पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३६८

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रविजकेतु ४१२० रवनि, रवनी स० रवनि, रवनी-सज्ञा स्त्री० [ स० रमणी ] १ स्त्री। भार्या । जो कही से चल पडा हो। जो विदा या रुखमत हुआ हो। पली। उ०—(क) राज रवनि गावत हरि को यश । रुदन प्रस्थित । २ भेजा हुआ। करत सुत को समुझावति राखति श्रवणनि प्याइ सुधारस । रवानी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ रवां होने का भाव । वहाव । प्रवाह । -सूर (शब्द॰) । (ख) गर्भस्रवहि अदनी रवनि मुनि कुठार २. तीक्ष्णता । धार । तेजी (को०)। ३ विदाई । रखसती। गति घोर । परस् अछत देखउ जियत वैरी भूप किशोर । क्व०)। -तुलसी (शब्द॰) । २ रमणी । सुदरी। रवाव सक्षा पुं० [अ० रवाम ] दे० 'रवाव' । रवन्ना-सञ्ज्ञा पुं० [फा० रनना] १ वह नौकर जो स्त्रियो के रवाविया-सञ्ज्ञा पु० [दश०] लाल बलुआ पत्थर । काम काज करने वा सौदा पुलफ लाने को ड्योढी पर रहता रवाविया-सज्ञा पु० [अ० रबाबिया ] दे० 'रबाबिया'। है। ( मुमल.)। २ वह कागज जिसपर रवाना किए ] १ कहानी । किस्सा । २ कहावत । रवायत-सज्ञा स्त्री० [अ० हुए माल का व्योरा होता है। ३ चुगी यादि की वह रसीद या इसी प्रकार का कोई प्रमाणपत्र जो किसी जानेवाली चीज रवारवी-सज्ञा खी० [फा० रवा+श्रनु० रवी] १ जल्दी । शीघ्रता । के साथ रहता है । राहदारी का परवाना। २ भागाभाग । दौडादौड । रवन्ना - वि० [फा० रवानह ] दे० 'रवाना' । रवासन - सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का वृक्ष जिसके वीज और पत्ते प्रोपधि के रूप मे काम मे पाते है। रवा-वि० [फा०] बहता हुआ। प्रवाहित । २ जारी। चलता रवि-सज्ञा पुं० [ स०] १ । २ मदार का पेड। प्राक। ३ या। ३ मश्क किया हुआ। घोटा हुअा। अभ्यस्त । ४ अग्नि । उ०-बोले रवि नृप हवि यह लीजै। यथायोग्य निज पैना । तेज । चोखा । (शस्त्र आदि) । ५ दे० रवाना' । रानिन दीजै ।-विश्राम (शब्द०)। ४ नायक सरदार । ५ रवास-सला पु० [देश॰] एक प्रकार का बोडा या लोविया जिसकी लाल अशोक का वृक्ष । ६. पुराणानुसार एक प्रादित्य का तरकारी बनती है। नाम । ७ एक पर्वत का नाम । ८. महाभारत के अनुसार रवा-सञ्ज्ञा पु० [स० रज, प्रा० रथ धूल)] १ किसी चीज घृतराष्ट्र के पुत्र का नाम । ६ बारह की सख्या (को॰) । का बहुत छोटा टुकडा । कण । दाना । रेजा । जैसे,-चांदी रविकर-सञ्ज्ञा पुं० [ ] सूर्य की किरण। का रवा, मिस्री का रवा। रविकातमणि-सञ्ज्ञा पु० [स० रविकान्तमणि] सूर्यकात नामक मणि । मुहा०-रघा भर = बहुत थोडा । जरा सा । विशेप दे० 'सूर्यकात'। २ मूजी। ३ बारूद का दाना। ४ घुघरुपो मे शब्द करने के लिये डालने के छरें। रविकुल-सज्ञा पुं० [स०] सूर्यवश । 1-इस शब्द के अत मे रवि, मरिण आदि शब्द लगने से रवा-वि० [फा०] १ उचित । ठीक । वाजिव । २ प्रचलित । उसका अर्थ 'रामचद्र' होता है। जैसे,—रविकुल रवि, रवि- चलनमार। रवाज-सज्ञा स्त्री० [फा० ] वह बात या कार्य जो किसी वश, समाज या नगर आदि मे बहुत दिनो से बराबर होता चला रविग्रह, रविग्रहण-सज्ञा पुं॰ [स०] सूर्यग्रहण [को०] । पाया हो। परिपाटी चाल । प्रथा । रस्म । चलन । रीति । रविनावा-सज्ञा पुं० [० रविग्रावन् ] मूर्यकात मणि [को०] । कि० प्र०-चलना ।-पाना । —होग। रविचचल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रविचञ्चल] लोलार्क नामक तीर्थस्थल जो मुहा० -रवाज देना= प्रचलित करना। जारी करना। रवान काशी मे है। उ०-रविचचल अरु ब्रह्मद्रव वीच सुवास बिचारि पकड़ना= धीरे धीरे प्रचार पा जाना । प्रचलित होना। तुलसीदास आसन करे अवनिसुता उर धारि ।-मुधाकर जारी होना। (शब्द०)। रवादक-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] वह मनुष्य जिमने गिरवी रखे हुए धन रविचक्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ सूर्य का मडल । २ सूर्य के रथ का को हजम कर लिया हो। पहिया । ३ फलित ज्योतिप मे एक प्रकार का चक्र जो मनुष्य रवादार'-वि० [फा० रवा+दार प्रत्य०)] १. सवव रखनेवाला। के शरीर के आकार का होता है और जिसमे यथास्थान नक्षत्र लगाव रखनवाला । २ शुभचिंतक । हितपी। आदि रखकर बालक के जीवन की शुभ और अशुभ बातें जानी रवादार-वि० [हिं० रवा+फा० दार ] जिसमे कण या दाने हो। जाती है। दानेदार । रवेवाला। रविज-सज्ञा पुं० [सं०] शनैश्चर, जिनकी उत्पत्ति रवि या सूर्य से रवानगी-सद्धा स्त्री० [फा०] रवाना होने की क्रिया या भाव । मानी जाती है। दे० 'रवितनय' । प्रस्थान । चाला। रविजकेतु-सा पुं० [सं०] एक प्रकार के केतु या पुच्छल तारे जिनकी रवाना-वि० [फा० स्वानह, ] १ जिसने कही से प्रस्थान किया हो । उत्पत्ति सूर्य से मानी गई है। विशेष- कुल मरिण। 70 ना। 6347