9 युगाध्यक्ष ४०७२ युद्ध युगाध्यक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ प्रजापति का नाम । २ शिव [को०] । युव्य-वि० [सं०] १ मिला हुआ । सयुक्त । २ मिलाने योग्य । युगावतार-वि० [सं०] युग का सर्वश्रेष्ठ महापुरुप । अवतारी महा ३ उचित । उपयुक्त । ठीक (को०)। पुरुष । युज्य-सज्ञा पुं० १ मयोग । मिलाप । २ एक प्रकार का माम। युगेश-सञ्ज्ञा पु० [सं०] वृहस्पति के साठ वर्ष के राशिचक्र मे गति ३ बंधुवावर । मगोय । निरादर (को॰) । के अनुसार पांच पांच वर्ष के युगो के अधिपति । युत-वि० [सं०] १ युक्त । सहित । २ जो अलग न हो। मिला विशेष—यह चक्र उस समय से प्रारभ होता है, जब बृहस्पति हुग्रा । मिलित । ३ अलग किया हुग्रा (को०) । माघ मास में घनिष्ठा नक्षत्र के प्रथमाश मे उदय होता है। युत-सशा पुं० चार हाथ की एक नाप । बृहस्पति के साठ वर्ष के काल में पांच पांच वर्ष के बारह युग युतक-मग पुं० [ ] १ मशय । सदेह । २ युग। जोडा । ३ होते हैं, जिनके अधिपति विष्णु, सुरेज्य, बलभित्, अग्नि, अचल । दामन । ४. प्राचीन काल म एक प्रकार का वस्त्र जो त्वष्टा, उत्तर प्रोष्ठपद, पितृगण, विश्व, सोम शक्रानिल, पहनन के काम में प्राता था। ५ मूप के दोनो पोर के किनारे अश्वि और भग है। प्रत्येक युग के पांच वर्षों के युग क्रमश जो ऊपर उठे हुए होते हैं और पीछे के उठे हुए भाग से जोडकर सवत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर और इद्वत्सर बांधे रहते हैं। ६ मैनीकरण । ७ मश्रय । कहलाते हैं। युतवेध -संज्ञा पुं॰ [ मुं० ] एक योग का नाम । युगोरस्य-सज्ञा पुं० [सं०] सेना के सनिवेश का एक भेद। विशेष—यह योग उस समय होता है, जब चद्रमा पापग्रह से सातवें युग्म-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ जोडा । युग। २ अन्योन्याश्रित दो वस्तुएं स्थान में होता है या पापग्रह के साथ होता है। ऐसे योग के या वातें। तद । ३ मिथुन राशि | ४ कुलक का एक भेद समय विवाहादि शुभ कर्मों का फलित ज्योतिष मे निपेय है। जिसे युगलक भी कहते हैं। दे० 'युगलक' । युति-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ योग। मिलन । मिलाप। २ रम्सी, युग्मकटका-सहा सी० [ सं० युग्मफण्टफा ] बेर । जिमसे घोडे या बैल गाडी मे बांचे जाते हैं। ३ जोती । नाघा, युग्मक-सधा पुं० [सं०] १ युगलक । २. युग्म । बोला। जिससे जुमाठा और हरिस को एक मे बावते हैं। युग्मज-सद्या पुं० [स०] एक साग उत्पन्न पो बच्चे । यमल । यमय । युद्ध-सा पुं० [सं० लडाई । सग्राम । रण। युग्मधर्मा-वि० [ स० युग्मधर्मन् ] १, षो स्वभावता मिलता हो। विशेष-प्राचीन काल मे युद्ध के लिये रथ, हाथी, घोडे और पदाति मिलनशील । २. मिथुनधर्मा। ये चार सेना के प्रधान प्रग थे और इसी कारण सेना को युग्मपत्र-सक्षा पुं० [सं०] १ कचनार का पैछ। २, भोजपत्र का पड़ । चतुरगिणी पाहते थे। इन चारो के सख्याभेद के कारण ३ सतिवन । छतिवन । छितवन । प्राछी । ४. वह पेड़ जिसकी पत्ति, गुल्म, गण मादि अनेक भेद और उनके सनिवेशभेद शाखा में दो दो पत्त' एक साथ होते हों । युग्मपर्ण। से शूची, श्येन, मकरादि अनेक व्यूह थे। सैनिको को शिक्षा युग्मपर्ण -सज्ञा पुं० [स०] १ लाल कचनार | २. सतिवन । छतिवन । सकेतध्वनियो से दी जाती थी, जिसे सुनकर सैनिकगण समी- लन, प्रसरण प्रभ्रमण, भाकुचन, यान, प्रयाण, अपयान भादि ३. दे० 'युग्मपत्र'। अनेक चेष्टाएं करते थे। सग्राम के दो भेद ये-एक द्वद्व मोर युग्मपर्णा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] वृश्चिकाली। दूसरा निर्द्वद्व । जिस संग्राम मे कृत्रिम या प्रकृत्रिम दुग में युग्मफला-सा बी० [सं०] वृश्चिकाली । रहकर शत्रु से युद्ध करते थे, उसे 'द्वद्व युद्ध' कहते थे । पर जब युग्मफलिनी-सधा बी० [सं०] दुधिया । दुद्धी । गुदनी। दुर्ग से बाहर होकर प्रामने सामने खुले मैदान मे लडते थे, तव युग्मविपुला-सका मौ० [सं०] एफ वृत्ति का नाम (को०] । उसे निद्वंद्व युद्ध' कहते थे। निद्वंद्व युद्ध में समदेश मे रथयुद्ध, युग्मशुक्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] आँख की पुतली पर पड़े हुए सफेद धब्बे विषमदेश मे हस्तियुद्ध, मरुभूमि मे प्रश्वयुद्ध, पर्वतादि मे (को०] । पत्तियुद्ध और जल मे नौकायुद्ध किया जाता था। युद्ध के युग्माजन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० युग्माञ्जन ] स्रोताजन और सौवीराजन सामान्य नियम ये थे—(१) युद्ध उस अवस्था मे किया जाता इन दोनो का समूह । था, जब युद्ध से जीन को प्राशा और न युद्ध करने मे नाश ध्रुव युग्य'-सशा पुं० [सं०] १ वह गाठी जिसमे दो घोडे या बैल जोते हो । (२) राजा और युद्धशास्त्र के मर्मज्ञ पडितो को युद्धक्षत्र जाते हो। जोडी । २. वे दो पशु जो एक साथ गाडी मे जोते मे नही जाने देते थे। उनसे यथासमय युद्धनीति का केवल परामर्श और मत्र लिया जाता था। ( ३ ) रथहीन, प्रश्वहीन, जाते हों । जोडी। गजहीन और शस्त्रहीन पर प्रहार नही होता था। (४) बाल, युग्य-वि० १. जो जोता जाने योग्य हो। २. जो जोता जानेवाला वृद्ध, नपुंसक और अव्याहत पर तथा शाति की पताका उठाने- हो। ३ खीचा हुआ। वहन किया हुप्रा ( रथ मादि)। वाले के ऊपर शस्त्रास्त्र नही चलाया जाता था। (५) भयभीत, जैसे, अश्वयुग्य रथ = घोड़े द्वारा खींचा हुमा रथ (को॰) । शरणप्राप्त, युद्ध से विमुख भौर विगत पर भी माघात नहीं युग्यवाह-सझा पुं० [सं०] १ जोडी हाँकनेवाला। २ गाडीवान । किया जाता था । ( ६ ) संग्राम मे मारनेवाले को ब्रह्महत्यादि सारथी। दोप नही लगते थे। लडाई से भागनेवाला बडा पातकी
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३१३
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