रमनीक रमैया रमनीक-वि० [सं० रमणीय, हिं० रमणीक ] दे॰ 'रमणीक' । हरिश्चंद्र ( शब्द०)। मन रमाना= दुखी या चितित मन को उ०-रमनीक ठाम वाचिष्ठ राज, तह बसहि देवदेवह विराज । किसी प्रकार प्रसन्न करना । मन बहलाना । -पृ० रा०, २१८१ । रमानिवास-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रमा+निवास ] लक्ष्मीपति, विष्णु । रमनीय-वि० [स० रमणीय] दे० 'रमणीय' । उ०—महा कमनीय उ०-सो राम रमानिवास संतत दास बस त्रिमुवन घनी। रमनीय रमनीय हू रमायै नर मन है के रूप रज रेई के।-देव मम उर वसउ सो समन ससूति जासु कीरति पावनी। -तुलसी (शद्र०)। (शब्द०)। रमरमी-शा स्त्री० [हिं० राम राम ] दे॰ 'राम राम' । उ० रमारमण-सञ्ज्ञा पु० [ सै० ] रमापति । लक्ष्मीपति । विष्णु । भाई मेरे, सगु भयन • रमरमी, भैया कू सात सलाम । रमारमन-सज्ञा पु० [सं० रमारमण ] दे॰ 'रमारमण'। उ०- पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ६७३ । रमारमन पद बदि बहोरी।-मानस, २।२७२ । रमल-सज्ञा पुं० [अ० ] एक प्रकार का फलित ज्योतिप जिसमे पासे रमाली-सचा सच्चा पुं० [फा० रूमाली ] एक प्रकार का बारीक पौर फेंककर उसके विंदुओं के अनुसार शुभाशुभ फल का अनुमान स्वादिष्ट चावल जो करनाल में होता है। किया जाता है। रमावीज-सज्ञा पुं० [सं० ] एक तात्रिक मत्र जिसे लक्ष्मीवीज भी विशेष—यह शास्त्र पहले अरवी भापा मे था और मुसलमानो के कहते हैं । श्री। नाथ साथ भारतवर्ष मे पाया था। संस्कृत मे भी पडितो ने रमावेष-सज्ञा पु० [सं० ] श्रीवास चदन जिससे ताडपीन नामक तेल रमल विषयक अनेक ग्रंथ रचे है । निकलता है। रमसरा-सज्ञा पुं॰ [ देश०] एक प्रकार का पौधा जो ईख के खेत में रमास-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० दे० 'रवास'। अपने पाप उत्पन्न होता है । इसे रउता भी कहते हैं। रमित-वि० [हिं० रमना ] लुभाया हुआ | मुग्ध । उ०-भावे रमा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ लक्ष्मी। २ पत्नी । स्त्री (को०) । ३ सुरतिय करि शृगारा। रमित रहै नृप कर विहारा।-सबल सौभाग्य (को०)। ४ सपत्ति । धन दौलत (को०)। ५ श्री। (शब्द०)। शोभा (को०)। ६. कार्तिक कृष्ण एकादशी (को०) । रमी-सज्ञा स्त्री॰ [ मलाय० ] एक प्रकार की घास जो सुमात्रा आदि विशेप- इस शब्द मे कात, पति, रमण श्रादि अथवा इनके वाची द्वीपो मे होती है। शब्द लगाने से विष्णु का अर्थ होता है। जैसे,—रमाकात, विशेष-यह रीहा के समान कागज और रस्सी आदि बनाने रमापति, रमारमण। के काम मे पाती है। सुमात्रा वाले इसे 'कलुई' कहते हैं । रमाकात-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० रमाकान्त ] विष्णु । पहले इसे कुछ लोग भ्रमवश रीहा ही समझते थे । रमाधव-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] विष्णु । रमूज-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० रम्ज़ का बहुव० रमूज़ ] १ कटाक्ष । २ सैन। इशारा । ३ पहेली। गूढार्थ वाक्य । ४ श्लेष । ५ रमानरेश - तशा पुं० [हिं० रमा+ नरेश (= पति) ] विष्णु । गुप्त बात । रहस्य । उ०—यो कहि मौन भए अज नदन उ०-जय जय करत सकल सुर नर मुनि जल मे कियो प्रवेश । कैकय राज रमूज सी पाई। हनुमान (शब्द॰) । गहि लीन्ही धरणी रमानरेश ।-सूर रमेश-सज्ञा पुं० [ स० ] विष्णु । (शब्द०)। रमेश्वर-सज्ञा पुं० [ स०] विष्णु । रमाना-क्रि० स० [हिं० रमना फा सक० रुप] १ अनुरजित करना । रमैती सज्ञा स्त्री० [देश॰] १ किसानों की एक रीति जिसमें एक अनुरक्त बनाना । मोहित करना । लुभाना। उ०—(क) प्रति पतिहिं रमावं चित्त प्रभाव सौतिन प्रेम बढाव । -केशव कृषक आवश्यकता पड़ने पर दूसरे कृषक के खेत मे काम करता है और उसके बदले मे वह भी उसके खेत मे काम (शब्द॰) । (ख) गोरन मथत नाद इक उपजत किकिन धुनि मुनि कर देता है। श्रवण रमावति । सूर श्याम अंचरा धरि ठाढ़े काम कसौटी करि देखरावति ।—सूर (शब्द०)। २ अपने मनोनुकूल बनाना। विशेष—इसमें मजदूरी बच जाती है और काम के बदले मे उ०-जैसे माया मन रमै तने राम रमाय । तारा मडल छाडि दूसरों के खेतो में काम कर देना होता है। इसे पूर्व मे 'पेठ' फै जहँ केशव तहँ जाय । —कबीर (शब्द०)। ३ ठहराना । और अवध के उत्तरीय भागो मे 'हूंड' कहते हैं । रोक रखना। ४ सयुक्त करना । लगाना । जोडना । २ वह नफरी या काम का दिन जो इस प्रकार कार्य करने में लगे। मुहा०-रास रमाना = रात जोडना। रास रचाना। उ०- जाकी महिमा कहत न आवै । सो गोपिन संग रास रमावै ।- कि० प्र०—करना । —देना ।जगाना । सूर (शब्द॰) । विभूति वा भभूत रमाना = शरीर मे भभूत रमैनी-सच्चा स्त्री॰ [हिं० रामायण ] कबीरदास के वीजक का एक लगाना । भभूत पोतना । उ०-प्रसुप्रन को सेली गल मे लगत भाग जिसमे दोहे और चौपाइयां हैं। सुहाई। तन धूर जमी साइ अग भभूत रमाई। रमैया 1- या पु० [हिं० राम+ऐपा (प्र.)] १. रम । जाय पताल
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३६५
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