पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२९

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म छथ ३७८६ मनुमाना मनुज-मज्ञा पुं० [ स० मनुजता-सशा मनुज त्व- नशा न मनुजा-सज्ञा श्री० [ मनुजात'-वि० [ HO स० म० मनुजेश्वर- मनुछथ-सज्ञा पु० [म० मनुष्य] १ 'मनुष्य' । उ०-चिपनहारे मरके पीछे किंपुष्प वर्ग के बंदर या बनमानुग हुए । बनमानुमा चित्रि तू रे चतुरगी नाह। का . चहुबान सु कित्ति कवि मन मे होते होते अत मे मनुष्य | वैज्ञानिकों ने मनुष्य का पाच मनुछ, हरि नाह । -पृ० ग०,१ । ७६६ । प्रधान जातियों में बांटा है (२) काकेशी, जिसके अंतर्गत प्रार्य ] [ मी० मनुजा, मनुजी ] मनुष्य । श्रादमी। और अमुर (नामी) है। (२) मगोल, चीन, जापान आदि के स्त्री० [ म० मनुज +ता (प्रत्य॰)] मनुप्यता । पीले जोग । (३) ह शो । (४) अमेरिकन । और (५) मलाया । मानवता। पर्या०-मानुप। मनुज । मानव । नर । द्रुपद । पुमान् । पु. [ स० मनुज+त्व (प्रत्य॰)] मनुष्यत्व। पचजन । पुरप | पूरप। भानवता। मनुष्यकार- मा पु०॥ ] पुरपार उद्योग । प्रयन्न । म० ] मानवी । म्बी (को०। मनुष्यकृत-वि म० ) मनुय द्वारा बनाया हुआ । मानवत। स० ] मनु से उत्पन्न । • वृश्रिम । जो पातिक न हो यो । मनुजात'-सञ्ज्ञा पु० मनुष्य । आदमी। मनुष्यगणना-मज्ञा पु० [ म० मनुष्य + गणना ] 70 'मर्दुमशुमागे'। मनुजाद'-वि० [ ] नरभक्षक । मनुष्यो को खानेवाला । मनुष्यगति-सा पी० [ मं० ) जैन पात्रानुसार वह कर्म जिसके मनुजाद'- सहा पु० [सं०] क्षम । उ०—(क) चिन बंताल, करने से मनुष्य बार वार मरक मनुष्य का ही जन्म पाता मनुजाद मन, प्रेतगन रोग भोगौध वृश्चिक विकारम् ।-तुलमी है। ऐमे कर्म परम्प्रीगमन, मामभक्षगा, चारी आदि बतलाए ग्र०, पृ० ४८९ । (ख) मान है अपमान को मनुजाद नू जब तक गए हैं। न कर ।-बेला, पृ० ६८ । मनुष्यजाति-पग मी० [म० ] मानव जानि । मानव समुदाय (को॰] । मनुजाधिप-सज्ञा पु० [ ] राजा । मनुष्यो का अधिप । उ०- मनुप्यता-मज्ञा स्त्री० ॥ ] १ मनुष्य का भाव । श्रादमीपन । याह न मारि दखि दिमि मेरी। हो अनुजा मनुजाधिप २ दया भान । चित्त की कोमनता। शील । ३ मभ्यता। तेरी । -नद० ग्र०, पृ० २३१ । शिष्टता । व्यवहार ज्ञान । तमीज । श्रादमीयत । मनुजेंद्र-सज्ञा पु० [ सं० मनुजेन्द्र ] राजा (को॰] । मनुष्यत्व-मज्ञा पु० [म. ] मनुप्यता । आदमीयत । उ०—मनुप्यत्व -सज्ञा पु० म.] राजा [को०] । का सत्व तत्व यो किमने समझा बूझा है। -माकेत, मनुजोत्तम- -सज्ञा पुं० [ म० ] श्रेष्ठ मनुष्य । उत्तम पुरुप । पृ०३७१। मनुज्येष्ठ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ मु०] १ तलवार । २ लाठी । . मनुष्यधर्मा -संज्ञा पुं० [ मै० मनु'यधर्मन् ] कुबेर । मनुयुग-मज्ञा पुं॰ [सं० ] मन्वतर । मनुष्ययन-मशा पु० [ म० ] अतिथि अन्यागत का आदर ममान । मनुवा-सज्ञा पुं० [हिं० मन ] मन । उ०---मनुवाँ चई दरव अतिथियज्ञ । नृयज्ञ । यौ भोगू । —जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० २२२ । मनुष्ययान--सञ्ज्ञा पुं॰ [ मं० ) पालकी [को०] । मनुश्रेष्ठ -सज्ञा पुं॰ [ सं० ] विष्णु । मनण्यरथ-सज्ञा पु० [सं०] वह रथ जिसे मनुष्य खीचते हैं। नररथ । मनुप-मज्ञा पु० [स० मनुष्य] १ मनुष्य । प्रादमी । उ०-को तिन मनुष्यराशि -सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] कन्या रामि । तुम्हे हम मनुप जानत नही जगतपितु जगतहित देह धारयो मनुष्यलोक -नशा पुं० [ म० ] मर्त्यलोक । भूलोक । करोगे काज जो कियो ना कोउ नृपति किए जस जाय हम दोप मारो।—सूर (शब्द०)। २ पति । खाविंद । उ०-माप मनुष्यहार-राज्ञा पुं॰ [ स० ] मनुष्य का अपहरण या चोरी [को०] । मोर मनुप है अति मुजान । धवा कूटि कूटि कर विहान ।- मनुष्यहारी-वि० [ म० मनु यहारिन् ] मनुष्य को चुरानेवाला [को०] । कबीर (शब्द०)। मनुष्येतर-वि० [ सं०] मनुष्य से भिन्न । मानव से भिन्न । उ.- मनुपी-सच्चा स्त्री॰ [ स०] स्त्री। मनुष्येतर बाह्य प्रकृति का पालवन के रूप मे ग्रहण पाया मनुष्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म०] जरायुज जाति का एक स्तनपायी प्राणी जाता है । -रम०, पृ०६ । जो अपने मस्तिष्क या बुद्धिवल को अधिकता के कारण सव मनुसहिता-सज्ञा स्त्री॰ [ मे० ] दे० 'मनुस्मृति' । प्राणियो मे श्रेष्ठ है । आदमी । नर । मनुसाई-सशा स्त्री० [हिं० मनुष्य +भाई ] १ पुरुषार्थ । विशेष-मनुष्य महाभूत कहा गया है। प्राचीन ग्रों मे सृष्टि के पराक्रम । वहादुरी। उ०—(क) माखामृग के बड मनुसाई । आदि मे प्राय मब जीव जंतुओं की उत्पत्ति एक साथ बताई साखा तें माखा पर जाई ।-तुलमी (शब्द॰) । (ख) जो गई है। पर आधुनिक प्राणिविज्ञान के अनुसार मूल अणुजीवो अस करउँ न तदपि बडाई। मुयेहि बधे कछु नहिं मनुसाई । ते क्रमण उनति प्राप्त करते हुए एक के पीछे दूसरे उन्नत -तुलसी (शब्द॰) । २ मनुष्यता । आदमीयत । जीव होते गए हैं। जैसे विना रोढवाले जीवो से गढवाले मनुसाना-क्रि० भ० [ H० मनुष्य + हिं० श्राना (प्रत्य॰) ] मनुष्य अडज जीव हुए। फिर उन्ही से जरायुज हुए | जरायुजों मे का भाव जगना । मनुष्य होने का भाव उत्पन्न होना ।