रससान रसधातु 1 HO रससान'-वि० [हिं० ] रसयुक्त । रमवाला । प्रेमी। उ०-क्या रसडली-सश खी० [हिं० रम+उली प्रकार का गन्ना बना क्या नहीं पाए सजन रसखान ? रे कवि लिख विरह के जिमका रग पीलापन लिए हरा होता है और जो प्राय. गान ।-क्यासि, पृ० ५। वीजापुर और उसके ग्राम पास बहुत होता है । ग्गवली । रससान-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रस+ खान ] एक भक्त कवि जो गोस्वामी रसडी --ममा स्री० [हिं० रसरी ] दे० 'रमरी। उ०---प्रेम रासा विट्ठलनाथ जी के शिष्य और उनके २५२ मुख्य शिष्यो मे थे । वांची गले । वंच चले उधर चले ।-दक्तिनी०, पृ० १०० । इन का समय सवत् १६४० से १६८५ मान्य है। रसणा-सचा सी० [० रसना ] दे० 'स्नना' । ३०-वान रसखोर-समा स्त्री० [हिं० रस+खीर ] चानी के शर्वत अथवा मदा वितसारु देव, नित रमणा लेवे हरिनाम ।-रघु०८०, ऊख के रस मे पकाए हुए चावल । मीठा भात । पृ०२४। रसगध-रारा पु० [ स० रसगन्ध ] दे॰ 'रसगवफ' । रसतन्मात्रा-सश श्री० [ 10 ] पांच तन्मात्रानो या महत्तयो में रसगधक-सचा पुं० [स० रसगन्धक] १ गवक । २ वोल नामक गध से चाये तत्व जल की तन्मात्रा । (माल्य )। विशप २० द्रव्य । ३. रसौत । रसाजन । ४ हिंगुल । शिगरफ । ईगुर । 'तन्मात्र'। रसगत ज्वर-सज्ञा पु० [ स० ] वैद्यक के अनुमार शरीर की रसधातु रसता~सधा स्त्री॰ [ ] रस का भाव या धर्म । रमत्व । मे ममाया हुया ज्वर । रसतालेश्वर-सा पुं० [सं० ] वद्यक मे एक प्रकार का रस । विशेप-कहते है कि ज्वर अधिक दिनो का हो जाने से शरीर विशेप-इसका व्यवहार कुष्ठ रोग में होता है। यह शख, के रस तक मे पहुंच जाता है और उससे ग्लानि, वमन और करज, हलदी, भिलावा, घायुयार, गदहारना, गधका, पारे अरुचि श्रादि होती है। और विडग प्रादि के याग से बनाया जाता है। रसगर्भ -सज्ञा पु० [ स०] १. रसौत । रसाजन । २. शिंगरफ। रसतेज-सञ्ज्ञा पु० [ स० रसतेजस् ] रक्त । लहू । न्यून । हिंगुल । ईंगुर । रसत्याग-सचा पु० [०] दूध, दही, घी, तेल, मीठा पकवान अादि स्वादिष्ट पदार्थों का त्याग करना, जा एक प्रकार का रसगुनो-सज्ञा स्त्री० [ स० रस + गुणी ] काव्य या सगीत शास्त्र का ज्ञाता । उ०-श्री हरिदास के स्वामी स्यामा को मेरु सरस नियम या प्राचार माना जाता है । ( जन )। भयो और रसगुनो परे फीके-हरिदास (शब्द॰) । रसत्व-सज्ञा पुं॰ [सं० ] रस का भाव या धर्म । रसता । रसगुल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रस + गोला ] एक प्रकार की छेने की रसद'- वि० [सं०] १ अानददायक। मुम्बद । उ०—(क) रसद मिठाई जा गुलाब जामुन के समान गोल होती है और शोरे मे विहारी वदे वल्लभा राधिका निस देन रग रंगी ।-स्वा० पगी हुई होती है। हरिदास (शब्द॰) । (ख) रसद श्री हरिदाम बिहारी अग अग मिलत अतन उदात करत नुरति प्रारभटी । हरिदाम (शब्द०) रसग्रह-सशा पु० [सं०] जीभ । २. स्वादिष्ट । मजदार । जायादार। रसघन'--सज्ञा पुं० [स० ] अानदघन, श्रीकृष्ण चद्र । रसद'-सा पु० चिकित्सा करनवाला । नाज करनेवाला व्यक्ति । रसघन-वि० जो बहुत अधिक स्वादिष्ट हो। रसद'-सा ली० [फा०] १ वह जो बंटने पर रिम्स के अनुसार रसन-सज्ञा पु० [सं० ] मुहागा। मिले । बाट । वखरा। रसछन्ना -सज्ञा पुं० [हिं० रस + छन्ना छानने की चीज )] मुहा०-हिस्सा रसद - वंटन पर अपने अपने हिम्मे के अनुमार [ जी० श्रल्पा० रसन्नी] ऊस का छानने लाभ। की चलनी। २ कच्चा अनाज जो पकाया न गया हो। भोजन बनाने के लिये रसज-सज्ञा पु० [ ] १ गुड । २ रसौत । रसाजन । ३ शराव अन्न प्रादि । गल्ला । मना का वह साद्य पदार्थ जो उनके की तलघट । मुरावीज। माथ रहता है। रसजात-सस पु० [सं०] रमीत । रमाजन । रसदा-सश सी० [सं० ] सफेद निदी। संभालू । निघुनार । रसन-वि० [स०] [वि० सी० रसज्ञा ] १ वह जो रस का ज्ञाता रसदार-वि० [हिं० रस+दार (प्रत्य॰)] १ जिनम रिमी प्रसार हो। रस जाननेवाला । २ काव्यमर्मज्ञ। नाहित्य के मर्म का का रम हो। रमवाला। जमे,-सदार ग्राम, रगदार जानकार । ३ रमायनी । ४. निपुण । कुशल । जानकार । नीबू । २ स्वादिष्ठ। मजेदार । ३ मालवार । गोग्वेदार । रसज्ञना-सशा सी० [ स० ] रसज्ञ होने का भाव। रसवाला। रसज्ञा-तमा सी० [सं०] १. गगा। २. जीभ । रसदालिका-सग सी० [सं० ] पीडा । गन्ना । रसज्ञा -वि० सी० [सं०] दे॰ 'रसज्ञ' । रसदावी-सा पुं० [ म० रसदाविन् ] मोठा जपोरी । नीतू । रसज्येष्ठ-सचा पुं० [म०] १. गधुर या मीठा रस। २ श्रृंगार रसधातु - पुं० [ #० ] १ पारा। २ शरी' की मान पातुपो रस जो नाहित्य मे नो रमो मे प्रधान है। में से रस नामक धातु। विशेष दे० 'रम'। HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३७२
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