मयोभय ३७६६ मग्गो मयोभय-मज्ञा पुं० [ स० ] शिव । नही कुछ रोणनी की पुंजे मर्कद मे ।-भारतेंदु ग्र०, भा० ०, मयोमू- -वि० ] स० ] यज्ञ के फल से उत्पन्न । पृ०८४८1 मरद-मचा पु० [ म० मरन्द, मकरन्द, प्रा० मरद ] मकरद । उ० मरकना-क्रि० अ० [अनु०] १ दबकर मरमराना । दवाव के नीचे जानै नहि तव माधुरो भद मरद मुगध । -दीन० ग्र०, पृ० ६२ । पडकर दूटना । दवना। उ०-मुनत ही सौतिन करेजा करकन मरदकोश-सशा पुं० [सं० मरन्द + कोश ] १ फूल का वह भाग लाग्या मरकन लाग्यो मान भवन मन हारया मा।—देव जसमे 'सुवा' या रस रहता है। मकर दकाश । २ मधु- (शब्द०)। २ द० 'मुरकना' । उ०- कंटवामी बमवारिन को मक्खियो का छत्ता। रकबा जहँ मरकत । वीच वीच कटकित वृक्ष जाके बढि लरकत ।-प्रेमधन० भा० १, पृ०६। मर'-सज्ञा पुं० [ म० ) १ मृत्यु । २ समार । जगत् । ३ प्राणी । मरणधर्मा । जीव । उ०-मर क्या, अमर अधीन हमार कर्मो मरकहा-वि० [ हिं० माग्ना = हा (प्रत्य॰) । [ वि० सी० मरकही ] के हैं। साकेत, पृ० ४१६ । ४ पृथ्वो। सीग मे मारनेवाला । जो मीग मे बहुत मारता हो (पशु) । उ०-मरकहा वैन रात दिन पूर्फ़ किया करता है। भारतंदु मर-सशा सा [ म० मुरा] 70 'मुरा'। ग्र०, मा० १, पृ० ५५६ । २ विमी को मारने पीटने- मरक'-मशा पु० [ म० ] १ मृत्यु । मरण । २ वह रोग जिसमे वाला (क्व०)। थोडे ही काल मे अनेक मनुष्य ग्रस्त होकर मरते है । वह भीपण सक्रामक रोग जिसमे बहुत से लाग मरें। मरी। ३ मार्कंडेय मरकाना-क्रि० म० [हिं० मरकना ] १ दवाकर चूर करना । इतना दवाना कि मरमराहट का शब्द उत्पन्न हो। पुराणानुसार एक जाति का नाम । तोडना । उ०—यो राहत कू दुनियाँ के मरकान कर, ल्या मरक'-सशा मी० [हि० मरकना (=दवाना) | १ दवाकर सकेत राखे पग तनै प्रानकर ।-दक्खिनी०, पृ० १४६ । २ द० करना । सकेत । इशारा । उ०—पर ते टरत न बर पर दई 'मुडकाना'। मरक यनु मैन । होडाहोडा वढि चले चित चतुराई नेन । - विहारी (शब्द०)। २ हौसला। उ०—मन को नरक काढि मरकूम-वि० [अ० मरकम ] [ वि०० मरकृमा ] लिखित । लिखा हुआ । उ०-जो कुछ कि कजा काजी मे मरकूम हुआ सब दिन की निधरक है रस झेलिऐ ।-धनानद, पृ० ४०३ । है।—कबीर म०, पृ० १४१ । ३ खिचाव । उ०-एक गाँव बसि वैरी ऐसी राखिए मरक ।-धनानद०, पृ० १३५ । ४ वदला । उ०-~मदन मरक मरकोटी-सज्ञा पुं० [२०] एक प्रकार को मिठाई । कबहूँ कि काढिहै भौरी पुहप लाग बरन वरन महकन ।- मरकत - मशा पुं० [ म० मरकत ] दे० 'मरकत'। उ०-मानो घनानद, पृ० ३६० । ५ दे० 'मडक' । मरकत सैल विसाल म फैलि चली बर बीर बहूटी।-तुलसी ग्र०, पृ० १६५। मरकज-सञ्ज्ञा पु० [अ० मरकज़ ] १ वृत्त का मध्य विंदु । २ प्रधान या मध्य स्थान | केंद्र । मरखडा-वि० [हिं० मारना दे० 'मरखन्ना' । मरकजी-वि० [अ० मरकज ] केंद्रीय । मुख्य । मरखन्ना -वि० [हिं० मारना+न्ना (प्रत्य॰)] [ वि०सी० मरकट'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ H० मकट ] ६० 'मर्कट' । मरखन्नो ] सीग से मारनेवाला । मरकहा (पशु)। मरकट -वि० [ सं० मृतकवत् ] १ दुर्बल । दुबला पतला । कम- मरखम-सज्ञा पु० [हिं० मल्लखम ] वह खूटा जो कातर मे गाडा जोर । २ अशुभ । मनहूस (लाक्ष०)। उ०-सुबह मुबह नशा रहता है। के शवाव मे, भया नही वावू नही, चांदी नही मोना नही- मरगजा@1'- वि० [हिं० मलना+गीजना ] [वि॰ स्त्रो० मरगजी] यह साला मरकट सामने पा फटा ।-शराबी, पृ०६० । मला दला । मसला हुआ । गोंजा हुग्रा । मलित दलित । उ०- विशेप-प्रात बदर का मुंह देखना अशुभ माना जाता है अत (क) सब अरगज मरगज भा लाचन पीत सरोज । सत्य कहहु यह अर्थ बोलचाल में प्रचलित है। पद्मावत सखी परी सब खोज ।-जायसी (शब्द॰) । (ख) घर पठई प्यारी अक भरि । कर अपने मुख परसि प्रिया के मरकत - सज्ञा पु० [ ] पन्ना। प्रेम सहित दाऊ भुज धरि धरि । सँग मुख लूटि हरप भई हिरदय यौर-मरकत पत्ती = एक लता। पाची। मरकतमदर = पन्ना चली भवन भामिनि गजगति ढरि । अंग मरगजो पटोरी राजति का पहाड। मरकतर्माण = पन्ना । मरकतशिला पन्ना की छबि निरखत ठाढे ठाठे हरि । -मूर (शब्द०)। (ग) तुम चट्टान या सिल्ली। मरकतश्याम = पन्ना के समान गहरा हरा सौतिन देखत दई अपने हिय ते लाल । फिरत सबन मे डहडही या काला। हहै मरगजी भाल । -विहारी (शब्द०)। (घ) अटपटे भूपन मरकताल-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] समुद्र की तरगो को उतार की सब मे मरगजी सारी, वदन परस्यो भाल सो।-छोत०, पृ०७१ । अतिम अवस्था । भाटा की चरम अवस्था जो प्राय अमावास्या मरगजा-मज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'मलगजा"। और पूर्णिमा से दो चार दिन पहले होती है । मरगी -सज्ञा स्त्री॰ [ हिं• मरना, मि. फ्रा० मगं ] फैलनेवाला रोग। मरकद-सचा पुं० [भ० मर्फ ] कन्न । समाधि । उ०-रसा हाजत मरक । मरी। CO
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