सं० -- योद्धा। युद्धक ४०७३ युयुत्सु माना जाता था। ऐसे पातकी की शुद्धि तब तक नहीं होती युद्धोपकरण-सज्ञा पुं० [सं० ] लडाई मे काम आनेवाली सामग्री । थी, जबतक कि वह फिर युद्ध मे जाकर शूरता न दिखलावे । युध-सञ्ज्ञा सी० [ स०] युद्ध । लडाई। क्रि० प्र०-छिडना ।-छेड़ना ।-उनना ।—मचना।-मचाना। युधाश्रौष्ठि- -सज्ञा पु० [स० ] एक ऋषि का नाम । मुहा०-युद्ध मांडना = लडाई ठानना। उ०---कुंपर तन श्याम युधाजि-सञ्ज्ञा पुं० [ ] दे० 'युद्धाजि'। मानो काम है दूसरो, सपन मे 'ख ऊखा लुभाई। मित्ररेखा युधाजित्-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ केकयराज के पुत्र का नाम । यह सकल जगत के नृपन की, छिनिक मे मुरति तक लिखि देखाई । भरत का मामा था । २. कृष्ण के एक पुत्र का नाम । ३. क्रोष्टु निरखि यदुवश का रहस मन मे भयो, देखि अनिरुद्ध युद्ध माध्यो । नामक राजा के पुत्र का नाम । सूर प्रभु ठटी ज्यो भयो चाहं सो त्यो फांसि करि कुँअर अनिरुद्ध वाँध्यो।—सूर (शब्द०)। युधान-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ क्षत्रिय । २ रिपु । शत्रु । दुश्मन । यौ-युद्धकारी = लडाकू । युद्धकाल = लडाई का समय । युद्ध- युधामन्यु-सज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक राजा का क्षेत्र = लडाई का मैदान । युद्ध गाधर्व = युद्ध का गीत । मारू नाम जो महाभारत युद्ध मे पाडवो की ओर से लड़ा था। राग । युद्धतत्र = सैन्य विज्ञान । युशध्वनि = लडाई का शोर- युधासार-सचा पुं० [स० ] नद राजा का एक नाम । गुल । युद्धपोत = लडाई के काम मानेवाला जहाज । युद्धभू, युधिक - वि० [ स० युद्धभूमि = लड़ाई का मैदान । युद्धमार्ग = लडाई की चाल । युधिष्ठिर-सशा पुं० [सं०] पांच पाडवो मे सबसे वडे का नाम जो युद्धविद्या = युद्धशास्त्र । युद्ध का विज्ञान । युद्धशास्त्र = वह शास्त्र कुती से उत्पन्न धर्म के पुत्र थे और पाडु के क्षेत्रज पुत्र थे। जिसमे युद्ध के सिद्धात है। विशेष—ये सत्यवादी और धर्मपरायण थे; पर इन्हें जुए की लत युद्धक-सचा पु० [ ] १ युद्ध करनेवाला। योद्धा । २ युद्ध । ३. थी, जिसके कारण यह अपना राज्य, भाइयो और स्वय अपने युद्ध के काम आनेवाला विमान आदि । आपको जुए मे हार गए थे। महाभारत के सग्राम के युद्धप्राप्त-सशा पुं० [स० ] वह पुरुप जो सग्राम मे पकडा गया हो। अनतर ये हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर बैठे थे। महाभारत विशेष-यह दास के बारह भेदो में से एक है और ध्वजाहत भी के अनुसार अपनी धर्मपरायणता के कारण ये हिमालय होकर कहलाता है। सदेह स्वर्ग गए थे। ये आजन्म सत्य का पालन करते रहे। युद्धमय-वि० [सं०] १ युद्धसवधी । २ रणप्रिय । युद्ध प्रिय । कुरुक्षेत्र के युद्ध मे कृष्ण ने इनसे यह असत्य बात कहलानी युद्धमत्री-सञ्ज्ञा पुं० [सं० युद्धमत्रिन् ] युद्धविभाग या युद्धकार्य का चाही कि 'अश्वत्थामा मारा गया। इस कथन से द्रोण सचालक मत्री [को०)। की मृत्यु निश्चित थी। इन्होने वहुत प्रागा युद्धमुष्टि-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम । पीछा किया, पर अत मे इन्हे इतना कहना पडा- 'अश्वत्थामा मारा गया, न जाने हाथी या मनुष्य' । यह पिछला युद्धरग-सञ्ज्ञा पु० [स० युद्धरङ्ग ] १. कार्तिकेय । स्कद । २ युद्ध- वाक्य इन्होंने कुछ धीरे से कहा था। इनके जीवन भर मे मत्य स्थल । रणभूमि । लडाई का मैदान । के अपलाप का केवल यही एक उदाहरण मिलता है। युद्धवीर-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ याद्धा । २ वीर रस वह पालवन जिसमे युद्ध की वीरता हो । ३ वीर रस का एक भेद । युध्म-सज्ञा पुं० [ मं० ] १ सगाम । युद्ध । २ धनुप ३ बाण। ४ अस्त्र शस्त्र । ५ योद्धा । ६ शरभ । युद्धशाली-वि० [सं० युद्धशालिन् ] ओजस्वी । वीर (को०] । युद्धसार - सञ्चा पुं० [ स०] घोडा। युध्य-वि० [ स० ] जिसके साथ युद्ध किया जा सके। युद्धाचार्य-वज्ञा पु० [सं० ] वह जो दूसरो को युद्धविद्या की शिक्षा युनिवर्सिटी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अं॰] दे॰ 'यूनिवमिटो' । देता हो । युद्ध सिखलानेवाला। युपित- -वि० [सं० ] १ हटाया हुा । अपवारित । निवारित । २ युद्धाजि-सज्ञा पुं॰ [ ] अगिरा के गोत्र मे उत्पन्न एक ऋषि का दु.खित । सताया हुआ। ३ नष्ट किया हुआ । उच्छेदित [को॰] । नाम। युयु-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] घोडा। युद्धावसान-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] लडाईवदी । युद्धविराम [को०] । युयुक्खुर-सज्ञा पुं॰ [ स० ] एक प्रकार का छोटा वाघ । युद्धावहारिक-सज्ञा पुं० [ स० ] युद्ध मे छीना या लूटा हुआ माल स० ] मिलन या सयोग चाहनेवाला। २ ईश्वर (को०]। मे लीन होने की कामना रखनेवाला। युद्धोन्मत्त'-वि० [ स० ] १ युद्ध मे लीन । लसाका । २. जो युद्ध के युयुत्सा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ युद्ध करने की इच्छा। लडने की लिये उतावला हो रहा हो। इच्छा। २. शत्रुता । विरोध । युद्धोन्मत्त'-सशा पुं० रामायण के अनुसार एक राक्षम का नाम । युयुत्सु'- वि० [सं०] लडने को इच्छा रखनेवाला। जो लडना, इसका दूसरा नाम महोदर था। वह रावण का भाई था और चाहता हो। इसे नील नामक बानर ने मारा था । युयुत्सु'-तज्ञा पुं० धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । TO युयुक्षमान-वि० [
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३१४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।