण्डीर] रांड को प्रौलाद । एक गाली (को०] । रहाऊ-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] गीत का पहला पद । टेक । स्थायी । रॉक-वि० [स० रङ्क ] दे० 'रक' । उ०-कनि नाकप विशेष—यह शब्द अधिकतर पजाव मे वोला जाता है। रीझि कर तुलसी जग जो जुरै जांचक जोरो ।—तुलसी रहाट-सज्ञा पुं॰ [स०] १ वह जो किसी प्रकार की सलाह देता हो । (शब्द०)। २ मत्री। अमात्य । ३. प्रेतात्मा । रॉकण-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रक ] एक प्रकार को भूमि जिसमे बहुत रहाना-क्रि० अ० [हिं० रहमा] १ होना । उ०—(क, भोजन कम अन्न पैदा होता है। ऐसो भूमि बहुधा कंकरीली और ऊँची नीची हुश्रा करती है। मोर कपोत रहायो । ताको तै क्यो गोद छिपायो।-विश्राम (शब्द॰) । (ख) मदिर तिनकर जहां रहावा । तेहि द्रुम तरे राँग-सशा पुं० [सं० रङ्ग हिं० राँगा ] दे० 'रांगा'। बधिक जब पावा ।-विश्राम (शब्द०)। २ रहना । उ० रॉग २--सज्ञा स्त्री० [हिं० रंग ] किसी फूल पत्ती यादि को पीसकर नीम करुवापन ना तजै जल मे सदा रहाय । -कवीर (शब्द॰) । निकाला हुअा रस । स्वरस । जैसे-मेम का राँग। तुलसी का राँग । रहावना-सज्ञा सी० [हिं० रहना + श्रावन (प्रत्य॰)] वह स्थान जहां गांव भर के सब पशु एकत्र होकर खडे हो । रहुनिया। रॉगड़ी-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का चावल जो पजाव मे पैदा उ०-कान्ह कुंवर सब सखन सग मिलि ठाढे जुरे रहावन । होता है। देखी तो ली कुंवरि लाडिली अरु सखियन की पावन । राँगा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रङ्ग ] एक प्रसिद्ध धातु । अपु । हसराज (शब्द०)। विशेप-यह बहुत नरम और रग में सफेद होती है। यह पीट- रहासहा-वि० [हिं० रहना+अनु० सहा] [वि॰ स्त्री० रहीसही] बचा कर पत्तर के रूप मे को जा सकती है। यह प्राय कई दूसरे खुचा । वचा वचाया। जो थोडा सा वच रहा हो। उ०- पदार्थों के साथ पहाडो को दरारो तथा नदियों के किनारे (क) हिंदुप्रो का दिल रहासहा और भी टूट गया।-शिव पाई जाती है। यह भारत मे केवल वरमा में मिलती है, और प्रसाद (शब्द॰) । (ख) उसी प्रतापी ब्रिटिश राज्य के अधीन मलाया प्रायद्वीप तथा आस्ट्रेलिया आदि मे बहुत मिलती रहकर भारत रहीसही हैसियत भी खो दे।-वालमुकुद है। यह बहुत साधारण आँच पाकर भी गल जाती है, गुप्त (शब्द०)। इसीलिये इसका व्यवहार प्राय फूल और भरत श्रादि मिश्रित धातुएं बनाने में होता है। तांबे के बरतनो पर इसी धातु से रहित-वि० [सं०] विना । बगैर । हीन । जैसे,—(क) आपको बातें कलई की जाती है जिससे इसे कलई भी कहते हैं। वैद्यक प्राय अर्थरहित हुआ करती हैं। (ख) वे इन सब दोपो से मे इसे कटु, तिक्त, शीतल, कपाय, लवण रस और मेह, कृमि, रहित हैं। (ग) पुरुषार्थ रहित होकर जीवन नही बिताना पाहु तथा दाह आदि का नाशक, कातिवर्धक और रसायन माना है। इसे शोधकर और भस्म बनाकर अनेक प्रकार के रहिला-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] चना। उ०-रहिमन रहिला को भली जो रोगों में देते हैं। परसै मन लाय । परसत मन मला कर ऊ मैदा बहि जाय ।- पर्या०- रग। वग । त्रपु। नाग । त्रपुप । मधुर। हिम | रहिमन (शब्द०)। पूतिगध । कुरूप्य । स्वर्णज । कुरुपत्री। तमर । नागजीवन । रहीम'-वि० [अ०] रहम करनेवाला । कृपालु । दयालु । चक । स्ववेत। रहीम'- सज्ञा पुं० [अ०] १ अब्दुल रहीम खां खानखानां का उपनाम राँचल-अव्य० [हिं० रच ] दे० 'रच' । उ०-झूठ बोल थिर जो वे अपनी कविता मे रखते थे। २ ईश्वर का एक नाम । रहै न राँचा। पडित सोई वेद मत सांचा ।-जायसी ( मुसलमान )। (शब्द०)। राँचना-क्रि० अ० [स० रनन ] १ अनुरक्त होना। प्रेम रहुनिया - सज्ञा स्त्री० [हिं० रहना + इया (प्रत्य॰)] दे० 'रहावन' । करना । चाहना । उ०-(क) मन कांचं नांच वृथा साँच रहुवा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रहना] किसी दूसरे के यहाँ केवल रोटियो रांचं राम ।-विहारी (शब्द०)। (ख) मन जाहि राँचो पर रहनेवाला मनुष्य । टुकडहा । रोटीतोड। उ०-कह मिलहि सो वर सहज सुदर सांवरो । तुलसी (शब्द॰) । गिरधर कविराय कहत साहेब स रहुवा । तुम नीचे फल बेोले २. रग पकडना। वृक्ष हम ऊंचे महुवा ।-गिरधर (शब्द॰) । राँचना@:-क्रि० स० [स० रखन ] रग चढाना । रंगना । उ०-- रहूगण-संञ्चा पुं० [सं०] १ अगिरस् गोत्र के अंतर्गत एक शाखा या जो मजीठ प्रोट बहु आंचा। सो रंग जनम न डोल रांचा । गण । गौतम ऋपि इसी वश के थे । २. इस वश का मनुप्य । -जायसी (शब्द॰) । ८-४७ चाहिए।