रजताकर ४१०७ रजवार मा श्वेतता। उ०-तेज सो ताके ललाई भरे रज में मिली प्रासु रजनीमुख-सज्ञा पुं॰ [ मै० ] संध्या। सायंकाल । शाम का वक्त । सबै रजताई।-गिरधर (शब्द॰) । उ० - (क) वहुरि भोग धरि रजनीमुख मे। मैनारती कर भरि रजताकर-सज्ञा पुं० [ ] चाँदी की खान [को०] । सुख मे ।-गिरवर (शब्द॰) । (ख) प्रविश्यौ पवन तनय रजताचल-सया पु० [ म०] १ चाँदी का बनाया हुआ वह कृत्रिम रजन मुख लक निशक अकेला ।-रघुराज (शब्द०)। (ग) दिन पर्वत जिसका दान करना पुराणानुमार बहुत पुण्य का कार्य उठि जात घेनु बन चारन गोप सखन के सग। वासर गत समझा जाता है । यह नवाँ महादान है । २ कैलास पर्वत । रजनीमुख पावत करत नैन गति पग । —सूर (शब्द॰) । (घ) रजताद्रि-नशा पु० [ स० ] कैलास पर्वत । रजनीमुख घादत गुन गावत नारद तुपुर माउं।-सूर (शब्द०)। रजतोपम-सज्ञा पु० सं०] रूपामाखी । रजनीरमण-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] चद्रमा [को०] । रजधानी-सञ्चा स्त्री० [सं० राजधानी ] ३० राजधानी' । उ०- राजा रामु अवध रजवानी। गावत गुन सुर मुनि वर बानी। रजनीश-सज्ञा पुं॰ [ स०] चद्रमा । रजनीपति । उ०--कुटिन हरि- नख हिए हरि के हरप निरखति नारि । ईश जनु रजनीश -मानस, ११२५ । २ राज्य। 30-रामचद्र दसरथ मुत राख्यो भालहूँ ते उतारि । —सूर (शब्द०)। ताकी जनकसुता पटरानी। कह तात के, पचवटी वन छाँडि चले रजवानी । - सूर०, १०।१६६ । रजनोस-सज्ञा पु० [सं० रजनीश ] चद्रमा। उ०—तुलसी महीस रजन'-सञ्चा सी० [अ० रेजिन ] प्रकार का गोद । राल । देखे दिन रजनीस जैसे सूने परे सून से मनो मिटाए पाक विशेप दे० 'राल'। के । --तुलसी (शब्द०)। रजन'-सज्ञा पुं० [स०] १. किरण । २. रंगने की क्रिया । ३ कुमुभ । रजनीहसा-पज्ञा श्री॰ [ सं० ] शेफाली । हरसिंगार (को०] । महारजन [को०] । रजपूत@f-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० राजपुत्र ] [ स्त्री० रजपूतिन ] १ दे० रजनाg-क्रि० प्र० [म० रञ्जन ] रंगा जाना । रग मे डुबाया 'राजपूत' । उ०-धूत कहाँ अवधूत कही रजपूत कही जोलहा जाना । उ०—(क) प्रम भरी पुर भूप सुता गुण रूप रजी कही कोऊ ।-तुलमी (शब्द०)। २ वीर पुरुप । योद्धा । रजपूतिनि राज ।-देव (शब्द॰) । (ख) मानत नही लोक उ०—प्रतर ते जनु रजन को रजपूतन को रज ऊपर पाई।- मरजादा हरि के रग मजी। सूर श्याम को मिलि चूनो हरदी केशव (शब्द०)। ज्वौं रग रजी ।--सूर (णन्द०)। रजपूती -सज्ञा स्त्री० [हिं० राजपूत + ई (प्रत्य॰)] १ क्षत्रिय रजनाल-क्रि० स० रंग मे डुबाना । रंगना । होने का भाव । क्षत्रियत्व । उ०-राखी रजपूती राजधानी राखी राजन की, धरा मैं धरम राख्यो राख्यो गुन गुनी मैं :- रजना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० रञ्जन ] संगीत की एक मूर्च्छना जिमका स्वरग्राम इस प्रकार है-नि, स, रे, ग, म, पवनि, स, रे, भूपण ग्र० पृ० ६७ । २ वीरता । शूरता । वहादुरी । ग, म, प, ध, नि । स, रे, ग, म, प, ध, नि । रजपल-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० राजा अयवा राज्य + बल ] राज्य का रजनि-सञ्चा ली० [सं०] दे० 'रजनी' को०] । बल । सुख सपत्ति । गज्यत्व । उ०-जब हम हिरदे प्रीत विचारी। रजवल छाँडी के भए भिखारी।-दक्खिनी०, पृ. २३ । रजनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. रात । रात्रि । निशा । उ०—(क) मगल ही जु करी रजनी विवि याही ते मगली नाम धर्यो रजबलो-सज्ञा पुं॰ [ स० राज + बली ] राजा । (डि. है। केशव (शब्द॰) । (ख) है रजनी रज मे रुचि केती, रजवहा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राज, राजा (= वडा ) + हिं० बहना ] कहा रुचि रोचक रक रसाल मे।-द्विजदेव (शब्द०)। ३ किसी बडी नदी या नहर से निकाला हुया बडा नाला जिससे जतुका लता । पहाडी । ४. नीली । नील । ५. दारुहलदी। ६. और भी छोटे छोटे अनेक नाले निकलत है। पुराणानुसार शाल्मली द्वीप की एक नदी का नाम । ७. लाख । रजलबाह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ जलवाह ] मघ । बादल । (डि०) । लाह । ८. दुर्गा का एक नाम (को०) । रजवती-वि० [सं० रजोवती ] वह स्त्री जिसका रजस्राव हो रहा रजनीकर - सज्ञा पु० [सं०] १. चद्रमा । उ०—सतत दुखद सखो हो। रजस्वला । रजनीकर । स्वारय रत तव अवहुं एक रस मोको कबहुं न भयो रजवट-सला जी० [स० राज+वट (प्रत्य॰)] १. क्षात्रेयत्व । तापहर ।-तुलसी (शब्द॰) । २. कर्पूर । कपूर (को॰) । २ वीरता । शूरता । (डिं०) । रजनीचर-सञ्चा पु० [स०] १. राक्षस । २ चद्रमा। ३. चोर रजवती-वि० [ स० रजोवती] दे० 'रजवती' । (को०) । ४. रात का पहरेदार (को॰) । रजवाड़ा-सञ्चा पुं० [हिं० राज्य+ याहा] १. राज्य । देशी रियासत । रजनीचर-वि० जो रात के समय चलता या घूमता फिरता हो। जैसे,- वे कई रजवाडो मे माल बेचने जाते है । २ राजा । रजनीजल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] १. प्रोस । २. पाला |को०] । जैसे,—आजकल यहाँ कई रजवाडे आए हुए हैं। रजनीनाथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] चद्रमा [को॰] । रजवारल-तज्ञा पुं॰ [ स० राजद्वार ] १ राजा का दरवार । रजनीपति-सझा पु० [स] चद्रमा । २. राजद्वार। उ०-पुनि बावे रजवार तुरगा। का -
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३४८
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