रजिस्टर्ड ४१०६ रटना रजिस्टरी कराई हुई चीज खोने नही पाती, और यदि खो ईश्वर । उ०—यह सब पालम तेरा तू' रज्जाक ममो केरा। जाय, तो डाकसाना उसके लिये जिम्मेदार होता है। यदि -दविखनी०, पृ० ५२ । पानेवाला किसी समय उस चिट्ठी या पारसल आदि के पाने से सज्ञा स्त्री० [सं०] १. रस्सी । जेवरी। २. घोडे की लगाम इन्कार करे, तो उसके विरुद्ध डाकखाने से रजिस्टरी का प्रमाण की डोरी। वागढोर । ३ स्तियो के सिर को चोटी। भी दिया जा सकता है। वेणी । ४ जैनियो के अनुसार समस्त विश्व की ऊंचाई का ३ ऊपर कही विधि से भेजा हुआ पत्र प्रादि । ६४ वां भाग । राजू । यौ०-रजिस्टरी शुदा = रजिस्टर्ड । पजीकृत । पजीबद्ध । रज्जुकठ-सज्ञा पुं० [सं० रज्जुकण्ठ ] एक प्राचीन प्राचार्य का रजिस्टर्ड-वि० [अं०] जिसकी लिखा पढी पक्की हो। रजिस्टर नाम । मे लिखा हुआ । जिमकी रजिस्ट्री कराई गई हो । रज्जुदालक-सज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का जलचर पक्षी जिसका रजिस्ट्रार-सञ्ज्ञा पु० [अ० ] १ वह अफसर जिसका काम लोगो मास खाने का शास्त्रकारो ने निपेध किया है। के लिखित प्रतिज्ञापत्रो या दस्तावेजो की कानून के मुताबिक रज्जुबाल-सज्ञा पुं० [सं०] मनु के अनुसार एक प्रकार का पक्षी । रजिस्ट्री करना अर्थात् उन्हे सरकारी रजिस्टर में दर्ज करना रज्जुदालक। हो। २ वह उच्च कर्मचारी या अफसर जो किसी विश्व रज्म-सज्ञा पु० [अ० रखम ] सग्राम । रण । जग । युद्ध [को०] । विद्यालय मे मत्री का काम करता हो। जैसे-हिंदू विश्व- रझना-सज्ञा पु० [*० रन्धन या रञ्जन] रंगरेजो का वह पात्र विद्यालय के रजिस्ट्रार। जिसमे वे रंगे हुए कपडे मे का रग निचोडते हैं। रजिस्ट्रेशन-सञ्ज्ञा पुं० [अं० ] रजिस्टर मे दर्ज होना । रटंत- सज्ञा स्त्री० [हिं० रटना+श्रत (प्रत्य॰)] रटने की क्रिया का रजीडट-सञ्ज्ञा पु० [अ० रेज़डेंट ] दे० 'रेजिडेंट' । भाव । रटाई। रजील-वि० [अ० रज़ील ] १. छोटी जाति का । नीच । जैसे, रटती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० रटन्ती] माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी रजील कौम । २. पाजी। कमीना । शोहदा । जो एक पुण्य तिथि सभझी जाती है । रजुल-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० रज्जु ] दे० 'रज्जु' । उ०—(क) सोभा रजु विशेष—इस दिन सूर्योदय के समय स्नान एव तर्पण करने का मदरु सिंगारू |-~-मानस, १।२४७१ (ख) जसुमति रिस करि वहुत माहात्म्य कहा गया है। बृहन्नीलतत्र और कालिका- करि रजु करपं । - सूर०, १०॥३४२। पुराण आदि के अनुसार इस दिन तात्रिक लोग भगवती तारा और मुडमालिनी कालिका का पूजन करते हैं । रजोकुल -सञ्ज्ञा पुं० [सं० राजकुत्ज ] राजवश | राजघराना। रट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रटना] किसी शब्द का वार बार उच्चारण करने उ०-राजनि राज रजोकुल मे प्रति भाग सुहागिनी राज- की क्रिया । जैसे,- तुमने तो 'लायो', 'लायो' की रट लगा टुलारी।-(शब्द०)। दी है। उ०—(क) राम राम रटु विकल भुषालू । -तुलसी रजोगुण-सज्ञा पु० [सं०] प्रकृति का वह स्वभाव जिससे जीव- (शब्द॰) । (ख) केशव वे तुहि तोहि र रट तोहिं इत उनही धारियो मे भोग विलास तथा दिखावे की रुचि उत्पन्न होती की लगी है। - केशव (शब्द०)। (ग) जैमी रट तोहि लागी है। रजगुण । राजस । माधव की राधे ऐनी, राधे राधे राधे रट माधवं लगी रहै।- विशेष—यह सास्य के अनुसार प्रकृति के तीन गुणो मे से एक पभाकर (शब्द०)। है जो चचल और भोग विलास आदि मे प्रवृत्त करानेवाला कि० प्र०-मचाना। लगना ।—लगाना । कहा गया है । विशेप ५० 'गुगा' । रटन-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रटना] रटने की क्रिया या भाव । रट । रजोगोत्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] पुराणानुसार वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम । रटन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कहना । बोलना । रजोदर्शन-सशा पुं० [सं०] स्त्रियो का मासिक धर्म । ऋतुस्राव । रटनि-सज्ञा स्त्री० [हिं० रटना] रटने की क्रिया । ग्ट | रटन । रजस्वला होना। उ०-चातकु रटनि घटें घटि जाई ।—मानस, २।२०४ । (ख) रजोधर्म -सा पुं० [ स० ] स्त्रियो का मासिक धर्म । तव कटु रटनि करी नहिं काना । - मानस, ६।२४ । रजोवल-तज्ञा पुं० [सं० ] अधकार । अवेरा (को॰) । रटना-क्रि० स० [अनु०] १. किसी शब्द को बार बार कहना । उ०- रजोभक-सशा पुं० [सं० ] बुरी बात से रोकनेवाला । निषिद्ध (क) जानि यह केशोदास अनुदिन राम राम रटत रहत न डरत कर्म करने पर सावधान करनेवाला ( स्मृति ) । पुनरुक्ति को। केशव (शब्द॰) । (ख) असगुन होहि नगर रजोमूर्ति-संज्ञा पुं० [ स० ] ब्रह्मा [को०] । पसारा । रटहिं कुभांति कुखेत करारा ।—तुलसी (श-द०)। रजोरस-सज्ञा पुं० [ ] अधकार । अंधेरा। २ जवानी याद करने के लिये वार वार उच्चारण करना । रजोहर- सज्ञा पुं० [सं रजक । पोवो [को०] । जैसे,—इन शब्दो का अर्थ रट डालो। रज्जाक-सञ्ज्ञा पुं० [म. रज्जाक ] रिज्क या रोजी देनेवाला । सयो० क्रि--सलना |--लेना। सं०
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३५०
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