पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३७

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O रक्तदला ४०६६ रक्तपुष्पी रक्तदला-सक्षा सी० [सं०] नलिका नाम का गंधद्रव्य । रक्तमाव । २ ऐमा लडाई झगडा जिसमें लोग जग्मी हों। रक्तदिग्ध-वि० [सं० रक्त + दिग्ध] रक्तसिक्त । खून से भीगा हुआ। खून खरावी । ३ रोमा प्रहार जिमसे क्मिी का रक्त बहे। रक्तमय । उ०-रक्तदिग्ध धरणी मे रूप की विजय मे। रक्तपाता-सज्ञा पुं० [स० ] जोक । लहर, पृ० ८४ रक्तपाद-मशा पुं० [ मं०] १ बरगद । २ तोता। ३ युद्ध का रक्तदूपण-वि० [सं०] जिससे रक्त दूपित हो। खून को खराब करने- रथ । नराई का रथ (को०) । ४ हाथी (०) । वाला। रक्तपायी'-वि० [सं० रक्तपायिन् ] [वि० पी० रक्तपायिनी ] रक्तदृग-सज्ञा सी० [स० रक्तहक, ] १ कोयल । कोकिल । २ एक रक्तगन करनेवाला । न पीनेवाला । प्रकार का कपोत। रक्तपायी'-सा पुं० मत्कुरण | खटमल । रक्तदृग--वि० लाल आँखोवाला । जिसकी आँखें लाल हाँ। रक्तपारद-सज्ञा पुं० [ ] हिंगुल । शिंगरफ । ईगुर । रक्तद्रुम-सझा पुं० [सं०] लाल बीजासन वृक्ष । रक्तपापाण-मजा पुं० [ स०] १ लाल पत्थर । २ गेरु । रक्तपिड-मज्ञा पुं० [ मे० रक्तपिण्ड १ जवा का फूल । २ लाल रक्तधरा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] वैद्यक के अनुसार मास के भीतर की दूसरी कला या झिल्ली जो रक्त को धारण किए रहती है। रग की पुडिया (को॰) । ३ नाक से खून बहना। नकमीर (को०)। कधातु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] गेरू। २ ताँवा। रक्तपिटक-मज्ञा पुं० [ म० रक्तपिण्डफ ] १ रतालू । २ जवा का रक्तनयन-सज्ञा पुं० [सं०] १ कबूतर । २ चकोर । फूल । पटहुल । रक्तनाड़ी [-सञ्चा स्त्री॰ [सं० रक्तनाडी] दांतो की जड मे हे नेवाला एक रक्तपिंडालु-सज्ञा पुं० [सं० रक्त पण्डालु ] रतालू । प्रकार का रोग। रक्तपित्त-मज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का रोग जिसमें मुंह, रक्तनाल-सञ्चा पुं० [सं०] जीवशाक । सुसना। नाक, गुदा, योनि प्रादि इद्रियो ने रक्त गिरता है। रक्तनासिक-सज्ञा पुं॰ [सं०] उल्लू । विशेष--यह रोग धूप मे अधिक रहने, बहुत व्यायाम करने, तीक्ष्ण रक्तनिर्यास-सक्षा पुं० [सं०] लाल रंग का घीजासन वृक्ष । पदार्थ खाने और बहुत अधिक मैथुन करने के कारण होता है । यह रोग स्त्रियो के रजोधर्म ठीक न होने के कारण भी हो जाता रक्तनील-सधा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का बहुत है। यह रोग पिन के कुपित होने से होता है । जहरीला विच्छू । २ नाक से लहू बहना । नकसीर । रक्तनेत्र'-सज्ञा पु० [सं०] १ सारस पक्षी । २ कबूतर । ३. चकोर । रक्तपित्तहा - सशा स्त्री० [ स० ] रतघ्नी नाम की दूध | रक्तनेत्र-वि० जिसकी मांखें लाल हो। रक्तपित्ती-सशा पुं० [ स० रक्तपित्तिन् ] वह जिसे रक्तपित्त रोग हो । रक्तप'—सचा पुं० [सं०] राक्षस । रक्तपुच्छक-सा पुं० [सं० ] एक प्रकार का रेंगनेवाला कीडा । रक्तप-वि० रक्त पीनेवाला। रक्तपुनर्नवा-सणा सी० [सं० ] लाल रंग की पुनर्नवा या गदहपूनः । रक्तपक्ष-सपा पुं० [सं०] गरुड़ । वैद्यक में इसे तिक्त, सारक और रक्तप्रदर, पाडु तथा पित्त रक्तपट-सपा पुं० [स०] लाल रंग के कपड़े पहननेवाला, श्रमण । आदि का नाशक माना है। रक्तपत्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पिंडालू । पर्या०—फरा। मडलपत्रिका । रक्त काता । वर्षकेतु । लोहिता । रक्तपात्रा-सचा पु० [सं०] १ लाल गदहपूरना । २ नाफुली । रक्तपत्रिका | वैशासी। पुष्पिका । विपनी। सारिणी। रक्तपदी-सचा स्त्री॰ [सं०] लजालू । लज्जावती। वर्षाभव । भौम । पुनर्भव । नव । नव्य । रक्तपद्म-मया पुं० [सं०] लाल कमल । रक्तोत्पल [को०] । रक्तपुष्प-सज्ञा पुं० [सं०] १ करवीर । कनेर । २ अनार का पेड । रक्तपर्ण- -सक्षा पुं० [म०] लाल गदहपूरना। २. वधूक का पेड। गुलदुपहरिया। ४ पुन्नाग। ५ अडहुल । जवा का फूल (को०)। रक्तपल्लघ–सञ्चा पुं० [सं० ] अशोक का वृक्ष । रक्तपा-सज्ञा स्त्री॰ [ सं०] १ जोक | २ डाकिनी। रक्तपुष्पक-मज्ञा पुं० [सं०] १ पलास का पेड । २ सेमल का पेड । शाल्मलि। रक्तपाका-सज्ञा स्त्री॰ [ स्त्री० ] बृहती नाम की लता। रक्तपुष्पा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. शाल्मली वृक्ष । सेमल । २ पुनर्नवा । रक्तपाणि-वि० [सं० रक्त+पाणि ] खूनी या खून मे सने हुए हाथ ३ सिंदूरी । ४ चपा केला । ५ नागदौन । वाला । जिसके हाथ रक्त बहाने या हिंसा करने के अभ्यस्त हो। रक्तपुष्पिका--मशा स्त्री० [सं०] १ लाल पुनर्नवा । २ लजालू । उ०-वहाँ विद्याव्यसनियो की नही रक्तपाणि राक्षसो का लाजवंती। वोलबाला है। किन्नर०, पृ०६०। रक्तपप्पी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ जवा। अडहुल । २ नागदौन । रक्तगत-सज्ञा पुं० [सं०] १. लहू का गिरना या बहना । ३ धौ। ४. पावर्तकी नाम की लता। ५ पांडर ।