पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३२६

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४०८५ होना । क्रुद्ध होना । नाराज होना । जैसे,—आप तो नाहक हम पर रग वदल रहे हैं । (२) रूप परिवर्तित करना । ६ यौवन । जवानी । युवावस्था । क्रि० प्र०-थाना ।-चढना।—होना । मुहा०-रग चूना = युवावस्था का पूर्ण विकास होना। यौवन उमडना । रंग टपकना = दे० 'रग चूना' । १० शोभा । सौदर्य । रौनक । छवि । क्रि०प्र०-याना ।-उतरना ।-चढ़ना ।—दिखाना ।-होना । मुहा० - रंग पकडना = रौनक या बहार पर माना। रग पर श्राना= दे० 'रंग पकडना'। रग फीका पडना पा होना= रौनक कम हो जाना। शोभा का घट जाना । रग बरसना = अत्यत शोभा होना । खूब रौनक होना। उ०-सखी, सचमुच आज तो इस कदव के नीचे रग बरस रहा है।-हरिश्चद्र ( शब्द०)। रंग है = शावाश । वाह वा क्या बात है । ११. प्रभाव | असर। मुहा० रंग चढ़ना = प्रभाव पडना। अमर पडना । जैसे,—इस लडके पर भी अव नया रग चढ रहा है। रंग जमना = प्रभाव पडना। असर पडना। १२ दूसरे के हृदय पर पडनेवाली शक्ति, गुण या महत्व का प्रभाव । धाक । रोब। क्रि० प्र०—करना ।-मनाना । मुहा०-रग रलना = आमोद प्रमोद करना। क्रीडा या भोग विलास करना । उ०-भाव ही कह्यौ मन भाव दृढ़ राखिवो दे सुख तुमहिं सग रग रलिहैं । —सूर (शब्द०)। रग में भग पड़ना=आमोद प्रमोद के बीच कोई दुख की बात आ पडना । हंसी और पानद मे विघ्न पडना । १४. युद्ध । लडाई । समर । मुहा०-रग मचाना = रण मे खूब युद्ध करना। उ०-चढि देहि ममर उत्तर परन उत्तर द्वार मचाय रग।-गोपाल (शब्द॰) । १५ मन की उमग वा तरग। मन का वेग या स्वच्छंद प्रवृत्ति । मौज | उ०- - (क) रत्नजटित किकिणि पग नूपुर अपने रंग वजावहु ।—सूर (शब्द० । (ख) अपने अपने रग मे सब रंगे है, जिसने जो सिद्धात कर लिया है, वही उसके जी में गड रहा है। हरिश्चद्र (शब्द०)। (ग) चढे रग सफजग के हिंदू तुरुक अमान । उमडि उमडे दुहुँ दिसि लगे कौरन लोही खान।- लाल (शब्द०)। मुहा०-(किसी के ) रंग में ढलना = किसी के कहने या विचार के अनुसार कार्य करने लगना। किसी के प्रभाव मे आना । उ०—तुरत मन सुख मानि लीन्हो नारि तेहि रंग ढरी। सूर (शब्द०)। १६. पानंद । मजा । उ० बहुत झूरिया लागे सग । दाम न खरचं लूट रग।-देवस्वामी (शब्द॰) । (ख) खान सनमान राग रग मनहिं न भाव ।-गिरिधर (शब्द०)। (ग) मोको व्याकुल छाँडिक आपुन कर जु रग । —सूर (शब्द॰) । विशेष—इस भर्थ में इस शब्द का और इसके मुहावरो का प्रयोग प्राय. नशे के सबंध मे भी होता है। मुहा०-रग पाना= मजा मिलना । भानद मिलना। रग उखडना = बने हुए आनद का अचानक घटना या नष्ट हो जाना । रंग जमना = मानद का पूर्णता पर पाना। खूब मजा होना । रग मचाना = धूम मचाना । उ०-असवारी मे रग मचावै । मन के सग तुरग नचावै ।-लाल (शब्द०)। रग में भग करना = पूर्ण प्रानद के समय उसमे विघ्न उपस्थित करना। बना बनाया मजा बिगडना । रग रचाना= उत्सव करना । जलसा करना। रग रहमा=भानद रहना। प्रसन्नता रहना । मजा रहना। १७ दशा। हालत । उ.-कबहुं नहिं यहि भांति देख्यो, आज को सो रग ।—सूर (शब्द॰) । मुहा०-रग लाना = दशा उपस्थित करना। हालत करना । जैसे-तुम्हारी ही शरारत यह सब रग लाई है। १८ अद्भुत व्यापार । काड। दृश्य । जैसे,—यह सब रंग उन्ही की कृपा का फल है। १६, प्रसन्नता । कृपा । दया । मेहरबानी । उ०—हम चाकर कलि- पान मुहा०-रंग जमना = धाक जमना । अनुकूल स्थिति उत्पन्न होना। उ०—दोनो ने समझा कि रग जैसा चाहिए, वैसा जम गया। -अयोध्या० (शब्द०)। रग उनहना = घाफ न रहना। स्थिति प्रतिकूल होना । दूसरो पर महत्व पादि का प्रभाव न रह जाना । जैसे,—पहले यहाँ उसे बहुत आमदनी थी, पर अब रग उखड गया। रग जमाना = प्रभाव डालना। घाक वांवना। रग फीका रहना = पूरा पूरा प्रभाव न पडना। रग बंधना - रोब जमना । धाक वंधना। रग बांधना = (१) अपना महत्व दूसरे के हृदय मे स्थापित करना। रोव गांठना। धाक जमाना। उ०-भाई मुझे तो एक दिन के लिये भी कही तख्त मिल जाय, तो रग बाव हूँ।-राधाकृष्णदास ( शब्द०)। (२) झूठा आडंबर रचना । ढोग रचना । रग बिगड़ना = रोव जाता रहना । प्रभाव नष्ट या कम हो जाना। रग बिगाडना = (१) प्रभाव नष्ट करना । महत्व घटाना । (२) शेखी किरकिरी करना । रंग लाना=अपना प्रभाव या गुण दिखलाना । १३ क्रीडा । कौतुक । खेल। पानद । उत्सव । उ०—(क) दिन मे सव लोग राग, रंग, नृत्य, दान, भोजन, पान इत्यादि में नियुक्त थे । (ख) वर जग रंग करिबे चह्यो मनहिं सुढग उमंग में।- गोपाल ( शब्द०) यौ०-रंगरलियाँ = आमोद प्रमोद । मौज । चैन ।