यदि ४०५४ थम go - 1 HO यदि-प्रव्य० [ ] अगर । जो। विशेप- -इस अव्यय का उपयोग वाक्य के प्रारभ मे सशय अथवा किसी बात की अपेक्षा सूचित करने के लिये होता है। जैसे,- ( क ) यदि वे न आए तो ? ( ख ) यदि आप कहे तो मैं देहूँ । यदिच यदिचेत्-अव्य० [सं० ] यद्यपि । अगरचे । यदीय-वि० [सं० ] जिसका (को०) । यदु- सज्ञा पुं० [सं०] १. ययाति राजा का वडा पुत्र जो देवयानी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। विशेष-(क) महाभारत मे लिखा है कि ययाति के शाप के कारण इनका राज्य नष्ट हो गया था, पर पीछे से इद्र की कृपा से इन्हें फिर राज्य मिला था। शाप का कारण यह था कि ययाति ने वृद्ध होने पर इनसे कहा था कि तुम मेरा पाप और वृद्धावस्था ले लो, जिससे मैं फिर युवक हो जाऊं। पर इसे इन्होने स्वीकृत नही किया था। श्रीकृष्णचद्र इन्ही के वश मे (ख) इस शब्द के साथ पति या राजा आदि का वाचक शब्द लगाने से श्रीकृष्ण का अर्थ होता है । जैसे,—यदुपति, यदुराज । २ पुराणानुसार हर्यश्व राजा के पुत्र का नाम । यदुकुल - सज्ञा पुं० [ ] दे० 'यदुवश' । यदुध्र-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] पुराणानुसार एक ऋपि का नाम । यदुनदन-सज्ञा पुं० [सं० यदुनन्दन ] यदुकुल को आनद देनेवाले, श्रीकृष्णचद्र । १ कृष्ण चैतन्य के एक साथी भक्त । यदुनाथ-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] यदुवश के स्वामी, श्रीकृष्ण । यदुपति-सझा पुं० [स० ] श्रीकृष्ण। यदुभूप-सञ्ज्ञा पु० [ स०] श्रीकृष्ण यदुराई-सज्ञा पुं० [ स० यदु + हि० राई (= राजा) ] श्रीकृष्ण । यदुराज, यदुराट-मचा पु० [स० ] यदुकुल के राजा श्रीकृष्ण । यदुवश-संज्ञा पुं० [सं० राजा यदु का कुल । यदु का खानदान । यदुवशमणि-सञ्चा पु० [ स० ] श्रीकृष्णचद्र । यदुवशी -सज्ञा पु० [ स० यदुवशिन् ] यदुकुल मे उत्पन्न । यदुकुल के लोग | यादव । यदुवर--सज्ञा पुं० [०] श्रीकृष्ण । यदुवीर-सशा पुं० [ स० ] श्रीकृष्ण । यदूत्तम-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] श्रीकृष्ण । यहच्छया-क्रि० वि० [स० ] १ अकस्मात् । अचानक । २ इत्तफाक से । देवसयोग से। ३ मनमाने तौर पर। मन की मौज के अनुसार । विना किसी नियम या कारण के। यदृच्छयाभिज्ञ -सज्ञा [ स० ] कृतसाक्षी के पांच भेदो मे एक । वह साक्षी जो घटना के समय आपसे पाप या अकस्मात् प्रा गया हो। यहच्छा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. केवल इच्छा के अनुसार व्यवहार । स्वेच्छाचरण । मनमानापन । २ आकस्मिक । सयोग । इत्तफाक । यद्यपि भव्य० [स०] अगरचे । हरचद । बावजूद कि । उ०-यद्यपि ईंधन जरि गए परिगण केशवदास । तदपि प्रतापानलन को पल पल बढत प्रकास -केशव (शब्द॰) । यद्वातद्वा-श्रव्य० [ स० ] कभी कभी। यभन-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] मैथुन । रति । सभोग [को०] । यम- सशा पु० [ स०] १ एक साथ उत्पन्न वच्चो का जोडा । यमज । २ भारतीय पार्यो के एक प्रसिद्ध देवता जो दक्षिण दिशा के दिक्पाल कहे जाते हैं और आजकल मृत्यु के देवता माने जाते हैं । विशेष-वैदिक काल मे यम और यमी दोनो देवता, ऋषि और मप्रकर्ता माने जाते थे और 'यम' को लोग 'मृत्यु' से भिन्न मानते थे। पर पीछे से यम ही प्राणियो को मारनेवाले प्रथवा इस शरीर में से प्राण निकालनेवाले माने जाने लगे। वैदिक काल मे यज्ञा मे यम की भी पूजा होती थी और उन्हे हवि दिया जाता था। उन दिनो वे मृत पितरो के अधिपति तथा मरनेवाले लोगो को आश्रय देनेवाले माने जाते थे। तव से अव तक इनका एक अलग माना जाता है, जो 'यमलोक' कहलाता है । हिंदुयो का विश्वास है कि मनुष्य मरने पर सब से पहले यमलोक मे जाता है और वहाँ यमराज के सामने उपस्थित किया जाता है। वही उसके शुभ और अशुभ कृत्यो का विचार करके उसे स्वर्ग या नरक मे भेजते हैं । ये धर्मपूर्वक विचार करते हैं, इमालिये धर्मराज भी कहलाते हैं। यह भी माना जाता है कि मृत्यु के समय यम के दूत ही प्रात्मा को लेने के लिये पाते हैं । स्मृतियो मे चौदह यमो के नाम पाए हैं, जो इस प्रकार हैं-यम, धर्मराज, मृत्यु, प्रतक, वैवस्वत, काल, सर्वभूत- क्षय, उदुवर, दन, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त । तर्पण मे इनमे से प्रत्येक के नाम तीन तीन अलि जल दिया जाता है। मार्कंडेयपुराण मे लिखा है कि जब विश्वकर्मा की कन्या सशा ने अपने पति सूर्य को देखकर भय से आँखें बद कर ली, तब सूर्य ने क्रुद्ध होकर उसे शाप दिया कि जानो, तुम्हे जो पुत्र होगा, वह लोगो का सयमन करनेवाला ( उनके प्राण लेनेवाला) होगा। जव इसपर सजा ने उनकी ओर चचल दृष्टि से देखा, तब फिर उन्होने कहा कि तुम्हें जो कन्या होगी, वह इसी प्रकार चचलतापूर्वक नदी के रूप मे वहा करेगी। पुत्र तो यही यम हुए और कन्या यमी हुई, जो बाद में यमुना के नाम से प्रसिद्ध हुई। कहा जाता है कि यमी और यम दोनो यमज थे । यम का वाहन भैसा माना जाता है। पर्या० पितृपति । कृतात | शमन । काल । दृढधर । श्रादेव । धर्म | जीवितेश। महिपध्वज । महिपवाहन। शीपाद । हरि । फर्मकर। २. मन, इद्रिय आदि को वश या रोक मे रखना। निग्रह । ४ चित्त को धर्म मे स्थिर रखनेवाले कर्मों का साधन । विशेष-मनु के अनुसार शरीरसाधन के साथ साथ इनका पालन नित्य कर्तव्य है। मनु ने अहिंसा, सत्यवचन, ब्रह्मचर्य, अकल्कता और अस्तेय ये पांच यम कहे हैं। पर पारस्कर गृह्यसूत्र मे तथा और भी दो एक प्रथो मे इनकी सख्या दस कही गई है और नाम इस प्रकार दिए गए है-ब्रह्मचर्य, दया, क्षाति, ध्यान,
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