मांगना। 1 यष्टिमधु ४०६५ याचिका यष्टिमधु-सञ्ज्ञा पुं० [स०] जेठी मधु । मुलेठी । फडकता है क्यो हाथ दहना। याँ तपोवन मे क्या होगा यष्टियंत्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० यष्टियन्य] वह धूपघडी जिसमे एक छडी लहना ।-प्रतापनारायण मिश्र (शब्द०)। सीधी खडी गाड दी जाती है और उसकी छाया से समय का यॉचनार-सहा मी० [सं० याञ्चा] दे० 'याचना'। ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यॉचना-क्रि० स० दे० 'याचना' । यष्टी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ गले मे परनने का एक प्रकार का हार । याँचा-रामा सी० [म० याञ्चा] मांगने की क्रिया। प्रार्थनापूर्वक मोतियो की ऐसी माला जिसमे वीच बीच मे मरिण भी हो। २ मुलेठो। या'-अव्य० [फा०] विकल्पसूचक शब्द । अथवा । वा। उ०-बाप यस्क-सा पुं० [स०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम । रहा है सीस नवाय । या प्रवाह ने दिया मुताय ।-प्रताप- यह-सर्व० [स० य (पु०) या ऐप ] निकट की वस्तु का निर्देश करने- नारायण मिश्र ( शब्द०)। वाला एक सर्वनाम, जिसका प्रयोग वक्ता और श्रोता को छोडकर या-सर्व० वि० [हिं०] 'यह' का यह प जो उसे ब्रज भाषा मे कारक मौर सव मनुष्यों, जीयो सधा पदार्थों प्रादि के लिये होता है । चिह्न लगने के पहले प्राप्त होता है । उ०—(क) या चोदहे वैये,-(क) यह कई दिनो से नीमार है । (ख) यह ता अभी प्रकास मे 8है लका दाह । -केशन (जन्द०)। (स) चलो चला षायगा। लाल या बाग में लखी अपूरब केलि । - मतिराम (शब्द॰) । विशेष-(क) षब इसमे विभक्ति लगती है, तब 'यह' का रूप खडी या'-सज्ञा स्त्री० [स०] १ योनि । २ गति । चाल । ३. रथ । गाडी । वोली मे इस' (बहुव० इन) और प्रजभापा मे 'या' हो जाता है। ४ भवरोध । रोक । वारण | ५ व्यान । ६ प्राति । लाभ । बसे, इसको, (इनको) याफो । (स) पुरुपवाचक और निजवाचक याक'-सा पु० [तिव्वती ग्याक, स० गावक] हिमालय पर होनेवाला सर्वनामो को छोड़कर शेष सर्वनामा की भांति इसका प्रयोग प्राय जगली बैल जिसकी पूछ का चंवर बनता है। विशेपण के समान होता है । जब यह भकेला रहता है, तव तो याका-वि० [हिं० एक, फा० यक] दे० 'एक' । उ०—(क) कोऊ सर्वनाम होता है, और अब इसके साथ कोई संज्ञा भाती है, तब याकी बात न समुझे चाहै वीसन दाय कहन ।-पतापनारायण यह विशेपण हो जाता है । जैसे,—'यह बाहर जायगा' मे मिश्र ( शब्द०)। (स) डाढी नाक याक मा मिलिग, विनु यह सर्वनाम है, और 'मह लडका पानी है' मे 'यह' विशेपण है। दाँतन मुंह धस पोपलान । -प्रतापनारायण मिश्र (शब्द॰) । यहाँ - क्रि० वि० [स० इह] इस स्थान मे। इस जगह पर । यहि-सर्व०, वि० [हिं० यह] १ 'यह' का वह रूप जो पुरानी हिंदी याकूत-सझा ० [अ०] एक प्रकार का लाल रग का बहुमूल्य पत्थर । लाल । मे उसे कोई विभक्ति लगने के पहले प्राप्त होता है। जैसे, यहि को, यहि तें । २ 'ए' का विभक्तियुक्त रूप, जिसका व्यवहार याग-सज्ञा पु० [म.] यज्ञ । उ०-योग याग व्रत दान जो कोज ।- पीछे कर्म और सप्रदान मे ही प्राय होने लगा । इसको । केशव (शब्द०)। यही-अव्य० [हिं० यह +ही (प्रत्य॰)] निश्चित रूप से यह । यागसतान-सञ्चा पु० [६० यागमन्तान] इंद्र के पुन जयत का एक यह ही । उ०—यही गोप यह ग्वाल इहै मुख, यह लीला कहुं नाम। तनत न साथ । - सूर (शब्द०)। याचक-नश पुं० [स०] १ जो मांगता हो। मांगनेवाला। उ.--- यहूद-सञ्ज्ञा पुं० [इम्रानी] वह देश जहाँ हजरत ईसा पैदा हुए थे और (क) चातक ज्या कातिक के मेघ तें निराश होत, याच त्यो जहाँ के निवासी यहूदी कहलाते है। यह देश एशिया की तजत पास कृपण के दान की।-हृदयराम (शब्द०)। (स) जनि पश्चिमी सीमा पर है। यांचे वजपति उदार प्रति याचक फिरि न कहावे। केशव यहूदी-सज्ञा पुं० [हिं० यहूद] [खी यहूदिन] १ यहूद देश का (शब्द०)। २ भिखमगा। निवासी। २ आर्य नाति से भिन्न शामी जाति के प्रतर्गत यौ०-याचकवृति। एक जाति । याचकता-जा सी० [सं०] भीख मांगने का काम (को०] । यहूयहू-सझा पुं० [दश०] कबूतर की एक जाति । याचन-सा पु० [सं०] दे० 'याचना' [को०) । याचा-सश स्त्री० [सं० याञ्चा] दे॰ 'यांचा' । याचनक-सरा पुं० [म०] १ भिक्षुक । २ निवेदक । वह जो विवाह यांत्रिक-वि० [सं० यान्त्रिक] [वि० सी० यान्त्रिकी] १ यत्र सधी । के लिये कन्या की याचना करे (को०] । मशीन वा मौजार संबंधी। २ यम द्वारा निर्मित । यत्र द्वारा याचना-क्रि० म० [सं० याचन] प्राप्त करने के लिये यिनती करना। उत्पादित । ३ कृत्रिम । वनावटी। नकली। प्रार्थना करना । मांगना। यांत्रिकी-सवा सी• [सं० पान्त्रिफी] यंत्र विद्या । इजीनियरी। याचना-राजा सी० [सं०] मांगने की क्रिया। याँ-क्रि० वि० [हिं०] 'यहाँ' । ७०-(क) यां नम्र भाव ही से नाना याचिका-सदा सी० [स०Vयाच् ] किसी निर्वाचन या निलय के मेरे मन भाया है ।-प्रतापनारायण मिश्र (चन्द०) । (ख) विरुद्ध न्यायालय से की हुई प्रार्थना । (मं० पिटीशन)। 1
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