पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३३२

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रमा ४०.१ रंगावट रंभाना या चिल्लाना। ४ उत्तर दिशा । ५ वेश्या । ६ पुराणा करति जुवति जग जोई। पावस बात न गूढ यह बूढनि हूँ रँग नुसार स्वर्ग की एक प्रसिद्ध अप्सरा । ७ चावल की एक किस्म होई।- बिहारी (शब्द॰) । (को०)। मुहा०--रैंगरलियां मचाना या धरना - आनद मगल और रमा- सज्ञा पुं० स० र भा] लोहे का वह मोटा भारी डहा जिसकी आमोद प्रमोद करना । उ०—(क) तुम्हारे यही दिन हंसने सहायता से पेशराज आदि दीवारो मे छेद करते या इसी प्रकार वोलने और रंगरलियां करने के है । -अयोध्या (शब्द०)। के भौर काम करते है। (ख) तमाम शहर मे हर सू मची है रंगरलियां। गुलाल अवीर रंभा तृतीया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० रम्भा तृतीया] ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया । से गुल्जार है सभी गलियाँ ।-नजीर (शब्द॰) । विशेष-पुराणानुसार इस तिथि को व्रत करने का विधान है। रॅगरस 2-सज्ञा पुं० [ स० रग+रस ] दे० 'रगरस । र भापति- सज्ञा पुं० [सं० रम्भापति] इद्र । सुघराई के गरब भरी जानति सब रगरन । - व्यास (शब्द॰) । रभाफल-सज्ञा पुं० [म० रम्भाफल] केला। रंगरसिया --सञ्ज्ञा पुं० [हिं० रगरस+इया (प्रत्य॰)] विलासी रभित-वि० [सं० रम्भित] १ शब्द किया हुआ । बोलाया हुया। व्यक्ति । रगरसिया । २ वजाया हुआ। रॅगराता--वि० [सं० रडग+रत ] [ वि० स्त्री० रंगराती] १ रभिनी-सज्ञा स्त्री० [ स० रम्भिनी ] एक रागिनी जो भैरव राग भोग विलास मे लगा हूप्रा। ऐश पाराम मे मस्त । २ प्रम- की पुत्रवधू मानी जाती है। युक्त । अनुगगपूर्ण । उ.-रंगराती रातै हिय प्रियतम लिखी बनाइ । पाती काती विरह को छाती रही लगाइ ।-बिहारी रभी-सज्ञा पु० [स० रम्भिन् ] १ वह जो हाथ में वेंत या दड लिए हो। २ बुड्ढा आदमी । वृद्ध । ३ द्वारपाल । दरवान । (शब्द०)। पु० [अ० रिक्रूट ] १. सेना या पुलिस प्रादि मे रभोरु, रभोरू-वि० [सं० सम्भोरु, रम्भोरू] १ (स्त्री ) जिसकी रॅगस्ट-सशा नया भर्ती होनेवाला सिपाही । २. किसी काम मे पहले पहल केले के खभे के समान सुहौल, चिकनी और उतार चढ़ाववाली हाथ डालनेवाला आदमी। वह प्रादमी जो कोई काम सीखने जाँ हो। २. सु दर । खूबसूरत । लगा हो। जिसने कोई नया काम करना शुरू किया हो। रह-सज्ञा पुं० [सं० रहस् ] १. वेग । गति । तेजी। २ उग्रता । वह जिसे कार्य का अनुभव न हो। जैसे,—वह अभी व्याख्यान चहता । तीक्ष्णता (को०) । ३ उत्कट लालसा (को०)। ४ शिव देना क्या जाने, बिलकुल रंगरूट है। का एक नाम (को०) । ५ विष्णु का एक नाम (को॰) । रंगरेज--सञ्ज्ञा पुं० [ फा०] [ लो० रंगरे जन ] कपडे रंगनेवाला। रहण- सझा पु० [ स० ] तेजी से जाना । तीन गति वा गमन [को॰] । वह जो कपडे रंगने का काम करता हो। रहति--सहा स्त्री० [सं०] १ गति । वेग । चाल | २. रथ का वेग रंगरेली-मज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'रगरलो' । उ०- भैसन देहु (को०)। करन रंगरेली। सोग पखारि कुड विच केली।-लक्ष्मणसिंह ई-सञ्चा खी० [ ] १ जलप्रवाह । सोता । २ प्रवाह । धारा । (शब्द०)। ३ पीछा करने की क्रिया। पीछा करना । दौडाना। ४ रंगरैनी -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० रग+रेनी (= जुगनू ) ] एक प्रकार शीघ्रता । तेजी [को०)। की लाल रंग का चुनरी। रॅगg--सच्चा पुं० [ सं० रङ्ग, रग, फा० रग ] दे० 'रंग' । उ० - रंगवा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] चौपायो का एक रोग । त्यो पदमाकर यो मृग मे रंग देखत ही कवकी रुख राखे । -पद्माकर (शब्द०)। रॅगवाई- --सज्ञा रही० [हिं० ] दे॰ 'रगाई। रँगधर-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] रगसाज । चितेरा। चित्रकार । रॅगवाना-क्रि० स० [हिं० रंगना का प्रर० रूप] रंगने का उ०-पुहमीपति दुइ रतन बटोरा। सामुद्रिक प्रो रंगधर काम दूसरे से करना । दूसरे को रंगने मे प्रवृत्त करना । जोरा।-चित्रा०, पृ० १८५। रँगवालसा पुं० [फा र ग+हिं० वाल (प्रत्य॰)] दे० 'रंगरेज' । रँगना-क्रि० स०, क्रि० अ० [हिं० रग+ना ] दे० 'रगना' । उ०-सीसगर दरजी तवोली रंगवाल ग्वाल । बाढई सगतरास उ०-( क ) लाज गडी मुख खोल न बोले कियो रघुनाथ तेली घोवी धुनिना ।-अर्ध०, पृ० ४ । उपाय दुनी को। कोटि रंग नहि एक लगै जिमि सूम के आगे सयान गुनी को |-रघुनाथ (शब्द॰) । (ख) सतन के उपदेश रँगाई-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० र ग+श्राई (प्रत्य॰)] १. रंगने का काम । रंगने की क्रिया । २. रंगने का भाव । जैसे,—इसको तें रंग्यो कछुक हरि रग ।-रघुराज (शब्द॰) । रॅगमगना-क्रि० प्र० [सं० रड्ग+भग्न ] रंगना। पगना । रंगाई बहुत अच्छी हुई है । ३. रंगने को मजदूरी। रजित होना। रागयुक्त होना । उ०-सोहत श्याम जलद रेंगाना-क्रि० स० [हिं० रगना का प्रेर० रूप ] रंगने का काम मृदु घोरत धातु रंगभगे सुंगनि ।-रस०, पृ० १३६ । दूसरे से कराना । दूसरे को रंगने मे प्रवृत्त करना । रॅगरली-सज्ञा स्त्री० [हिं० रंग+रलना ] मामोद प्रमोद । आनद । रगावट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० र ग+ प्रावट ( प्रत्य० )] रंगने का क्रीड़ा। चैन। मौज । उ०—कुढंग कोप तजि रंगीरली भाव । रंगाई। co .