पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३७१

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रस ४१३० रसखर्पर TO 40 बसरी। कुछ लोग इन नौ रसो के सिवा एक और दसवां रस 'वात्सल्य' २२ राग । २३ विप। जहर । २४ पारा । २७ हिंगुल । भी मानते हैं। शिंगरफ। २८ वैद्यक मे घातयो को फूककर तैयार किया ६ नो की सख्या । ७ सुख का अनुभव । प्रानद । मजा । उ०- हुश्रा भम्म, जिसका व्यवहार श्रीपय के रूप में होता है। (क) यह जानिए बर दीन । पितु ब्रह्म के रसलीन । केशव जैसे,- रमसिंदूर । २६ पहले खिवाव का शोग जो बहुत (शब्द०)। (ख) जेहि किए जीव निकाम वस रस हीन दिन तेज और अच्छा होता है । ३० प्रानदम्वरूप ब्रह्न । (उपनिण्द्)। दिन अति नई ।—तुलसी (शब्द०)। (ग) अोठ खहए की ३१ केशव के अनुसार रगण और सगण । उ.-मगन नगन को मित्र गनि गन भगन को दास । उदामान जत जानिए अर्यो मुख सुवास रम मत्त । स्याम रूप नंदलाल अलि नहिं अलि अलि उन्मत्त । मतिराम (शब्द॰) । रस रिपु केशव दास । -केशव (शब्द०)। ३२ बोल नामक गवद्रव्य । ३३. एक प्रकार की भेड जा गिलगित्त (गिलगिट) मुहा० - रम भीजना या भीनना = (१) किसी पदार्थ का ऐमा में उत्तर और पामीर में पाई जाती है। ३४ मांति । तरह । समय पाना जब उसके द्वारा प्रानद उत्पन्न हो। मजे का प्रकार । रूप। उ०-एक ही रस दुनी न हरप मोक सांसति वक्त आना । (२) तरुणाई प्रकट होना । यौवन का प्रारभ या नहति । तुलनी (शब्द०)। ३५ मन को तरग। मौज । संचार होना । उ०—यां इनके रस भीजत त्यो ग ां उनके इच्छा। उ०-तिनका वयारि के बस । ज्या भावं त्यो मसि भीजत भाव । -पद्माकर ( शब्द०)। उटाइ ले जाइ अपन रस ।- स्वामी हरिदास (शब्द॰) । ८ प्रेम । पीति । मुहब्बत । ३६ सोना (को०) । ३७ दूध । जैसे-गोरम (को०)। यो०-रस रग= = (१) प्रेम के द्वारा उत्पन्न होनेवाला प्रानद । रसक-सजा पु० [ ] १ ।फटकिरी। २ उपरिया । मगे वमरी। मुहब्बत का मजा । (२) प्रेमक्रीडा । केलि । रस रीति प्रेम के ३ मास का रमा । शोर वा (को०)। व्यवहार । मुहब्बत का बरताव । उ०—(क) प्रीति को वधिक रसककार वेल्लक -सचा पु० [ मै० ] पतला सपरिया । मगे वमरी । रसरीति को अधिक नीति निपुन विवेक है निदेस देसकाल को।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) इष्ट मिल और मन मिल मिल रसक दर्दुर- सज्ञा पुं० [ ] दलदार मोटा खपरिया या सगे सकल रस रीति ।-कबीर (शब्द॰) । रस की रीति = रसरीति । उ०—और को जान रस की रीति । कहाँ हो दीन रसकपूर-सशा पु० [ स० रसकर्पूर ] मफेद रग को एक प्रकार को कहाँ त्रिभुवनपति मिले पुरातन प्रीति । चतुरानन तन निमिप प्रसिद्ध उपधातु जिसका व्यवहार औपच मे होता है । न चितवत इती राज की नीति । -सूर (शब्द॰) । विशेप-यह प्राय ईंगुर के समान होता है, इसीलिये इसे कुछ ६ कामक्रीडा। केलि । विहार । उ०-दलित कपोल रद दलित लोग सफेद शिंगरफ भी कहते है। एक और प्रकार का अधर रुचि रसता रसनि रस रस मे रिसाति है ।-केशव रसकपूर होता है, जो वास्तव में पारे की सफेद भस्म (शब्द०)। १० उमग । जोश । वेग । उ०—(क) प्राजान- होती है। इसका व्यवहार प्राय यूनानी चिकित्सा मे होता वाहु परकाज रत स्वामिभक्त रस रग नय । -गुमान (शब्द०) है और यह खुजली, उपदश आदि मे उपयोगी माना जाता है । (ख) जय कारन प्रन किए करत रस रत ललकारन । श्याम रसकर्म-ससा पुं० [ स० रसकर्मन् ] पारे की सहायता से रस मादि अनुज धाम बने संग सुभट हजारन ।—गोपाल (शब्द॰) । तैयार करने की क्रिया । (वैद्यक) । ११ गुण । सिफत । उ०—(क) सम रस समर सकोच बस रसका-सज्ञा स्त्री॰ [ से० ] एक प्रकार का क्षुद्र कुष्ट रोग। विवस न ठिकु ठहराय । फिरि फिरि उझकति फिरि दुरति रसकुल्या-सशा स्त्री॰ [ स० ] पुराणानुसार कुशद्वीप को एक नदी दुरि दुरि उझकति जाय ।-विहारी (शब्द०)। (ख) तिहुं देवन की युति सी दरमै गति सोपं श्रिदोपन के रस को। रसकेलि 1-सज्ञा सी० [सं०] १ विहार । क्रीडा । २ हंसी। ठट्ठा। -केशव (शब्द०)। १२ किसी विषय का आनद । उ०- दिल्लगी। मजाक । जो जो जेहि जेहि रस मगन, तहँ सो मुदित मन मानि । —तुलसी (शब्द०)। १३ कोई तरल या द्रव पदार्थ । १४ रसकेसर-सज्ञा पुं० [स० ] कपूर । जल । पानी। १५ वनस्पतियो या फलो आदि मे का वह रसकेसरी-तज्ञा पुं० [सं० रसकेशरिन् ] एक प्रकार को रसौषध जो जलीय अंश जो उन्हे कूटने, दबाने या निचोडने प्रादि से पारे, गधक और लांग आदि के मेल से तैयार की जाती है, निकलता है। जैसे,-ऊख का रस, श्राम का रस, तुलसी और अरुचि, अग्निमाद्य, श्रामवात, विमुचिका, आदि रोगो मे का रस, अदरक का रस । १६ शोरबा। जूस । रसा । १७ उपयोगी मानी जाती है (वैद्यक) । वह पानी जिसमे मीठा या चीनी घुली हुई हो । शरबत । रसकोरा-पचा पुं० [हिं० रस + फौर ] रसगुल्ला नाम की मिठाई । १८ वृक्ष का निर्यास । जैसे,—गोद, दूध, मद आदि । १६ उ०-हरिवल्लभ अरु रमा विलासे । रसकोरे बोरे रस लासा । लुभाव । २० घोडो और हाथियो का एक रोग खासे । रघुराज (शब्द०)। जिसमे उनके पैरो मे से जहरीला पानी बहता है । २१ वीर्य । रसखपर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] खपरिया । सगवसरी। का नाम।